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1990 में कश्मीर विवि के VC की हत्या के आरोपियों को बरी करने का फैसला SC ने रखा बरकरार

New Delhi। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कश्मीर यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति मुशीर-उल-हक (Musheer-ul-Haq) और उनके निजी सचिव की 1990 में हुई हत्या के मामले में सभी सात आरोपियों की बरी होने के फैसले को बरकरार रखा। इस मामले में सीबीआई की अपील को खारिज कर दिया गया। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ (Bench of Justices Abhay S Oka and Ujjwal Bhuyan) ने कहा कि इस केस की जांच और सुनवाई में कई प्रक्रियागत गलतियां हुईं, जिससे न्याय और सत्य दोनों प्रभावित हुए।

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SC upholds acquittal of accused in 1990 Kashmir University VC murder case

कोर्ट ने जांच पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच के दौरान कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि कड़ी आतंकरोधी कानून टाडा (टीएडीए) में जबरन कबूलनामे की व्यवस्था थी, लेकिन इसे निष्पक्ष माहौल में लिया जाना चाहिए था।

सीबीआई ने हत्याकांड को लेकर क्या दी थी दलील

सीबीआई के मुताबिक, इस मामले में मुख्य आरोपी हिलाल बेग प्रतिबंधित संगठन जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट्स लिबरेशन फ्रंट (जेकेएसएलएफ) का स्वयंभू प्रमुख था। संगठन के अन्य सदस्यों ने मिलकर 6 अप्रैल 1990 को वाइस चांसलर और उनके सचिव का अपहरण कर लिया था और सरकार से अपने तीन साथियों को रिहा करने की मांग की थी। वहीं मांगें पूरी न होने पर 10 अप्रैल 1990 को दोनों की हत्या कर दी गई थी।

विशेष अदालत का फैसला सही था- सुप्रीम कोर्ट

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत का फैसला सही था और इसमें दखल देने की कोई जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे कठोर कानूनों का दुरुपयोग होता था, इसलिए इन्हें बाद में हटा दिया गया।

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