- Published by- @MrAnshulGaurav
- Thursday, June 23, 2022
सबका साथ सबका विकास की यात्रा आगे बढ़ी.इसमें एक नए अध्याय को जोड़ने की पटकथा बन चुकी है.पहली बार देश के सर्वोच्च पद पर इस समाज को प्रतिष्ठा मिलेगी. राजग उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्रपति निर्वाचित होना तय है. बेहतर होता कि विपक्ष राष्ट्रीय सहमति में सहभागी होता. राजनीति अपनी जगह है. लेकिन कतिपय विषयों पर राष्ट्रीय सहमति भी दिखनी चाहिए, लेकिन वर्तमान विपक्षी नेताओं से इसकी उम्मीद करना बेमानी है.
जब पकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक, डोकलाम में चीन से मुकाबले पर ये नेता राष्ट्रीय सहमति से अलग दिखाई दे रहे थे.
जब अनुच्छेद 370 की समाप्ति के समय इनके और पाकिस्तान के बयानों में समानता झलक रही थी, तब यह चुनाव तो राजनीति का ही विषय है. विपक्ष को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार उतारने का पूरा अधिकार है, लेकिन विपक्ष जनता है कि उसका उम्मीदवार विजयी नहीं हो सकता. यह केवल विरोध के लिए ही विरोध है.किन्तु इससे विपक्ष की मानसिकता एक बार फिर उजागर हुई है. आठ वर्षों से वह नरेंद्र मोदी के विरोध में बेचैन है. विपक्ष के लिए यह भटकाव का दौर है. दिलचस्प यह कि उसने कई वर्षो से वैचारिक भटकाव का सामना कर रहे नेता को अपना उम्मीदवार बनाया है.
ममता बनर्जी ने इस चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति में अपना कद बढ़ाने का अवसर मान लिया है. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले शरद पवार को किनारे लगाने का दांव चला था. उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव किया गया. शरद पवार दुर्गति के लिए तैयार नहीं हुए. फारुख अब्दुल्ला भी इसी कारण अलग हो गए. जिनको उम्मीदवार बनाया गया, वह भी शायद भटकते भटकते थक गए है. भविष्य के लिए कोई उम्मीद भी नहीं बची है. चुनाव प्रचार के दौरान बहुत कुछ कहने का अवसर मिलेगा. मन हल्का हो जाएगा. पराजित होंगे, तो क्या नाम नहीं होगा. वस्तुतः विगत आठ वर्षों से विपक्षी दल बेचैन हैं. वह नरेंद्र मोदी सरकार के सार्थक विरोध का तरीका समझने में विफल है.उनके हमले का विपरित असर होता है.
नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ जाती है. विपक्ष के समक्ष विश्वास का संकट आ जाता है. ऐसा नहीं कि नरेंद्र मोदी और उनके विरोधियों के बीच इस अंदाज का द्वन्द पहली बार हो रहा है. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी मोदी को इसी प्रकार के विरोध का सामना करना पड़ता था.इस विरोध से मोदी मजबूत और लोकप्रिय होते गए.उसी अनुपात में मुख्य विपक्षी कांग्रेस कमजोर होती गई. लेकिन कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं लिया. नरेंद्र मोदी गुजरात तक सीमित नहीं रहे. वह लगातर दूसरी बार भारी बहुमत से प्रधानमंत्री बने. कुछ भी हो, भाजपा की इस सफ़लता में सरकार की उपलब्धियों के साथ साथ विपक्ष का भी योगदान है. विपक्ष अपने इस योगदान से विगत आठ वर्षों में कभी विमुख नहीं हुआ.
कई नेताओं में तो नरेंद्र मोदी के विरोध का हद दर्जे तक जुनून रहा है. उन्होंने जेएनयू में सरकार विरोधी नारे सुने, उनको समर्थन देने के लिए दौड़ पड़े. बाद में पता चला कि यहां भारत विरोधी नारे लग रहे थे.आजादी की मांग हो रही थी, टुकड़े टुकड़े होने की दुआ की जा रही थी. इस तरह विपक्ष ने अपना नुकसान किया.
इसी तरह वह सीएए के उपद्रव को समर्थन देने पहुँच गया. बाद में पता चला कि कानून नागरिकता देने के लिए था. और उपद्रव नागरिकता समाप्त करने के असत्य पर आधारित था. कथित किसान आंदोलन में विपक्षी नेता दौड़ कर पहुँच गए थे. लेकिन मुद्दा यह उठा कि इन्होंने सत्ता में रहते हुए किसानों की भलाई में क्या किया था, इसके अलावा उनके समय में कितनी सरकारी खरीद होती थी, या न्यूनतम समर्थन मूल्य कितना था, उसका भुगतान कैसे होता था, आदि.यहीं दशा अग्निपथ पर है. विपक्ष ने हिंसक उपद्रव का समर्थक दिखाई दिया. जिन्होंने सत्ता में रहते हुए दस वर्ष तक सेना की अपेक्षित जरूरतों को पूरा नहीं किया, वह सेना को लेकर सवाल उठा रहे हैं. वह सरकारी नौकरियों की बात कर रहे हैं, लेकिन अपने समय की सरकारी भर्तियों पर बात नहीं करना चाहते.
वैसे आमजन से कोई सच्चाइ छुपी नहीं हैं. इसलिए तमाम प्रयासों के बाद भी विपक्ष के सभी नेता मिलकर भी नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने में विफल हैं. पिछली बार भी राष्ट्रपति चुनाव में इन्हें मुँह की खानी पड़ी था. इस बार भी वही इतिहास अपने को दोहराएगा. पिछली बार राजग ने निर्धन परिवार में जन्मे राम नाथ कोविद को उम्मीदवार बनाया था. उनके मुकाबले के लिए विपक्ष ने जगजीवन राम की पुत्री को उम्मीदवार बनाया था.इस बार राजग ने निर्धन वनवासी परिवार में जन्म लेने वाली द्रोपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया हैं. विपक्ष ने इनके विरोध में पूर्व नौकरशाह को उतारा हैं. वह राजनीति में कई पाले बदल चुके हैं.बताया जाता है कि नरेन्द्र मोदी सरकार में जगह ना मिलने के बाद वह बागी हो गए थे.
पिछले कई वर्षों से वह अंतर्द्वंद में रहे हैं. दूसरी ओर द्रोपदी मुर्मू ने जीवन में बहुत संघर्ष किया. लेकिन भी विचलित नहीं हुई.विचार धारा पर आधारित समाज सेवा के पर चलती रहीं. भाजपा में उन्हें सम्मान मिला. जो दायित्व दिया गया, उसका बखूबी निर्वाह किया. द्रौपदी मुर्मू ने शिक्षिका के रूप में अपना कैरियर शुरू किया था.उनकी राजनीति पार्षद के रूप में शुरू हुई. फिर भाजपा के एसटी मोर्चा की राज्य उपाध्यक्ष बनीं. दो बार रायरंगपुर विधायक बनी.
वह ओडिशा की भाजपा बीजद गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं. झारखंड की राज्यपाल के रूप में उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए. उन्होंने झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया। इसके जरिये सभी विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया।
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित होने के बाद वह मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में महादेव मंदिर पहुंचीं। उन्होंने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। इसके पहले महादेव मंदिर प्रागंण में झाड़ू लगाकर सफाई भी की।