- Published by- @MrAnshulGaurav
- Sunday, July 24, 2022
बिधूना। तहसील क्षेत्र के गांव कुदरकोट में भगवान भयानक नाथ के मंदिर में स्थापित शिवलिंग की पौराणिक महत्ता है। मान्यता है कि भगवान भोलनाथ यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। यहां पर हर वर्ष सावन माह में जिले के बाहर से हजारों लोग श्रद्धा के साथ आराधना करते आते रहे हैं। यहां पर सावन भर हजारों भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। सावन के दूसरे सोमवार को भी भयानक नाथ मंदिर पर पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने वाने भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलेगी।
औरैया जिला जहां क्रांतिकारियों की भूमि के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज है वहीं पौराणिक धरोहरों के साथ बिधूना तहसील क्षेत्र का गांव कुदरकोट (पूर्व में कुंडिनपुर) का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। मान्यता है कि यहां भगवान कृष्ण की ससुराल है, यहीं से भगवान कृष्ण द्वारा रूकमिणी के हरण करने के प्रमाण मिलते है।
जानकार बताते है कि कुदरकोट गांव कभी कुंडिनपुर बाद में कुंदनपुर के नाम से जाना जाता था और द्वापर कालीन राजा भीष्मक की राजधानी हुआ करती थी। रूकमणी के पिता महाराज भीष्मक द्वारा आज से लगभग पांच हजार साल पूर्व पुरहा नदी के तट के पास एक शिवलिंग की स्थापना कराई गयी थी। जो कालांतर में भगवान भयानक नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
पांडवों ने भी की पूजा अर्चना-
मान्यता है कि अज्ञातवास के समय पांडव (युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव) अपनी मां कुन्ती के साथ यहां पर कुछ समय के लिए रूके थे। जिस दौरान उनके द्वारा इस शिवलिंग पर पूजा अर्चना की गयी। इसके बाद पांडव यहां से अज्ञात स्थान के लिए रवाना हो गये।
मनोकामना होती है पूर्ण –
मंदिर के पुजारी राम कुमार चौरसिया ने बताया कि यह पौराणिक के साथ-साथ सिद्ध शिवलिंग हैं। कहा कि यहां पर सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। कहा कि सावन महीने में भक्तों को सच्चे मन से भगवान भोले शंकर को दूध, दही, घी, मक्खन, गंगाजल, बिल्व पत्र, आक, धतूरा आदि चढ़ाकर आराधना करनी चाहिए, जिससे उनकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
जलाभिषेक का है महत्व –
पंडित देवेश शास्त्री के अनुसार सावन मेें भगवान शिव के अभिषेक का विशेष महत्व है। पार्थिव शिवलिंग के पूजन व जलाभिषेक से भगवान भोलेनाथ का आर्शीवाद मिलता है। बताया कि समुद्र मंथन में निकले विष का पान करने के बाद जलन को शांत करने लिए भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया गया था।
पांच दशक पहले कराया गया पुर्नरोद्धार –
मंदिर के पुजारी राम कुमार चौरसिया ने बताया कि यह मंदिर जर्जर हो गया था। लगभग पांच दशक पहले उनके पिता सुभाष चन्द्र चौरसिया ने लोगों की मदद से इसका पुर्नरोद्धार कराया था। बताया कि सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए गैर जनपदों तक के हजारों लोग यहां आते हैं।
तीन साधुओं की हो चुकी है हत्या –
भयानक नाथ पर तीन साधु लज्जाराम, हल्केराम व रामशरण रहते थे। जो कि मंदिर में पास में ही खड़े बिलायती बबूलों की आड़ में होने वाली गोकशी का विरोध करते थे। आरोपियों का मानना था कि यही साधु गोकशी की सूचना पुलिस को देते हैं। जिसके चलते गोकशी करने वाले लोगों ने योजनावद्ध तरीके से 14/15 अगस्त 2018 की रात्रि मंदिर पर पहुंचकर वहां पर सो रहे तीनों साधुओं को धारदार हथियार से काट डाला था। उक्त कातिलाना हमले में दो साधुओं की मौके पर मौत हो गयी थी जबकि एक साधु रामशरण की उपचार के दौरान मौत हो गयी थी। साधु लज्जाराम बांजरहार, हल्केराम इटावा जिले के बकेवर एवं रामशरण बीबीपुर के रहने वाले थे। जो कि काफी समय से मंदिर पर रहे थे और निरंतर गोकशी का विरोध कर रहे थे।
साधुओं की हत्या की गूंज लखनऊ तक पहुंचने के बाद उस समय घटना को मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ द्वारा संज्ञान में लिए जाने बाद पुलिस की स्पेशल टीम द्वारा जहां 72 घंटे में घटना का खुलासा कर करीब एक दर्जन आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय भेजा था, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था। घटना के बाद भयानक नाथ मंदिर पर करीब चार साल से पीएसी का पहरा रहता है। यहां पर पीएसी के चार जवान व एक गाड़ी 24 घंटे मौजूद रहती है।
मंदिर पर जाने का कच्चा रास्ता –
प्राचीन मंदिर होने के बाद भी बिधूना-भरथना मार्ग से मंदिर तक जाने वाला मार्ग कच्चा व ऊबड़-खाबड़ है। सिर्फ मंदिर के पास करीब 70 आरसीसी ही पिछले दिनों बनी है। मंदिर में साधुओं की हत्या के बाद यहां पर तत्कालीन जिलाधिकारी श्रीकान्त मिश्रा व तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष दीपू सिंह के अलावा पुलिस विभाग तत्कालीन आईजी आलोक सिंह, व तत्कालीन एसपी नागेश्वर सिंह के अलावा तमाम आला अधिकारी व जनप्रतिनिधि भी घटना स्थल पर पहुंचे थे। इस दौरान तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष ने मंदिर के लिए जाने वाले मार्ग को पक्का कराने की सार्वजनिक तौर पर घोषणा भी की थी, किन्तु आज तक मंदिर को जाने वाला मार्ग कच्चा का कच्चा ही है।
रिपोर्ट – शिव प्रताप सिंह सेंगर