सावन शिव और पार्वती का प्रिय महीना है। इसी माह में शिवरात्रि, हरियाली तीज, नागपंचमी के त्योहार पड़ते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शिव सृष्टि से संरक्षक होते हैं। सावन मास में शिव और पार्वती दोनों का पूजन किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव और पार्वती ऐसे दंपती हैं जो भारतीय परिवार व्यवस्था का प्रतिनिधि उदाहरण है। शिव और पार्वती के बीच पति-पत्नी के साथ-साथ मित्र का भी संबंध हैं। इसीलिए किसी और दैवीय दंपती की इस तरह से पूजा नहीं की जाती है, जिस तरह से शिव और पार्वती की। शिव और पार्वती दोनों प्रकृति के बहुत समीप हैं, इसलिए इनकी पूजा में कुछ खास प्रयास नहीं करने होते हैं। फिर भी कुछ फूल ऐसे हैं जो शिव को प्रिय हैं और कुछ फूल पार्वती को प्रिय हैं।
भोलेनाथ के प्रिय फूल
शिव को प्रसन्ना करने के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है, उन्हें दूध से भी नहलाया जाता है। मगर यदि भक्त उन्हें विभिन्ना तरीकों के फूल व पत्तियां अर्पित करते हैं तब भी भोलेनाथ मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। इन सभी भोलेनाथ के प्रिय फूल का अपना अलग ही महत्व होता है। आज हम आपको बताएंगे कि, भगवान भोलेनाथ के प्रिय फूल व किस फूल को अर्पित करने से क्या लाभ होता है।
धतूरा
धतूरे का धार्मिक के साथ ही औषधीय महत्व भी होता है। इसके बीज से लेकर जड़, तना, फल, फूल व रस तक कई बीमारियों को दूर करने में सहायक होते हैं। शंकर जी को चढ़ाए जाने वाले फूलों में धतूरा प्रमुख है। जो नि:संतान है उन्हें संतान प्राप्ति के लिए भोलेनाथ को धतूरा अर्पित करना चाहिए।
दूब
दूब या दुर्वा यूं तो एक तरह की घास ही है। मगर हिंदू मान्यता के अनुसार इसका धार्मिक महत्व है। आमतौर पर गणेशोत्सव के दौरान गणपति बाबा को दुर्वा अर्पित की जाती है। लेकिन गणेश की तरह ही उनके पिता शिव जी को भी दुर्वा प्रिय है और उन्हें एक लाख दुर्वा चढ़ाने से उम्र लंबी होती है।
बिल्व पत्र
बिल्व पत्र या बेल पत्र की महत्ता भगवान भोलेनाथ की वजह से ही है। बेल पत्र के पेड़ को शिवद्रुम के नाम से भी जाना जाता है। सभी भक्त खास अवसरों पर भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित करते हैं, क्योंकि ऐसा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
गुड़हल
गुड़हल या जवाकुसुम लाल रंग के बेहद ही सुंदर फूल होते हैं। ये भगवान गणेश के साथ ही भगवान शंकर के भी प्रिय होते हैं। गुड़हल के फूलों के अर्पण से दुश्मनों का विनाश होता है।
बेला
बेला का फूल सफेद रंग का बेहद सुगंधित पुष्प होता है। इस छोटे से फूल से भी आप शिवजी को प्रसन्ना कर सकते हैं। यदि आपकी शादी में दिक्कत आ रही है तो शिव को बेला के फूल अर्पित करने से अच्छा वर मिलेगा।
पारिजात
पारिजात, हरसिंगार या शिउली का फूल भी सफेद रंग का होता है और इसमें एक नारंगी डंडी होती है। रात में खिलने वाले इन फूलों को शिव को अर्पित करने से खुशियों व ऐश्वर्य में बढ़ोतरी होती है।
गुलाब
आमतौर पर देवताओं को गुलाबी रंग के गुलाब की पंखुड़ियां चढ़ाई जाती है। लेकिन शिव का प्रिय तो लाल गुलाब होता है। यदि आप उन्हें लाल गुलाब अर्पित करते हैं तो धन व समृद्धि बढ़ने लगते हैं।
इस श्रावण मास भोले बाबा को प्रसन्ना करने के लिए इन फूलों को अर्पित कीजिए।
पार्वती को प्रिय फूल
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर की पूजा में जो पत्र-पुष्प विहित हैं, वे सभी भगवती गौरी को भी प्रिय हैं। इसके साथ ही शंकर पर चढ़ाने के लिए जिन फूलों का निषेध है, वे भी भगवती पर चढ़ाए जाते हैं। जितने लाल फूल, श्वेत कमल, पलाश, अशोक, चंपा, मौलसिरी, मदार, कुंद, लोध, कनेर, आक, शीशम और अपराजित (शंखपुष्पी) आदि के फूलों से देवी की भी पूजा की जाती है। इन फूलों में आक और मदार इन दो फूलों का निषेध भी मिलता है। देवीनामर्कमंदारौ… (वर्जयेत)। अत: ये दोनों विहित भी हैं और प्रतिषिद्ध भी हैं। जब अन्य विहित फूल न मिले तब इन दोनों का उपयोग करें। दुर्गा से भिन्ना देवियों पर इन दोनों को न चढ़ाएं। किंतु दुर्गा जी की पूजा में इन दोनों का विधान है।
आक और मदार की तरह दुर्वा, तिलक, मालती, तुलसी, भंगरैया और तमाल विहित-प्रतिषिद्ध हैं और निषिद्ध भी हैं। विहित- प्रतिषिद्ध के संबंध में तत्वसागरसंहिता का कथन है कि जब शास्त्रों से विहित फूल न मिल पाएं तो विहित-प्रतिषिद्ध फूलों से पूजा कर लेना चाहिए।
शिव पार्वती के दांपत्य का महत्त दिन
हरियाली तीज
हरियाली तीज पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। मान्यता के अनुसार यह त्योहार तीन दिन का होता है, लेकिन आजकल इसे एक ही दिन मनाया जाने लगा है। इस दिन विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस मौके पर विवाहित महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं और हाथों में मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं। इस मौके पर मां पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। हरियाली तीज उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला पर्व है। इसका धार्मिक व सांस्कृति महत्व भी बहुत अधिक है। पर्यावरण की दृष्टि भी हरियाली तीज बहुत ही खास पर्व है। इस दिन पेड़ पौधे लगाने के अभियान भी चलाये जाते हैं। आदि पेरु-पर्व (तमिल पंचांग का आदि महीने के 18वें दिन मनाया जाने वाला पर्व) भी इसी दिन पड़ता है।
क्यों है शिव-पार्वती को प्रिय सावन
शिव और पार्वती को सावन का महीना इतना प्रिय क्यों है, इसे लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार सनत कुमारों ने जब भगवान शिव से सावन माह के प्रिय होने का कारण पूछा, तो भगवान शिव ने इसका उत्तर दिया- कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति द्वारा अपने देह का त्याग किया, उससे पहले देवी सती ने महादेव को प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने राजा हिमाचल और रानी मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और पार्वती के रूप में देवी ने अपनी युवावस्था में, सावन के महीने में अन्ना, जल त्याग कर, निराहार रह कर कठोर व्रत किया था। मां पार्वती के इस व्रत से प्रसन्ना होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया। तभी से भगवान महादेव सावन का महीन अतिप्रिय है।