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काश! कोई पर्यावरण दिवस पर यह सोच लेता, कोई भी पौधा न सूखे

दया शंकर चौधरी

इस बार जहां एक ओर पर्यावरण दिवस पर कई लोगों ने नए पौधे लगाकर खुशी जताई तो कुछ लोगों ने ऐसे ही वृक्षों के साथ फोटो खिंचवा कर पर्यावरण दिवस का संदेश दिया। परंतु यह सोचने की बात है कि हर वर्ष लाखों पेड़ लगाए जाते हैं, जो पालन पोषण ना मिलने की वजह से नष्ट हो जाते हैं। किसी बच्चे को जन्म देना और उसकी हिफाजत ना करना शायद यह सबसे बड़ा अन्याय है।

असली मानवता तब दिखती है जब किसी अनाथ के हाथ को पकड़ कर उसके जीवन को खुशहाल बनाया जाए। ऐसे ही अगर हम सच में पर्यावरण दिवस मनाना चाहते हैं तो किसी भी पौधे को अपना बच्चा समझ कर पालना शुरू कर दें, जिससे वह पौधे से वृक्ष बन कर लोगों को ऑक्सीजन ताजी हवा के साथ हरियाली बना कर खुशियां बांट सकें। एक ऐसा ही संदेश रानी अवंती बाई कन्या महाविद्यालय की चित्रकार एवं प्रवक्ता डॉ अनु महाजन ने अपनी पेंटिंग में एक कटे हुए वृक्ष का दर्द बयां किया है। शायद उन्होंने इसलिए दर्शाया है कि इस तरह से एक वृक्ष लोगों को ऑक्सीजन के माध्यम से जीवन प्रदान करता है परंतु उसके जीवन को लोग बढ़ती आबादी एवं आज के समाज को देखते नष्ट करते जा रहे हैं। शायद पर्यावरण दिवस पर इससे बड़ा संदेश नहीं हो सकता।

विश्व पर्यावरण दिवस पर अवंती बाई लोधी महिला वि.वि. के चित्रकला विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनु महाजन ने ‘कट द ग्रीड नॉट द ग्रीन्स’ थीम पर पेंटिंग बनाई। इस पेंटिंग के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया है । उन्होंने बताया कि कोरोना काल में लॉकडाउन में प्रकृति पूर्णता स्वस्थ हो गई थी। इससे ये पता चलता है कि प्रकृति को मानव द्वारा ही प्रदूषित किया जाता है। अपनी पेंटिंग के माध्यम से बताया कि प्रकृति मनुष्य को हवा, जल और जीवन देती है। हमारे भी प्रकृति के प्रति कुछ कर्तव्य हैं, जिन्हें अक्सर मनुष्य भूल जाता है और प्रकृति उसे बोध कराती है। यह बोध एक त्रासदी के रूप में हमारे सामने आता है।

इसके अलावा राष्ट्रीय गौ उत्पादक संघ से जुड़े मनोज कुमार वाजपेयी ने एक वीडियो जारी करते हुए सुझाव दिया है कि वृक्षारोपण के बाद उनकी देखभाल और सिंचाई आदि की व्यवस्था कैसे करनी चाहिए। वीडियो में समझाया गया है कि मिट्टी के घड़े के माध्यम से पूरे एक सप्ताह तक रोपे गये पौधे को कम पानी से लगातार सिंचाई की जा सकती है।

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