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कर्म का महत्व

हिंदू धर्म में कोई भी वेद, पुराण उपनिषद, महाकाव्य, खंडकाव्य कोई भी पौराणिक कथा पढ़ कर देख लो सब ग्रंथो में एक बात समान मिलेगी और वह है कर्म की महत्वता। सतयुग हो चाहे द्वापर या त्रेता युग हो कोई भी युग कर्म से अछूता नहीं रहा है। महाभारत में भी देवव्रत भीष्म को अपने कर्मों की सजा बाणों की शैया पर लेट कर भुगतनी पड़ी थी। कृष्ण लीला में कृष्ण भगवान को भी एक शिकारी ने तीर से अपने कर्म के कारण मारा था।

मूलभूत साक्षरता में सामुदायिक जुड़ाव और माता-पिता की भागीदारी

रामायण हो या महाभारत का कोई भी पात्र अपने कर्मों से पीछा नहीं छुड़ा पाया है। अपने कर्मों की सजा सभी को भुगतनी पड़ी है। बात अगर कलयुग की करें….वर्तमान समय में भी कोई आम इंसान हो या कोई नेता मंत्री सहकारी अधिकारी अपने कर्मों से नहीं भाग पाया है। कर्मों की सजा ऊपर नहीं मिलती, स्वर्ग और नरक इसी पृथ्वी पर विराजमान है।

इंसान जैसा कर्म करता है उसका फल उसी को उसी के अनुसार प्राप्त होता है हमने अक्सर वर्तमान में देखा होगा। लोग #भ्रष्टाचार करके अपनी तिजोरीया भरने में लगे हुए हैं। बिना यह जाने की गलत तरीके से, किसी का दिल दुखा कर या किसी का हक मारकर जो पैसा वह अपनी तिजोरी में भर रहे हैं। वह दूसरे रास्ते से खाली भी होता जा रहा है। इंसान बुरा #कर्म तो स्वयं करता है। मगर इसका परिणाम उसके परिवार को भी भुगतना पड़ता है।

जितने भी बड़े अधिकारी, कर्मचारी, मंत्री, नेताओं के बच्चे अक्सर लंगड़े लूले या मंदबुद्धि मिलेंगे या उनकी औलादे अय्याश और बिगड़ैल मिलेगी….यह गलत कर्मों की वजह से कमाए हुए पैसों का ही परिणाम है। इंसान के हर दुख पर उसके स्वयं के ही हस्ताक्षर पाए जाते हैं। क्योंकि सृष्टि का यह नियम है आप जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल पाओगे। भारतीय सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है। ऐसी अनगिनत पिक्चर बनी है। जिसमें कर्म की महत्वता को बल मिला है। ऐसी ही एक छोटी थी कथा मुझे याद आ रही है जो कई सालों से मेरे अंतर्मन में सदा विराजमान रहती है।

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एक गांव में श्याम लाल नाम का व्यापारी रहता था। उसका कारोबार भी बहुत अच्छा चल रहा था। वह पूरी इमानदारी से अपना व्यापार करता था उसके घर में बहुत खुशहाली थी एक दिन श्यामलाल के घर पर उसका एक मित्र रामलाल आया….श्यामलाल अपने मित्र को देख कर बहुत खुश हुआ…रामलाल ने अपनी व्यथा सुनाई। वह बेरोजगार हो गया था जमीन बिक गई थी, थोड़ा बहुत पैसा था। वह धीरे-धीरे खर्च होता जा रहा था। कमाई का कोई जरिया उसके पास नहीं था….क्योंकि राम लाल श्याम लाल का बचपन का मित्र था। सालों बाद दोनों मित्र मिले थे श्यामलाल को अपने मित्र की दशा पर बहुत दया आई…उसने अपने मित्र रामलाल से कहा “तुम मेरे साथ मिलकर व्यापार करो” अब दोनों मित्र एक साथ व्यापार करने लगे…और व्यापार भी धीरे-धीरे अच्छा चल रहा था।

बहुत सारा माल इकट्ठा हो जाने के पश्चात दोनों मित्र शहर में माल बेचने के लिए साथ में गए…वहां पर व्यापारी को माल बेचकर सारा पैसा इकट्ठा करके एक धर्मशाला में रात को रूके। रामलाल के मन में बेईमानी ने घर कर लिया…उसने सोचा कि अगर मेरा मित्र को मैं यहां पर मार दूं तो पूरा पैसा मेरा हो जाएगा और अपनी योजना को असली जामा पहनाने के लिए वह धर्मशाला से बाहर निकला और खाना लेने चल पड़ा। खाना वापस लेकर आते समय…वह जहर की एक गुड़िया ले आया और उसके खाने में जहर मिला दिया। दोनों ने साथ में बैठकर खाना खाया….मगर जहर ने श्यामलाल पर असर दिखाना चालू किया…और श्याम लाल की मृत्यु हो गई। राम लाल श्याम लाल को वहीं पर अग्नि के हवाले कर वापस लौट आया और श्यामलाल के घर पर झूठा रोना रोकर अपनी व्यथा सुनाने लगा…किस तरह उसके मित्र की तबीयत खराब हो जाने के कारण मृत्यु हो गई।

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वक्त गुजरता गया अब राम लाल के बहुत बड़ी कोठी हो गई थी, और वह बहुत बड़ा व्यापारी बन गया था। वक्त के साथ रामलाल के घर में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई रामलाल बहुत खुश हुआ। जब उसका पुत्र 10 साल का हो गया तो उसके पुत्र की तबीयत बिगड़ गई। अब वह अपने पुत्र को दिखाने के लिए बड़े से बड़े डॉक्टर से इलाज करा रहा था। मगर उसके पुत्र के स्वास्थ्य में कोई फायदा नहीं हो रहा था….और दिन-ब-दिन उसकी तबीयत खराब ही होती जा रही थी। रामलाल ने पैसा पानी की तरह उसके पुत्र के स्वास्थ्य को सही करने के लिए बहाया…मगर कोई फायदा नहीं हुआ….उसका सारा व्यापार चौपट हो गया। अब वह सिर्फ अपने पुत्र को सही कराने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा था। उसकी जमीन बिक गई पैसा भी पानी की तरह बह गया।

     कमल राठौर साहिल

एक दिन रामलाल अपने पुत्र के पास हताश होकर बेटा था…तभी उसके पुत्र की जोर जोर से हंसने की आवाज आई….यह दृश्य देखकर रामलाल सहम गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था …उसका पुत्र इस अंतिम समय में क्यों मुस्कुरा रहा था… जोर-जोर से अट्ठहास क्यों लगा रहा था। उसका पुत्र बोला “रामलाल पहचाना मुझे, मैं तेरा वही पुराना मित्र श्यामलाल हूं। जिसको तूने जहर देकर मार दिया था…मेरा तुझ पर बेईमानी से हड़पा गया कर्ज था। जो आज जाकर पूरा हुआ…आज तू फिर से उसी स्थिति में आ गया है जिस स्थिति में 10 साल पहले था।” इतना कहकर राम लाल के पुत्र ने देह त्याग दी…और रामलाल स्तब्ध खड़ा देखता रहा। इस छोटी सी कहानी का इतना सा सार है। इंसान अपने कर्मों से कभी भी पीछा नहीं छुड़ा सकता। मगर वर्तमान समय की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इंसान अपने कर्मों की सजा भुगत भी रहा है। मगर इस को कभी स्वीकार नहीं कर रहा है, और अपने कर्मों में कोई सुधार नहीं कर रहा है। बेईमानी से कमाया गया धन या तो अदालतों में खर्च होता है या अस्पतालों में खर्च होता है इंसान को अपने बुरे कर्मों की सजा इसी जन्म में भुगतनी पड़ती है। हमने अक्सर देखा होगा भिखारियों को पागलों को जानवरों को इनकी दयनीय स्थिति बता रही है यह सब अपने कर्मों की सजा इसी जन्म में भुगत रहे हैं।

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