दिल्ली की नई आबकारी नीति 2021-22 के तहत हुए कथित घोटाले पर केन्द्र और दिल्ली सरकार आमने – सामने है। 17 अगस्त को सीबीआई ने इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित कुल 15 लोगों पर एफ आई आर दर्ज किया है और ठीक इसके दो दिन बाद 19 अगस्त को सीबीआई ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास सहित 7 राज्यों के कुल 21 स्थान पर छापा मारा था। तकरीबन 14 घंटे तक चले इस छापे में कथित तौर पर सीबीआई को कई महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले हैं। सीबीआई ने मनीष सिसोदिया का लैपटॉप और मोबाइल फोन भी जब्त कर लिया है, दोनों तरफ से बयानबाज़ी और प्रेस कान्फ्रेस का दौर जारी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि बीजेपी अरविंद केजरीवाल की बढती लोकप्रियता से घबराकर ऐसी कारवाई करवा रही है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा का कहना है कि वो भ्रष्टाचार पर जीरो टाॅलरेन्स वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीति के साथ अडिग है। भाजपा मुखर होकर मनीष सिसोदिया, अरविन्द केजरीवाल सहित दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि आबकारी नीति क्या होती है ? दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति में क्या परिवर्तन किए थे ? नयी आबकारी नीति की उपराज्यपाल ने सीबीआई से क्यों शिकायत की ? सीबीआई द्वारा दर्ज एफ आई आर में मनीष सिसोदिया सहित सभी आरोपियों पर क्या-क्या आरोप लगाए गए हैं? दिल्ली सरकार ने शिकायत के बाद नई आबकारी नीति को क्यों वापस ले लिया ? और आखिरी सवाल कि आबकारी नीति पर रस्साकशी महज एक सियासी जंग है या सचमुच ईमानदारी का मुखौटा लगाए अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार भ्रष्टाचार में संलिप्त है?
आबकारी नीति ( एक्साइज पाॅलिसी) राज्य सरकार द्वारा लागू की गई वह व्यवस्था है जिसके तहत शराब का व्यापार यानी लाइसेंस वितरण, थोक एवं खुदरा क्रय विक्रय होता है।
दिल्ली सरकार ने वर्ष 2021-22 के लिए नई आबकारी नीति को मंजूरी दी थी, जो 17 नवंबर 2021 से लागू हो गयी थी। नई अबकारी नीति के तहत प्रत्येक वार्ड में तीन से चार शराब की दुकानें खोली गयी थी। पहले 272 वार्ड में 79 ऐसे वार्ड थे, जहां एक भी शराब की दुकानें नहीं थीं। वहीं 45 वार्ड ऐसे थे, जहां एक या दो दुकानें ही थीं, केवल आठ फीसदी वार्ड ऐसे थे, जहां पर 6 से 10 शराब की दुकानें थीं। लेकिन नई आबकारी नीति के तहत दिल्ली के कुल 32 जोन में कुल 850 दुकान खोलने की योजना थी, जिसमें से 650 दुकानें खुल गई हैं। दिल्ली में शराब पीने की कानूनी उम्र सीमा 25 वर्ष से घटकर 21 वर्ष कर दी गई। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर संचालित स्वंतत्र दुकानें और होटलों पर 24 घंटे शराब की बिक्री की छुट मिली। शराब की दुकानों का साइज बढ़ा दिया गया।
लाइसेंसधारक मोबाइल एप या वेबसाइट के माध्यम से ऑर्डर लेकर शराब की होम डिलीवरी की व्यवस्था की गयी। एल 1 लाइसेंसधारी का कमीशन 2 प्रतिशत से बढाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था।सबसे बड़ी बात यह थी कि नई आबकारी नीति से पहले शराब बिक्री के व्यापार में दिल्ली सरकार पूरी तरह शामिल होती थी। दिल्ली में सरकार की अपनी शराब की दुकानें होती थीं, जिन्हें आबकारी विभाग द्वारा नियंत्रित किया जाता था। लेकिन, नई नीति के तहत इस पूरे ढांचे को खत्म कर दिया गया था। दिल्ली सरकार ने खुद को इससे बाहर किया था ,दिल्ली सरकार का तर्क था की इससे राज्य का राजस्व बढ़गा।
मुख्य सचिव नरेश कुमार की तरफ से सौंपी रिपोर्ट के आधार पर उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दिनांक 22 जुलाई को ही दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति 2021-22 में नियमों के कथित उल्लंघन और प्रक्रियागत खामियों को लेकर इसकी सीबीआई जांच कराए जाने की सिफारिश कर दी थी। रिपोर्ट की एक प्रति मुख्यमंत्री को भी भेजी गई थी।
उल्लेखनीय है कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि दिल्ली सरकार ने कोरोना के नाम पर शराब ठेकेदारों को पक्षपातपूर्ण तरीके से फायदा पहुंचाते हुए उनकी 144.36 करोड़ की लाइसेंस फीस माफ कर दी जिससे दिल्ली के राजस्व को भारी नुकसान हुआ।
सीबीआई द्वारा किए गए एफ आई आर में मनीष सिसोदिया सहित कुल पंद्रह लोगों के नाम हैं तो 16वें नम्बर पर अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है। एफआईआर में इन लोगों पर कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाने तथा सरकारी अधिकारियों ने कम्पीटेंट अथॉरिटी से मंजूरी लिए बगैर ही आबकारी नीति बनाने का आरोप है। इसका मकसद उन कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाना था, जिन्हें टेंडर दिए गए थे। एफआईआर में में यह भी आरोप है कि ऑनली मच लाउडर नामक एक एंटरटेनमेंट और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के पूर्व सी ई ओ विजय नायर, परनोद रिचर्ड कंपनी के पूर्व कर्मचारी मनोज राय, ब्रिंडको स्पिरिट्स के मालिक अमनदीप ढल, इंडोस्पिरिट्स के मालिक समीर महेंद्रु ने इस विवादित आबकारी नीति को बनाने और लागू कराने के दौरान अहम भूमिका निभाई और इसी दौरान नीति तैयार करने में गड़बड़ी की गई।
इसके अतिरिक्त रिटेल प्राइवेट लिमिटेड गुरुग्राम के डायरेक्टर अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा, अर्जुन पांडे जो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के करीबी हैं। ये लोग शराब लाइसेंसियों से आर्थिक फायदा लेकर उसे आरोपी अफसरों तक डायवर्ट करने में शामिल थे। राधा इंडस्ट्रीज के खाते में इंडोस्पिरिट्स के समीर महेंद्रु द्वारा एक करोड़ रुपए भेजे गए थे। गौरतलब है कि राधा इंडस्ट्रीज के संचालक दिनेश अरोड़ा हैं, जो मनीष सिसोदिया के बहुत करीबी हैं।
अब मुख्य सचिव की रिपोर्ट और सीबीआई द्वारा दर्ज एफआरआई को संयुक्त रूप से देखे तो कहीं न कहीं सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर, मुख्य संचिव द्वारा रिपोर्ट में लगाए आरोपों की पुष्टि करते हैं। एफआईआर पढते ही प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा और अरुण पांडे जो कि मनीष सिसोदिया के बेहद करीबी हैं। ये लोग शराब व्यापारियों से कमीशन लिया करते थे। कमीशन के बदले में ही लाइसेंस दिया जाता था। मुख्य सचिव के रिपोर्ट और सीबीआई द्वारा दर्ज एफआइआर में जो भी आरोप लगाए गए है, वो तकनीकी हैं। जिससे पता चलता है कि दोनों ने किसी पूर्वाग्रह से नहीं अपितु साक्ष्य के आधार पर आरोप लगाए हैं और सबसे बड़ी बात जो मनीष सिसोदिया और दिल्ली सरकार को कटघरे में खड़ा करती है कि जैसे ही उपराज्यपाल ने सीबीआई को जाँच सौंपा ठीक उसी दिन दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति को रद्द कर दिया। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर नई आबकारी नीति दिल्ली की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी थी और अपनी योजना अनुसार ठीक चल रही थी तो फिर किसी जाँच से घबराकर इसे वापस लेने की क्या जरूरत थी? ऐसे में भले अरविंद केजरीवाल मनीष सिसोदिया और उनके प्रवक्ता गण डंके की चोट पर अपनी ईमानदारी का गुणगान करें। लेकिन वे सब इस घोटाले के इतर सभी मसलों पर अपनी बात रख रहें है। लेकिन नई आबकारी नीति को टाल रहें हैं। ऐसे में इन आरोपों को केवल सियासी लड़ाई कहना गलत होगा। कहीं न कहीं कोई गड़बड़ी तो जरूर हुई है, ऐसा प्रतीत होता है।
सीबीआई ने छापामारी के बाद मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल लगातार भाजपा पर हमलावर हैं। छापा वाले दिन पहले अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कान्फ्रेस कर न्यूयार्क टाइम्स में छपी दिल्ली शिक्षा पर प्रकाशित आलेख दिखाकर भाजपा को कोसते रहे। उनकी कोशिश रही कि छापामारी को राजनीतिक रंग दिया जाए। ध्यान भटकाने की कोशिश कहना ज्यादा उचित होगा। दूसरे दिन अरविंद केजरीवाल भाजपा पर चार विधायकों को 20 करोड़ में खरीदने का आरोप लगाते रहे, ठीक उसके अगले ही दिन ऑपरेशन लोटस का न सिर्फ शिगूफा छोड़ा अपितु विधानसभा की विशेष सत्र बुलाया। अब इस पूरी कारवाही को देखें तो अरविंद केजरीवाल की झूठ का स्पष्ट अंदाजा हो जाता है। पहली बात की अगर दिल्ली सरकार का शिक्षा माॅडल सचमुच भी उच्च कोटि का है तब भी अगर आरोप नई आबकारी नीति पर लग रही है तो उन्हें भी बात इस खास मुद्दे पर ही करनी चाहिए और अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए।
दूसरी बात सिर्फ चार विधायक को तोड़ कर भाजपा दिल्ली की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती है। क्योंकि दिल्ली विधानसभा के कुल 70 विधानसभा सीट में से 62 आम आदमी पार्टी के पास है और सिर्फ 8 सीट ही भाजपा के पास है, जबकि सरकार बनाने की लिए 36 सीटें चाहिए। तीसरी बात जितनी सीट सरकार बनाने के लिए भाजपा को चाहिए, उतने विधायकों को तोड़ना आसान नहीं होगा क्योंकि वर्तमान में भाजपा के पास महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे जैसा कोई चेहरा नहीं है। इसीलिए भाजपा चाहकर भी दिल्ली में ऑपरेशन लोटस नहीं चला सकती है। आम आदमी पार्टी यह भी कह रही है कि भाजपा ने आम आदमी पार्टी के विधायकों को खरीदने के लिए 800 करोड़ रूपए रखा है, तो सवाल होता है कि अरविंद केजरीवाल के पास यह आंकड़ा आया कहाँ से और अगर उन्हें सचमुच ऐसी जानकारी है तो वे भाजपा पर कानूनी कारवाई क्यों नहीं करते हैं? सबसे बड़ी बात कि जब अरविंद केजरीवाल ने बैठक बुलाया तो तकरीबन 56 विधायक उपस्थित थे। मनीष सिसोदिया दिल्ली से बाहर थे और बाकी विधायक भी अरविंद केजरीवाल के सम्पर्क में थे। ऐसे में प्रतीत है कि आम आदमी पार्टी ऑपरेशन लोटस के नाम पर जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। हालांकि जैसे- जैसे जांच आगे बढेगी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। एक कवि की दो पंक्तियाँ इस बात को स्पष्ट करती हैं कि – “कब तक छिपे रहोगे पत्तों की आर में, एक दिन तो आना होगा खुले बाजार में”