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राजस्थान के निकाय चुनाव का निहितार्थ


राजस्थान में ग्राम पंचायत चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में विपक्षी भाजपा ने रिकार्ड जीत हासिल की है। इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की परेशानी बढ़ गई है। सचिन पायलट और उनके समर्थकों की कांग्रेस में वापसी तो हो गई है। लेकिन अशोक गहलोत से उनके संबन्धों में कटुता पूर्ववत है। पंचायत चुनाव परिणामों से कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा प्रसन्न बताया जा रहा है। राजस्थान के चुनाव परिणामों का व्यापक निहितार्थ है। इसका सन्देश केवल अशोक गहलोत के लिये ही नहीं है,बल्कि हाईकमान भी इसके दायरे में है। यह चुनाव सामान्य परिस्थिति में नहीं हुए थे।

चुनाव प्रक्रिया के दौरान ही पंजाब में किसानों के नाम पर आंदोलन शुरू हो गया था। इस आंदोलन में ट्रैक्टर चलाने सबसे राहुल गांधी सबसे पहले पहुंचे थे। इसके बाद अशोक गहलोत के सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था। जबकि राजस्थान के किसानों में नए कृषि कानून पर कोई नाराजगी नहीं थी। उनका अनुभव तो पुरानी व्यवस्था के प्रति कटु था। वह इसमें सुधार चाहते थे। केंद्र सरकार ने इसके अनुरुप ही कानून बनाये थे। इसमें पिछली व्यवस्था को कायम रखते हुए नए विकल्प दिए गए थे। इसके माध्यम से किसानों के अधिकार बढ़ाये गए थे। वास्तविक किसान जानते थे कि यह आंदोलन उनके हितों के विरुद्ध है।

अशोक गहलोत अनुभवी है, वह भी हकीकत समझते होंगे। लेकिन कांग्रेस हाईकमान के विरुद्ध जाने का उनमें साहस नहीं था। उन प्रदेशों में शामिल है जहां भारत बंद को सरकारी समर्थन व संरक्षण मिला। भाजपा इस बन्द को किसान हितों के प्रतिकूल बता रही थी। वह अपनी बात लेकर किसानों के बीच गई। यह बताया कि कृषि कानूनों में किसानों के अधिकार बढ़ाये गए है। मंडी समिति व न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था समाप्त नहीं होगी। ऐसे में आन्दोलन और भारत बंद केवल किसानों को भ्रमित करने के लिए था। राजस्थान के किसानों ने यह बात समझी। उसी के अनुरूप उन्होंने चुनाव में मतदान किया। भाजपा इस सफलता से उत्साहित है। उसने इसे कांग्रेस के खिलाफ मुद्दा बना लिया है।

पार्टी की ओर से कहा गया कि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में ढाई करोड़ मतदाताओं में मुख्यत: किसान मतदाता थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों, योजनाओं और कृषि सुधारों को स्वीकारा है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर एवं पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव कहा कि राजस्थान के स्थानीय निकाय चुनावों ने दशकों के ट्रेंड को बदल कर रख दिया है। इस बार प्रदेश में सरकार तो कांग्रेस की है, लेकिन जीत की कहानी भारतीय जनता पार्टी ने लिखी है। राज्य के मतदाताओं ने प्रदेश का ट्रेंड बदल दिया है। आंदोलन के समय ही राजस्थान में पंचायत राज और जिला समितियों के हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है।

पंचायत समितियों, ब्लॉक पंचायतों एवं जिला परिषदों के चुनाव परिणाम ये स्पष्ट करते हैं कि राजस्थान के करोड़ों किसान कृषि सुधारों के पक्ष में हैं। इसी तरह ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में भी हमें उनचास सीटें मिली। सबसे अधिक वोट भाजपा को मिले। बिहार विधान सभा चुनाव और गुजरात, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में हुए उप चुनावों में भी देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों एवं योजनाओं में अटूट विश्वास व्यक्त किया। अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय निकाय के भी चुनाव हो रहे हैं जिसमें भारतीय जनता पार्टी को भारी सफलता मिली है। दो सौ चालीस जिला परिषदों में से छियानबे जिला परिषद् सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार निर्विरोध विजयी घोषित हुए हैं। इसी तरह, 8291 ग्राम पंचायत में से 5410 सीटों पर भाजपा निर्विरोध विजयी हुई है।

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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