भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विस्तार की मांग उठाई है। इस बार भारत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि जो देश स्थिति को जस का तस बनाए रखना चाहते हैं और यूएनएससी में विस्तार नहीं होने दे रहे, वे दूर की नहीं सोच पा रहे और प्रतिगामी सोच वाले देश हैं। भारत ने कहा कि इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। चीन की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और वैश्विक प्रशासन को बेहतर बनाने के मुद्दे पर खुली बहस का आयोजन किया गया। इस आयोजन में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश शामिल हुए।
भारत ने यूएन में इन तीन बदलावों की उठाई मांग
बैठक के दौरान यूएन में भारत के स्थायी राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने कहा कि वैश्विक दक्षिण को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत और कई अन्य अहम देशों को भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। भारतीय राजदूत ने 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में विस्तार की मांग दोहराई और कहा कि यूएन में तीन बड़े बदलाव होने बेहद जरूरी हैं। हरीश ने कहा कि पहले तो सुरक्षा परिषद में स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए, दूसरा दस्तावेज आधारित सुलह समझौते होने चाहिए और तीसरा बड़े वैश्विक मुद्दों पर नतीजों के लिए एक तय समयसीमा होनी चाहिए।
‘दुनिया बदली, यूएन को भी बदलना चाहिए’
भारतीय राजनयिक ने कहा कि जो देश सुरक्षा परिषद के विस्तार का विरोध कर रहे हैं, वे यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं और छोट सोच के हैं। उनकी सोच प्रतिगामी है। इसे और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।’ पीएम मोदी के बीते साल सितंबर में दिए एक बयान का जिक्र करते हुए हरीश ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की अहमियत बनाए रखने के लिए सुधार जरूरी हैं। भारतीय राजनयिक ने कहा कि ‘भारत लगातार यूएन में सुधार की मांग उठा रहा है। दुनिया बदल चुकी है और समय के साथ संयुक्त राष्ट्र को भी बदलने की जरूरत है। यह मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को प्रदर्शित करना चाहिए न कि साल 1945 की व्यवस्था को।’