गांवों आदि में तो शौचालय का स्थान घर से अलग होता था। महानगरों में ऐसी व्यवस्था संभव नहीं है। शौचालय गृहवास्तु का अनिवार्य अंग है। घर-मकान में शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम दिशा अर्थात् नैऋत्य कोण है। घर की इस दिशा में शौचालय होना सबसे अच्छा है।
- Published by- @MrAnshulGaurav
- Sunday, April 17, 2022
वास्तु शास्त्र का बहुत महत्व है। वास्तु अर्थात् जमीन पर कोई भी निर्मिति- निर्माण। आज कोई कोई व्यक्ति यह भी कहते पाये जाते हैं कि वास्तु पहले नहीं था, तो क्या लोग ठीक से रहते नहीं थे? वास्तु पुरातन समय से विद्यमान है और जो मंदिर, किला, मकान बनवाये जाते थे वे सब वास्तुशास्त्र के अनुसार ही बनवाये जाते थे, भले ही उसका नाम कुछ भी रहा हो। वास्तु पूर्ण वैज्ञानिक है व कई तरह से परखा जा चुका है। वास्तुशास्त्र हमें बताता है कि किस दिशा में क्या होना चाहिए, कैसी साज सज्जा होनी चाहिए। इस आलेख में हम वास्तु के अनुसार शौचालय / बाथरूम पर बात करेंगे।
गांवों आदि में तो शौचालय का स्थान घर से अलग होता था। महानगरों में ऐसी व्यवस्था संभव नहीं है। शौचालय गृहवास्तु का अनिवार्य अंग है। घर-मकान में शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम दिशा अर्थात् नैऋत्य कोण है। घर की इस दिशा में शौचालय होना सबसे अच्छा है। बशर्ते कि सीवर की सम्मत व्यवस्था हो। किसी भी सूरत में दक्षिण-पश्चिम दिशा में गड्ढा नहीं खुदवाना चाहिए। अगर गड्ढा खुदवाना हो तो दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम के बीच का हिस्सा इस्तेमाल करना चाहिए। अर्थात् पश्चिम में थोड़ा नैऋत्य की ओर या पश्चिम दिशा में गड्ढा हो। दक्षिण-पश्चिम दिशा में गड्ढा करने से घर की माता के जीवन का संकट उत्पन्न हो जाता है। घर के निवासियों के शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है। पेट आगे को निकाल आता है। जाड़े की ऋतु शुरू होते ही अचानक बीमारियां घेर लेतीं हैं। रोज दोपहर 1 बजे से 3 बजे के बीच मन में पाप-पूर्ण विचार आते हैं और मनुष्य की चेष्ठाएं भी वैसे ही हो जाती हैं।
अगर किसी कारण से दक्षिण-पश्चिम दिशा में शौचालय के लिये गड्ढा बनाना ही पड़े तो उस दिशा में पीला रंग करवाना चाहिए। हाथी के पैर के नीचे की मिट्टी लाकर डालनी चाहिए और पृथ्वी के नीचे जितना गहरा गड्ढ़ा हो उससे ज्यादा ऊंची टंकी शौचालय की छत पर लगवानी चाहिए।
दक्षिण और पश्चिम दिशा में कहीं भी शौचालय का निर्माण करवाया जा सकता है। किन्तु इतना ध्यान रखना चाहिए कि जब दक्षिण में बनवायें तो पूर्व की ओर ज्यादा ने ले जायें और यदि पश्चिम में बनवायें तो उत्तर की ओर को अधिक न ले जायें। मजबूरी में घर के अन्य स्थानों में शौचालय का निर्माण हो सकता है किन्तु दो दिशाएं सर्वथा निसिद्ध हैं। एक है ईशान कोण और दूसरा ब्रह्मस्थान। ईशान कोण अर्थात् उत्तर-पूर्व दिशा का कौना। ईश अर्थात् भगवान्। ईशान दिशा पूजाघर की है। उसमें शौचालय सर्वथा निषिद्ध है। इस दिशा में शौचालय बनवाया जाता है तो घर में क्लेश रहता है। आपके कारखाने या फिर आपके कार्यक्षेत्र के लोग आपस में लड़ने लग जाते हैं। कारखाने के स्वामी के चरित्र पर भी प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होने लगता है। धनागम व समृद्धि रुकती है। ईशान कोण में स्नानगृह हो भी सकता है किन्तु शौचालय नहीं होना चाहिए।
यदि ईशान में शौचालय बन गया है तो क्या करें?
यदि ईशान कोण में शौचालय बन गया है तो उसे तुरंत हटाने का प्रयास करें। यदि इण्डियन सीट है तो उसमें बालूरेत आदि भरकर उसे फर्सी या टाइल्स से ढक कर बंद करवा दें और दूसरे स्थान पर शौचालय बनवायें। यदि तत्काल ऐसा संभव न हो तो उस कौने से सीट हटवाकर थोड़ी दूरी पर लगवा दें या कोने में बाथरूम और बाथरूम की जगह सीट लगवा दें। बाद में छः-आठ माह उपरान्त उसे अन्यत्र बनवाना चाहिए। नये मकान या फ्लैट में तो इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि भूल से भी शौचालय ईशान दिशा में न बन जाये।
ब्रह्म स्थान में शौचालय के दोष-
मकान के ठीक बीच का स्थान ब्रह्म स्थान कहलाता है। यानी चारों दिशाओं से नाप कर लाने से जो मध्य बिन्दु बने वह ब्रह्म स्थान है। ईशान दिशा की तरह ब्रह्म स्थान भी महत्वपूर्ण होता है। इस स्थान पर भी शौचालय बर्जित है। ब्रह्म स्थान में मकाल का पिलर भी नहीं आना चाहिए। नौ पिलर का मकान बनाने पर एक पिलर ब्रह्म स्थान में आता है। आर्किटेक्ट से कहकर वह पिलर ब्रह्म स्थान में नहीं आने देना चाहिए। किसी भी भवन के ब्रह्म स्थल में बना सेप्टिक टेंक या केन्द्र में बनी सीढ़ियों के नीचे शौचालय बनाना पारिवारिक उन्नति में बाधक होता है एवं घर की महिलाएं विशेषतः बहन, बुआ तथा बेटी के जीवन में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
कुछ अन्य आवश्यक जानकारियाँ-
0 सीढ़ी के नीचे शौचालय निषिद्ध है। सीढ़ी के नीचे सिर्फ स्टोर रूम बना सकते हैं। शौचालय या बाथरूम नहीं बना सकते हैं।
0 शौचालय कभी भी घर के मुख्य द्वार के सामने नहीं बनवाएं। ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा आती है। यह हानिकारक होता है।
0 जहां तक संभव हो तो शौचालय और स्नानगृह साथ में न बनवाएं। स्नानगृह का स्थान पूर्व दिशा है। पूर्व की ओर स्नानगृह होना चाहिए।
0 रसोई के ठीक सामने शौचालय न हो।
0 पश्चिम या दक्षिण दिशा में टायलेट सीट रखना चाहिए।
0 टाॅयलेट सीट का उपयोग करते समय मुख दक्षिण या पश्चिम की तरफ होना चाहिए।
0 टाॅयलेट सीट का उपयोग करते समय मुख पूर्व की तरफ रहने से कानूनी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।
0 यदि अटैच्ड बाथरूम है तो ऐसे शौचालय की दीवारों का रंग सफेद, हल्का नीला, हल्का पीला, आसमानी, भूरा रंग, क्रीम रंग या मिट्टी के रंग से मिलता जुलता कोई रंग होना चाहिए।
0 ऐसी व्यवस्था में वाशिंग मशीन बाथरूम एरिया के दक्षिण या आग्नेय कोण में रखने की व्यवस्था करना चाहिए।
0 यदि वाथरूम की दीवार और आपके पलंग की दीवार एक है तो आपको डरावने सपने आ सकते हैं।
0 प्रयास करना चाहिए कि बाथरूम का वाशबेसिन और नहाने की जगह बाथरूम के पूर्व, उत्तर या उत्तर पूर्व में हो।
0 बाथरूम में अगर वायु का सीधा निकास या आगमन नहीं हो तो उसमें एक्जाॅस्ट फैन लगवाना चाहिए।
0 बाथरूम का इंटीरियर करवाते समय इस बात का ध्यान रखें कि बाथरूम की टाइल्स काली या गहरे नीले रंग की न हो।
0 सीढ़ियों के नीचे बाथरूम न बनवाएं। विशेष रूप से शौचालय नहीं होना चाहिए।
0 शौचालय के पानी का बहाव उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए।
0 यदि बाथरूम में गीजर लगवा रहे हैं तो वह बाथरूम एरिया के अग्निकोण में लगवाने का प्रयास करें।
0 यह ध्यान रखें कि जब आप सोयें तो आपके मुख की तरफ शौचालय न हो।
0 बाथरूम में शीशा उत्तर या पूर्व की दीवार में लगवना चाहिए।