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विश्व शांति का भारतीय चिंतन

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

आतंकी हमलों के बाद से अमेरीका और यूरोपीय देशों में मुसलमानों के प्रति भेदभाव बहुत बढ़ गया था.नाइन इलेवन से इसकी शुरुआत हुई थी ,करीब दो दशक बाद भी इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है.य़ह भेदभाव और अपमान का सिलसिला केवल सामाजिक स्तर पर ही नहीं है .बल्कि इसमें सरकारी मशीनरी भी शामिल है. इस्राइल के शासन का अंदाज जग जाहिर है. इसमें मुस्लिम मुल्कों के प्रति कोई लचक कभी नही रही.

चीन ने तो अपने यहां मुसलमानों को अधिकार विहीन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. दूसरी तरफ इस्लामिक मुल्कों में सभी गैर मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है .इनको दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है.जबकि इनमें से किसी भी देश में भारत जैसी विविधता नहीं है.फिर भी इनके लिए सबको साथ लेकर चलना बेहद मुश्किल है .सभ्यताओं के संघर्ष का विचार आज भी इनकी नीतियों में दिखाई देता है.दूसरी तरफ भारतीय संस्कृति में मजहबी आधार पर वैमनस्य का विचार कभी नहीं रहा. य़ह दुनिया की एकमात्र संस्कृति है जिसमें सबके कल्याण की कामना की गई है-

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामयाः

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥

अर्थात
सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। इतना ही नहीँ भारतीय संस्कृति में वसुधा को कुटुंब माना गया-

अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम् ।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

अर्थात य़ह अपना बंधु है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है. वर्तमान भारत सरकार इसी साँस्कृतिक चेतना के साथ कार्य कर रही है.

उसकी सभी नीतियों में मुसलमान समान रूप से सहभागी है .किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं है .ऐसी सरकार को कट्टरपंथी मुल्क और लोग नसीहत दे रहे है .नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमन्त्री बनने के बाद सबका साथ सबका विकास का नारा दिया था. आठ वर्षो से उनकी सरकार इस पर अमल कर रहीं है . सबका साथ व सबका विकास को सरकार की नीति में प्रमुख स्थान दिया। इसके अनुरूप कार्य योजना बनाई गई। इनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार पिछले पांच वर्षों से इस नीति पर अमल कर रही है। दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अधिक तेजी से कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का संकल्प व्यक्त किया है।

सबका साथ सबका विकास पर हुए अमल ने एक नया आयाम जोड़ा है। अब सबका साथ सबका विकास के साथ सबका विश्वास भी जुड़ गया है। वोटबैंक की राजनीति ने चिंतन के दायरे को बहुत सीमित कर दिया है। केवल चुनावी चिंता से समाज का भला नही हो सकता। नरेंद्र मोदी भी चुनावी राजनीति में है। वह भी अपनी पार्टी को विजयी बनाने का प्रयास करते है लेकिन इसी को सामाजिक जीवन की सिद्धि नही मानते। वह इससे आगे तक की सोचते है। भावी पीढ़ियों और समाज के भविष्य के बारे में सोचते है। सामाजिक समरसता की प्रेरणा देते है।

आजादी के इतने वर्षों तक देश के कुछ ही हिस्से में विकास की रोशनी पहुंच सकी थी। मोदी सरकार का प्रयास है कि भारत भूमि की एक-एक इंच की जमीन को विकास की धारा के साथ जोड़ा जाए। देश में मुस्लिम बहनें तीन तलाक से मुक्ति की मांग कर रही हैं, लेकिन तीन तलाक के रास्ते में रोड़े अटकाए जा रहे थे। सत्ता का लालच ऐसा है कि आपातकाल लगाने वाले और उस समय आपातकाल का विरोध करने वाले एक साथ आ गए हैं।

नरेंद्र मोदी ने कार्ल मार्क्स के इस विचार में सुधार किया। उन्होंने वर्ग संघर्ष की जगह वर्ग सहयोग का सिद्धांत प्रतिपादित किया। मार्क्स ने केवल विचार प्रस्तुत किये थे। उन पर अमल नहीं किया था, स्वयं उनका क्रियान्वयन नहीं किया था। जबकि नरेंद्र मोदी ने वर्ग सहयोग का विचार बाद में प्रस्तुत किया, उसका क्रियान्वयन वह पिछले कई वर्षों से कर रहे है। मोदी कहते है कि दूसरा अर्थात सक्षम वर्ग की जिम्मेदारी यह है कि वह वंचित वर्ग को गरीबी से ऊपर लाने में सहयोगी बने।

इस तरह मोदी शासन, राजनीतिक पार्टियों और धनी वर्ग सभी की जिम्मेदारी तय करते है। नरेंद्र मोदी के शासन का यही आधार भी रहा है। सबका साथ सबका विकास की नीति को कथित धर्मनिरपेक्षता का विकल्प बनाया। यह बता दिया कि देश के मुसलमान वोटबैंक नहीं है। वह भी इंसान है। उनके जीवन की भी मूलभूत आवश्यकताएं है। सरकार का दायित्व है कि वह सभी का जीवन स्तर उठाने का प्रयास करे। यही सेक्युलरिज्म है। मोदी की यह नीति प्रभावी और लोकप्रिय रही है .

नरेंद्र मोदी को यूएई संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ऑर्डर ऑफ जायद से सम्मानित किया गया था। बहरीन, सऊदी अरब, फलस्तीन, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात यूएई जैसे देशों द्वारा पुरस्कार दिए गए हैं। आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता का सन्देश दिया था। उनका कहना था कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है। इसलिए सामाजिक समरसता का भाव रहना चाहिए। उपासना पद्धति में अंतर होने से भी इस विचार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

भारत में तो प्राचीन काल से सभी मत पंथ व उपासना पद्धति को सम्मान दिया गया। य़ह भारत की विचार दृष्टि है। निःस्वार्थ सेवा और सामाजिक समरसता भारत की विशेषता रही है। सेवा कार्य में कोई भेदभाव नहीं होता। संविधान की प्रस्तावना में ही बंधुत्व की भावना का उल्लेख किया गया है। यह शब्द हिंदुत्व की भावना के अनुरूप है।

इस दर्शन में किसी सम्प्रदाय से अलगाव को मान्यता नहीं दी गई। विविधता के बाद भी समाज एक है। भाषा,जाति,धर्म खानपान में विविधता है। उनका उत्सव मनाने की आवश्यकता है। कुछ लोग विविधता की आड़ में समाज और देश को बांटने की कोशिश में जुटे रहते हैं। लेकिन भारतीय चिंतन विविधता में भी एकत्व सन्देश देता है। हमारी संस्कृति का आचरण सद्भाव पर आधारित है। यह हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में रहने वाले ईसाई और मुस्लिम परिवारों के भीतर भी यह भाव साफ देखा जा सकता है। एक सौ तीस करोड़ का समाज भारत माता का पुत्र है। हमारा बंधु है।

क्रोध और अविवेक के कारण इसका लाभ लेने वाली अतिवादी ताकतों से सावधान रहना है। सेवा समरसता आज की आवश्यकता है। इस पर अमल होना चाहिए। इसी से श्रेष्ठ भारत की राह निर्मित होगी।वर्तमान परिस्थिति में आत्मसंयम और नियमों के पालन का भी महत्व है। समाज में सहयोग सद्भाव और समरसता का माहौल बनाना आवश्यक है। भारत ने दूसरे देशों की सहायता करता रहा है। क्योंकि यहीं हमारा विचार है।समस्त समाज की सर्वांगीण उन्नति ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है।

जब हिंदुत्व की बात आती है तो किसी अन्य पंथ के प्रति नफरत, कट्टरता या आतंक का विचार स्वतः समाप्त हो जाता है। तब वसुधैव कुटुंबकम व सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव ही जागृत होता है। भारत जब विश्व गुरु था,तब भी उसने किसी अन्य देश पर अपने विचार थोपने के प्रयास नहीं किये। भारत शक्तिशाली था, तब भी तलवार के बल पर किसी को अपना मत त्यागने को विवश नहीं किया। दुनिया की अन्य सभ्यताओं से तुलना करें तो भारत बिल्कुल अलग दिखाई देता है। जिसने सभी पंथों को सम्मान दिया। सभी के बीच बंधुत्व का विचार दिया। ऐसे में भारत को शक्ति संम्पन्न बनाने की बात होती है तो उसमें विश्व के कल्याण का विचार ही समाहित होता है। भारत की प्रकृति मूलतः एकात्म है और समग्र है। अर्थात भारत संपूर्ण विश्व में अस्तित्व की एकता को मानता है।

इसलिए हम टुकड़ों में विचार नहीं करते। हम सभी का एक साथ विचार करते हैं। समाज का आचरण शुद्ध होना चाहिए। इसके लिए जो व्यवस्था है उसमें ही धर्म की भी व्यवस्था है। धर्म में सत्य,अहिंसा,अस्तेय ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह,शौच, स्वाध्याय,संतोष,तप को महत्व दिया गया। समरसता सद्भाव से देश का कल्याण होगा। हमारे संविधान के आधारभूत तत्व भी यही हैं। संविधान में उल्लेखित प्रस्तावना,नागरिक कर्तव्य,नागरिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व यही बताते हैं। जब भारत एवं भारत की संस्कृति के प्रति भक्ति जागती है व भारत के पूर्वजों की परंपरा के प्रति गौरव जागता है, तब सभी भेद तिरोहित हो जाते हैं। भारत ही एकमात्र देश है, जहाँ पर सबके सब लोग बहुत समय से एक साथ रहते आए हैं। सबसे अधिक सुखी मुसलमान भारत देश के ही हैं।

दुनिया में ऐसा कोई देश है, जहाँ उस देश के वासियों की सत्ता में दूसरा संप्रदाय रहा हो। हमारे यहाँ मुसलमान व ईसाई हैं। उन्हें तो यहाँ सारे अधिकार मिले हुए है। योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि पूरे देश का डीएनए एक है। यह थ्योरी से प्रमाणित हुआ है। यहां आर्य द्रविण का विवाद झूठा और बेबुनियाद रहा है। भारत का डीएनए एक है। इसलिए भारत एक है। दुनिया की तमाम जातियां अपने मूल में ही समाप्त होती गई हैं। जबकि भारत में फलफूल रही हैं। पूरी दुनिया को भारत ने ही वसुधैव कुटुंबकम का भाव दिया है। इसलिए वह श्रेष्ठ है।

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