नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट 18 मार्च को उस याचिका पर सुनवाई करने वाला है, जिसमें गंभीर अपराधों में आरोपी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोकने की मांग की गई है। इस याचिका पर न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ सुनवाई करेगी।
याचिका में क्या की गई मांग?
यह याचिका अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से दायर की गई थी, जिसमें अनुरोध किया गया है कि जिन प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों में आरोप तय हो चुके हैं, उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाए। इसके साथ ही, केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है कि ऐसे आरोपियों को चुनावी प्रक्रिया से दूर रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही मांगा था जवाब
सितंबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और चुनाव आयोग से इस याचिका पर जवाब मांगा था, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। याचिका में कहा गया है कि भारतीय विधि आयोग और अदालत के पहले के निर्देशों के बावजूद केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया।
राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या
याचिका के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव में चुने गए 539 सांसदों में से 233 (लगभग 43%) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे। यह आंकड़े एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट पर आधारित हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2009 से अब तक गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 109% की बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं, एक सांसद ने अपने खिलाफ 204 आपराधिक मामले घोषित किए थे, जिनमें गैर इरादतन हत्या, घर में जबरन घुसना, डकैती, आपराधिक धमकी जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं।
राजनीतिक दलों पर आरोप
इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल एक-दूसरे से होड़ में अपराधियों को टिकट देने से परहेज नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कोई भी पार्टी अकेले यह जोखिम नहीं उठा सकती कि वह अपराधी छवि वाले उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर दे और दूसरी पार्टी उन्हें टिकट दे दे। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि राजनीति के अपराधीकरण से जनता को भारी नुकसान हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद पार्टियां गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट दे रही हैं।