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गुलाबो सपेरा की लोक संगीत साधना

तीजन बाई और गुलाबो सपेरा लोक संगीत की विलक्षण विभूतियां है। इन्होंने समान रूप से संगीत की साधना के साथ ही रूढ़ियों से भी संघर्ष किया। इनकी राह कभी आसान नहीं रही। अपने ही समाज की उपेक्षा झेलनी पड़ी। लेकिन इनका जज्बा उतना ही मजबूत हो गया। आगे बढ़ी,लोक संगीत के क्षेत्र में सम्मान जनक मुकाम बनाया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से नवाजा। गैर सरकारी क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित लोक निर्मला सम्मान दिया गया। गुलाबो सपेरा ने इस सम्मान समारोह में अपने परम्परागत नृत्य की प्रस्तुति की।

अद्भुत आकर्षक,वह कहती है कि बचपन में सर्पो का जूठा दूध पिया है। कारण कुछ भी हो,किरीब साठ वर्ष की उम्र में गज्जब कई फुर्ती। कलाकरों के लिए उनका जीवन प्रेरणा दायक है,उनका नृत्य सभी कलाकारों के लिए शिक्षाप्रद है। प्रख्यात गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी सोन चिरैया के माध्यम से लोक संगीत की विविध विधाओं के संरक्षण व संवर्धन में सतत सक्रिय है। संरक्षण व संरक्षण के साथ ही उन्होंने इसमें सम्मान को भी समाहित किया है। लोक निर्मला सम्मान इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सम्मान है। विगत वर्ष यह सम्मान पंडवी गायिका तीजन बाई को मिला था। इस बार लोक कलाकार गुलाबो सपेरा को यह सम्मान दिया गया।

इस अवसर पर होने वाला सांस्कृतिक समारोह भी अपने में सभी लोक कलाकारों के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति जैसा होता है। लखनऊ में एक ही स्थान पर लोक कलाओं के अनेक रंग एक साथ प्रकट होते है। इसमें भारत की अति प्राचीन संस्कृति धरोहर के दर्शन होते है। जिसे हमारे लोक कलाकारों ने अनेक परेशानियों का सामना करते हुए सहेज कर रखा है। चकाचौध के इस दौर में इनकी राह आसान नहीं रही। फिर भी इन कलाकारों ने संघर्ष किया,संगीत साधना को निरन्तर जारी रखा,आर्थिक अभाव देखा,अनेक विरोधों का सामना किया,लेकिन विचलित नहीं हुए। इस बार भी लोक निर्मला सम्मान समारोह में लोक संगीत की आकर्षक प्रस्तुति हुई। यह संगीत की सामान्य साधन नहीं है,बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही विरासत को संवर्धित संरक्षित करने का प्रयास भी है।

लोक निर्मला सम्मान कार्यक्रम में सोनचिरैया द्वारा पुरस्कृत किया गया। गुलाबो सपेरा का जन्म घुमंतू कालबेलिया  समुदाय में हुआ था। वह टिटि रॉबिन कर संगीत कार्य में सक्रिय हैं। उनके पिता देवी उपासक थे, इसलिए वह हमेशा अपनी सभी बेटियों को देवी के आशीर्वाद के रूप में प्यार करते थे और विशेष रूप से सबसे कम उम्र की पुत्री से उन्हें लगाव था। गुलाबो का जन्म कालबेलिया समाज में हुआ। इनके इनके जन्म पर इनके रिश्तेदार खुश नहीं थे। इनको जन्मते इनका जीवन समाप्त करने का प्रयास हुआ।

उस समय इनके पिता वहां नहीं थे। वह लौटे तो तो बेटी को स्नेह दिया, उन्हें देवी का आशीर्वाद माना। वह बीन पर सांप को नचाकर पेट पालते थे। गुलाबो कम उम्र में अपने पिता के साथ सांप लेकर बाहर जाने लगी। पिता बीन बजाते थे और वह सांपों को शरीर पर लपेटकर नाचती थीं। कई दिनों तक यह सिलसिला चला। समाज के लोगों को पसंद नहीं आया तो गुलाबो ने घर से बाहर निकलना बंद करा दिया। कालबेलिया नृत्य सिर्फ महिलाएं करती हैं और पुरुष वाद्य यंत्र बजाते हैं। महिलाएं काफी तेजी से सांप की तरह बल खाती हैं और बारबार घूमती हैं। इस प्रकार गुलाबो की संगीत शिक्षा चलती रही,वह सीखती रही। दुनिया को इस नृत्य शैली से अवगत कराया।

 

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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