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किसानों के नाम पर नकारात्मक आंदोलन

डॉ.दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय चिंतन में सदैव सकारात्मक विचारों को महत्व दिया गया। आज भी भारत के जैसी विविधता व अभिव्यक्ति की आजादी किसी अन्य देश में दिखाई नहीं देती। इस आधार पर किसानों ने नाम पर चाल रहे आंदोलन को कसौटी पर परखा जा सकता है। यह आंदोलन सकारात्मक होता तो सरकार के साथ बारह दौर की वार्ता में कोई समाधान अवश्य निकलता। लेकिन इसका आधार नकारात्मक था।

कृषि कानूनों में कहीं भी किसानों की जमीन पर कॉन्ट्रेक्ट का उल्लेख नहीं है,लेकिन आंदोलन इस बात पर चल रहा है कि किसानों की जमीन छीन ली जाएगी। कृषि कानून में कृषि मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखने का उल्लेख है,आंदोलन इस लिए चल रहा है कि यह दोनों व्यवस्थाएं समाप्त हो जाएंगी।

जिन विदेशियों के भारत से कभी कोई मतलब नहीं रहा,उनकी टिप्पणियों का स्वागत हो रहा है,लता मंगेशकर सचिन तेंदुलकर अक्षय कुमार आदि के बयानों पर आपत्ति है। इन्हीं कारणों से यह आंदोलन अप्रासंगिक होता जा रहा है। तीन महीने में यह आंदोलन अपने को किसान हितैषी प्रमाणित करने में भी विफल रहा है। सरकार के साथ हुई वार्ताओं में भी यही उजागर हुआ। वार्ता में शामिल कोई भी नेता यह नहीं बता सका कि कृषि क़ानूनो में किसान हित के प्रतिकूल क्या है।

व्यवस्था व प्रक्रिया संबन्धी कुछ सुझाव अवश्य दिए गए,उन्हें सरकार ने स्वीकार भी कर लिया था। लेकिन ऐसा लगा कि आंदोलन के नेताओं की समाधान में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। विपक्षी नेताओं की तरह ही इनके बयान थे। शुरू से लेकर आज तक एक जैसे स्वर सुनाई दे रहे है। कहा जा रहा कि यह काला कानून है,किसनों की जमीन पर देश के दो उद्योगपति का कब्जा हो जाएगा। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि दो उद्योगपति पूरी जमीन पर कब्जा कैसे कर लेंगे। कृषि कानूनों के किसी भी प्रावधान से ऐसा करना संभव ही नहीं है।

दुष्प्रचार पर आधारित

जाहिर है कि आंदोलन दुष्प्रचार पर आधारित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक कहा कि जिन्होंने विदेशी कम्पनियों को भारत बुलाया था,वही अब भारतीयों की कम्पनियों पर हमला बोल रहे है। इसे सामान्य बात नहीं माना जा सकता। कृषि कानून तो वैकल्पिक है। मतलब किसान कृषि मंडी में उत्पाद बेचे या अन्यत्र,यह विकल्प भी है,उसका अधिकार भी है। इसके विरोध में आंदोलन करना किसान हित में नहीं हो सकता। यूपीए के मुकाबले इस सरकार ने समर्थन मूल्य बढ़ाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि समर्थन मूल्य समाप्त नहीं होगा। कृषि मंडियों को आधुनिक बनाया जा रहा है। किसान कौन सा विकल्प चुनता है,यह उसकी मर्जी। ऐसे में यह आंदिलन तो शुरू से ही अप्रासंगिक था।

योगी का विपक्ष पर निशाना

इधर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष को निशाने पर लिया। विधानपरिषद में उन्होंने कहा कि गमलों में गोभी उगाने वाले आज एमएसपी की बात कर रहे है। ये लोग आंदोलन को हवा दे रहे है। पिछली सरकारों ने किसानों के हित में काम किया होता तो जनता उन्हें भगाती नहीं। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आजादी के बाद ईमानदारी के साथ भारत के अन्नदाता किसानों को एमएसपी का लाभ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिलाया है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। सरकार किसानों के हित के लिए प्रतिबद्ध और तत्पर है। इसकेे लिए पूरी ईमानदारी से कार्य कर रही है।

कॉन्ट्रैक्ट खेती में फसल के सम्बन्ध में कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है, खेत के सम्बन्ध में नहीं। केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के हितों में तीन अधिनियम बनाये गये हैं, जो किसानों के हितों को ध्यान में रखकर बनाये गये हैं। इस कानून में यह सुविधा दी है कि किसान अपना उत्पाद,खेत, खलिहान या कहीं भी बेच सकता है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने पर किसान को लाभ होगा। खुली प्रतिस्पर्धा से किसान के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन आएगा। एमएसपी एक तरह की एमआरपी है। खाद्य सुरक्षा के तहत अन्त्योदय और पात्र गृहस्थी कार्डधारकों को राशन उपलब्ध कराने के लिए सरकार को एमएसपी पर खरीद करनी होती है।

किसान इससे अधिक मूल्य पर भी अपना उत्पाद बेच सकता है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के अन्तर्गत किसान के परिवार तथा बटाईदार को भी पांच लाख रुपये का बीमा लाभ उपलब्ध कराया गया है। प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जा रहा है। जिससे तीस लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचन व्यवस्था बढ़ेगी। खेती के विविधीकरण से किसानों को विशेष लाभ हो रहा है। प्रदेश को भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। योजना के अन्तर्गत राज्य में 2.37 करोड़ कृषकों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि उपलब्ध करायी जा रही है। किसान सम्मान निधि के साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि योजनाएं लागू की गई हैं। इससे किसानों के जीवन में व्यापक परिवर्तन हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में वर्ष 2014-15 में 1400 रुपये प्रति कुन्तल के समर्थन मूल्य के कुल 6.28 लाख मी0टन गेहूं की खरीद हुई थी। जबकि वर्ष 2020-21 में 1,925 रुपये के समर्थन मूल्य पर 35.76 लाख मी0टन गेहूं खरीद की गई है। इससे 06 लाख 63 हजार 810 किसान लाभान्वित हुए।

वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2020-21 में गेहूं के समर्थन मूल्य में 525 रुपये की वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 में समर्थन मूल्य पर 18.18 लाख मी0टन धान की खरीद की गई थी। वर्ष 2020-21 में 66 लाख मी टन धान की खरीद की जा चुकी है। इससे 12 लाख 78 हजार 900 कृषक लाभान्वित हुए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2018-19 में मक्के की खरीद प्रारम्भ कर 5,116 मी0टन मक्के की खरीद की गई। वर्ष 2020-21 में 01 लाख 06 हजार 412 मी0टन मक्के की खरीद की जा चुकी है। इसी प्रकार समर्थन मूल्य पर दलहन और तिलहन की खरीद में भी निरन्तर वृद्धि हुई है। वर्तमान सरकार ने अब तक कुल 01 लाख 24 हजार करोड़ रुपये गन्ना मूल्य का भुगतान कराया।

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