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लखनऊ बैकुंठ धाम में नई तकनीकी से शुरू हुआ हरित शवदाह गृह, सुरक्षित होगा पर्यावरण

दया शंकर चौधरी

लखनऊ के बैकुंठ धाम में नई तकनीकी का हरित शवदाह गृह बनाया गया है। इसमें लकड़ी की बहुत ही कम खपत होगी। भट्ठी की तहर बनने वाले इस शवदाह में महज एक कुंतल लकड़ी में दाह संस्कार सम्पन्न हो जाएगा। इससे न सिर्फ लगभग 85 प्रतिशत लकड़ी की बचत होगी बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित हो सकेगा। साथ ही समय भी बहुत कम लगेगा।

नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने इस संबंध में बताया कि प्रयोग के तौर पर इस तकनीक से गुलाला घाट पर हरित शवदाह तैयार किया गया था। अच्छे परिणाम आने के बाद बैकुंठ धाम में इसे तैयार किया गया है। महज 15 प्रतिशत यानी एक कुंतल से कम लकड़ी में शव पूरी तरह जल जा रहा है। यहां पर दो मशीनें लगाई गई हैं। एक मशीन पर लगभग 54 हजार रुपए का खर्च आया है। इनसे कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार होगा। यहां पर हरित शवदाह की दो मशीनें कुछ दिन पहले ही लगी थीं। उनसे गैर कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। लेकिन उसमें एक शव के निस्तारण में दो से ढाई कुंतल लकड़ी की खपत हो रही है।

चूल्हे की फुंकनी की तरह एक हार्स पावर की मोटर फूंकेगी हवा

इसे भट्ठी की तरह बनाया गया है। चारों तरफ से ढंकने के लिए मोटी चादर का इस्तेमाल किया गया गया है। ग्रिल के साथ एक प्लेटफार्म बनाया गया है। उसी पर पहले लकड़ी और उसके ऊपर शव को रखा जाएगा। सबसे नीचे एक प्लेट होगी जिसमें शव के जलने के बाद राख एकत्र हो जाएगी। आग लगने के बाद शव को ढंक दिया जाएगा। आग में तेजी लाने के लिए चूल्हे में आग बढ़ाने के लिए जिस तरह फुंकनी का इस्तेमाल होता है उसी तरह एक हार्स पावर पम्प से हवा अंदर भेजी जाएगी। यह आग को तेज करेगी। मोटी चादर होने के कारण ऊर्जा बाहर नहीं निकलने पाएगी। इससे कम लकड़ी में अधिक ऊर्जा पैदाकर शव का दाह संस्कार हो जाएगा। धुआं निकलने के लिए ऊंची चिमनी लगाई जाएगी। इससे वायु प्रदूषण नहीं होने पाएगा।

उन्होने बताया कि बैकुंठ धाम व गुलाल घाट सहित तीन नए हरित शवदाह गृह को शुरू कर दिया गया है। यह नई तकनीकी के हैं। एक कुंतल से भी कम लकड़ी की खपत हो रही है। इससे लकड़ी की किल्लत दूर होने के साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकेगा।

दूसरी ओर जानकारों का कहना है कि शवदहन में यदि गोकाष्ठ (गोबर का कण्डा या उपला) का प्रयोग किया जाये तो इससे पर्यावरण प्रदूषित होने से बच सकेगा और अनावश्यक पेड़ों की कटान भी रुक सकेगी। उल्लेखनीय है की भारतीय गाय के गोबर में प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा 23 प्रतिशत है। जब इस गोबर को सुखा कर कण्डा बनाया जाता है तो इसमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 27 प्रतिशत हो जाती है। जब इस कण्डे को जलाकर कोयला बनाते हैं तो इसमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 30% हो जाती है। गाय के गोबर को वृक्षों की जलौनी लकड़ी का अच्छा विकल्प माना जा सकता है।

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