रायबरेली। ऊंचाहार में मोहब्बत के सामने धर्म और जाति के बंधन नगण्य हो जाते है। हसीरून निशा की मुहब्बत की राह में मजहब आयी तो उसने इस मजहबी दीवार को तोड़ दिया और मालती बनकर अपने प्यार को हासिल कर लिया। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उसने बीस साल का लंबा सफर भी तय किया था। इस शादी मे दोनों समुदाय के लोगो की भागीदारी ने सौहार्द की भी मिसाल भी पेश की है।
मुहब्बत पाने के लिए तोड़ी मजहब की दीवार
मामला ऊंचाहार क्षेत्र के गाँव पयागपुर नंदौरा का है। गाँव की हसीरून निशा का निकाह करीब 21 साल पहले गाँव मे ही अपने ही धर्म के एक युवक से हुआ था। लेकिन हसीरून निशा के दिल मे गाँव के भारतलाल प्रजापति पहले ही बस चुके थे। समाज और मजहब के बंधन को तोड़ना हसीरून निशां के लिए आसान नहीं था, इसलिए उसने निकाह को कुबूल कर लिया था। लेकिन भारतलाल से दूर रहना भी उसके लिए मुश्किल था। जिसका अंजाम उसके तलाक से हुआ। उसके बाद हसीरून निशा ने बड़ा फैसला किया और बिना शादी किए ही भारतलाल के साथ रहने लगी। इस दौरान उसने एक पुत्र को जन्म भी दिया। अब यह बेटा अकेला प्रजापति 18 साल का युवा है। जिसके लिए रिसते भी आने लगे है। जब बेटे की शादी की बात सामने आयी तो समाज व बीरदारी के लोगो ने समझाया कि बिना शादी किए बेटे के विवाह की रसमे नहीं निभा सकते है।
उसके बाद दोनों ने विवाह का फैसला कर लिया और गुरुवार को विधिवत वैदिक रीति रिवाज से भारतलाल और हसीरून निशा ने मालती बनी दुल्हन का विवाह सम्पन्न हुआ। जिसमें प्रजापति समाज के साथ साथ सनातन धर्म के अन्य लोग भी इस शादी मे शामिल हुए। इस शादी में दूल्हा का युवा बेटा सबके आकर्षण का केंद्र रहा।
गाँव के प्रधान राज किशोर तिवारी का कहना है कि गाँव मे दोनों समुदाय के लोगो की इस शादी के लिए सहमति थी। और शादी मे दोनों समुदाय के लोग भी शामिल थे। जिससे सौहार्द की आदर्श मिशाल भी सामने आयी है।
रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्र/सर्वेश त्रिपाठी