श्रीलंका के राष्ट्रपति पद से अपदस्थ गोटबाया राजपक्षे ने गुरुवार को संकेत दिया कि कुछ पश्चिमी शक्तियों के इशारों पर किए गए जन असंतोष के बावजूद एक देश उनके पद पर बने रहने का इच्छुक है। राजपक्षे ने भारत का नाम लिए बिना अपनी पुस्तक में लिखा, दरअसल एक प्रमुख विदेशी शक्ति थी जो इस बात पर जोर दे रही थी कि मुझे इस्तीफा नहीं देना चाहिए था और उन्होंने श्रीलंका को आवश्यक चीजें उपलब्ध कराने की इच्छा भी जाहिर की थी।
लोगों को राहत देने के लिए दिया था इस्तीफा- गोटाबाया
पूर्व राष्ट्रपति ने किताब में कहा कि फिर भी मैंने श्रीलंका के लोगों को कुछ राहत देने के लिए राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। किताब में कहा गया है कि दो साल के कोविड लॉकडाउन, स्कूलों के बंद होने और रोजगार के नुकसान के बाद जीवनयापन की लागत बढ़ गई है। मैं अपने कारण लोगों को लंबे समय तक राजनीतिक गतिरोध में नहीं डालना चाहता था।
विदेशी ताकतों का था मुझे हटाने में हाथ- गोटाबाया
गोटाबाया द्वारा लिखी गई पुस्तक में, उन्होंने कहा कि मैंने उन राजनीतिक साजिशों और तोड़फोड़ को खत्म करने के लिए इस्तीफा दे दिया, जो हर किसी के जीवन को असहनीय बना रही थीं। उन्होंने आगे कहा, किसी के लिए भी यह दावा करना बेहद नादानी होगी कि इसमें कोई विदेशी हाथ नहीं था। मुझे सत्ता से बाहर करने के लिए कदम उठाए गए।