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डर का सामना

ग्रामीण क्षेत्र के ब्याह के निमंत्रण में शामिल होने निकले एक दंपत्ति अरविंद और शालिनी रास्ता भटक कर अपने गंतव्य से बीस-बाईस किलोमीटर आगे जा पहुँचे थे। जहाँ से बाएँ मुड़ना था वह मोड़ छूट गया था, तभी आगे बढ़ते चले गए। अंधेरा हो जाने से शालिनी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। अरविंद ने एक राहगीर से गंतव्य के बाबत पूछ गाड़ी घुमा ली। शालिनी क्रोध में उफनती हुई गाड़ी में ही बैठी रही। कुछ समय पश्चात अरविंद को लघुशंका महसूस हुई।

सड़क के किनारे अरविंद जैसे ही निवृत्त होने लगे, रात के सन्नाटे में से तीव्र कदमों की चाप स्पष्ट सुनाई देने लगी, जैसे कोई भागता हुआ चला आ रहा हो। “यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है”, याद आते ही गाड़ी को फटाफट स्टार्ट किया। पलक झपकने भर की देर में एक दस-बारह वर्षीय लड़का खेतों के बीच की पगडंडी से भागता हुआ सा सड़क पर आया। हाँफता हुआ वह सड़क के बीचों-बीच धड़ाम से गिर पड़ा, पर फिर खड़ा हो गया।

व्यवहारिकता तो खिसक लेने में थी, अनजान और सन्नाटा रास्ता, ऊपर से नक्सल क्षेत्र, पर दिल का फैसला मानकर गाड़ी से बाहर निकल उसे उठाया और पूछा, “क्या बात है इस तरह भाग क्यों रहे हो?”

अंकल! मुझे लिफ्ट दीजिए या फिर मुझे भाग जाने दीजिए। मेरे पास जरा सा भी समय नहीं है”, और फिर दूसरी दिशा में भागने को उद्यत हुआ।

अरविंद खतरा भाँप चुके थे। दिल और दिमाग में कशमकश चल रही थी, यह सब नक्सलियों का जाल भी हो सकता है। नजरें पत्नी की ओर घूमी। शालिनी को सहमत पाकर बच्चे को पुकारा, “गाड़ी स्टार्ट कर चुका हूँ, गाड़ी में बैठो फटाफट।” बच्चे के बैठते ही गाड़ी सड़क पर फर्राटे भरने लगी। ड्राइव करते-करते पूछा, “अब बताओ।” जब तक बच्चा कुछ बोले, शालिनी ने चौंकते हुए कहा, “अरे! यह तो मोनू है, हमारे शहर के प्रसिद्ध डॉक्टर सक्सेना का लड़का, जिसके अपहरण की खबरें तथा तस्वीर आठ-दस दिनों से रोज अखबारों में आ रही हैं।”

शालिनी का वक्तव्य सुनते ही मामले की नजाकत भाँपकर अरविंद ने शालिनी से गूगल मैप पर नजदीकी थाना ढूंढने को कहा तथा समझदारी से ड्राइव करते हुए थाने की ओर बढ़ चले। शालिनी मोनू के पिता का नंबर बच्चे से पूछ कर डायल करने लगी। गाड़ी थाने की ओर भागी जा रही थी।

शालिनी की थपकियों से आश्वस्त बच्चे ने राहत की साँस ली। बताया कि एक सुनसान जगह पर खेतों के बीच एक झोपड़ीनुमा जगह पर उसे रखा गया था। झोपड़ी तो मजबूत थी पर उसके एक कोने में बने गुसलखाने की खपच्चियाँ कुछ खराब थीं। गंदगी के कारण अपहर्ताओं का ध्यान उधर गया नहीं था। उसे धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा रोज हिलाकर ढीला करता रहा। जब निकलने लायक खपच्चियाँ ढीली हो गईं तो अंधेरा होते ही मौका निकाल कर भाग निकला। सड़क पर गाड़ियों की रोशनी उसे इधर खींच लाई थी। अब तक तो वे मुझे ढूंढने भी लगे होंगे। बच्चे के चेहरे पर पुनः घबराहट ने पैर पसार दिए। तभी सामने थाना पाकर अरविंद ने गाड़ी उसके अहाते में घुसा दी। शालिनी ने विवाह समारोह में फोन करके आने में असमर्थता जाहिर कर माफी माँग ली।

         नीना सिन्हा
      (पटना, बिहार)

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