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भारत का कला बाजार 250 मिलियन डॉलर पार

लखनऊ। फ्लोरेसेंस आर्ट गैलेरी और फिक्की फ्लो लखनऊ के विशेष सहयोग से कला की आर्थिक शक्ति पर विशेष कला सत्र का आयोजन किया गया। फ्लोरेसेंस आर्ट गैलेरी कि निदेशक नेहा सिंह ने कला में निवेश जैसे मुद्दे पर विशेष गौर करते हुए इस ओर ध्यान आकर्षित कराया कि कला में निवेश करने का मतलब है कि किसी कलाकृति को खरीदना और उसे अपनी संपत्ति बनाना। कला में निवेश करने से पहले, कला के बारे में विशेष जानकारी का होना और कला बाज़ार मूल्य को समझना ज़रूरी है। उक्त विषय पर विस्तार में चर्चा करते हुए नई दिल्ली से आये विकाश नंद कुमार ने समकालीन कला के कई अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला।

ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में पहली बार वृहद स्तर पर लखनऊ समकालीन भारतीय कला मेला -25 का आयोजन प्रदेश की राजधानी लखनऊ में किया गया है। यह आम जनमानस को समकालीन कला से जोड़ने और कला में निवेश करने के साथ साथ कला के कई पक्ष को उजागर करने के विचार से किया गया है। वाकई यह पहला प्रयास और सफलतम प्रयास सिद्ध हो रहा है।लखनऊ की प्रतिष्ठित फ्लोरोसेंस आर्ट गैलरी द्वारा किया गया यह प्रयास कला बाजार के लिए एक ऐतिहासिक, सराहनीय और प्रसंशनीय पहल है।

विगत 9 फरवरी से आज तक सैकड़ों की संख्या में लोगों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया और लगातार कर भी रहे हैं। यह प्रदर्शनी 23 फ़रवरी तक लगी रहेगी। इस प्रदर्शनी में देश के अलग अलग राज्यों बिहार, उड़ीसा, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल से 38 समकालीन कलाकारों के 120 से भी ज्यादा कलाकृतियों चित्रकला, मूर्तिकला, इम्ब्रॉयडरी, प्रिंटमेकिंग आदि माध्यमों को प्रदर्शित किया गया है। फीनिक्स प्लासियो के सहयोग से आयोजित यह लखनऊ का यह पहला आर्ट फेयर बहुत पसंद किया जा रहा है।

क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि इसी श्रंखला में लखनऊ में पहली बार कला की आर्थिक शक्ति पर विशेष कला सत्र का भी आयोजन किया गया। यह आयोजन फ्लोरेसेंस आर्ट गैलेरी और फिक्की फ्लो लखनऊ के विशेष सहयोग से किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व क्यूरेटर एनजीएमए, शोध विद्वान, कला प्रशासक और क्यूरेटर विकाश नंद कुमार और प्रदेश के वरिष्ठ कलाकार कला शिक्षाविद जय कृष्ण अग्रवाल उपस्थित हुए।

इस विशेष कला सत्र में नगर की प्रतिष्ठित फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की निदेशक नेहा सिंह ने देश के जानेमाने आर्थिक कला विशेषज्ञों, कलाकारों सहित कार्पोरेट व्यवसायियों को आमंत्रित किया था। विकास ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कला और कलाकारों से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से प्रेजेंटेशन के माध्यम से चर्चा की। जैसे कि कला के माध्यम से रोजगार की पर्याप्त संभावनाएं और अर्थव्यवस्था में योगदान है। अच्छा व्यवसाय सबसे अच्छी कला है, उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि सबसे अच्छी कला भी अच्छा व्यवसाय बन सकता है। कला सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति को बढ़ावा देती है। कला और सांस्कृतिक क्षेत्र ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था (2022) में 1.10 ट्रिलियन डॉलर का योगदान दिया, जो सकल घरेलू उत्पाद का 4.3% है।

कला में निवेश-उद्देश्य, बजट, अनुसंधान, विशेषज्ञ की राय और सूचित निर्णय। भारतीय कला बाजार पिछले 10 वर्षों में 250% बढ़ गया है। 2019 में, भारतीय कला बाजार का मूल्य लगभग 120 मिलियन डॉलर था। 2024 तक इसके 250 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद थी। यह 14.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर को दर्शाता है।समसामयिक कला ने 11.5% (1995-2023) का वार्षिक रिटर्न दिया है, जो एसएंडपी 500 के 9.6% से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। वित्तीय वर्ष 2023 में टर्नओवर में 9% की वृद्धि और पिछले वर्ष की तुलना में बेची गई कृतियों की संख्या में 6% की वृद्धि। (ग्रांट थॉर्नटन भारत और इंडियन आर्ट इन्वेस्टर)। 90% धन प्रबंधकों का मानना है कि कला को निवेश पोर्टफोलियो का हिस्सा होना चाहिए (डेलॉयट, 2023)।

शेरगिल की द स्टोरी टेलर अब 2023 में नई दिल्ली में सैफ्रोनार्ट की ‘इवनिंग सेल: मॉडर्न आर्ट’ में 61.8 करोड़ रुपये कमाने वाली सबसे महंगी तेल कृति है। पुणे, अहमदाबाद, हैदराबाद, कोच्चि और जयपुर जैसे शहरों में कला में निवेश करने में रुचि बढ़ रही है। आज समकालीन कला दुनियाभर में सामाजिक और मानवीय भावनाओं के आर्थिक रूप से भी विकसित हुई है। इस लिए प्रदेश में इस आर्ट फेयर द्वारा आयोजित विज़ुअल आर्ट का यह सत्र देश के सबसे बड़े राज्य की राजधानी लखनऊ को एक नए स्वरूप में प्रस्तुत करके कला को विस्तृत रूप देते हुए नई संभावनाएं जगाएगा। विकाश कुमार ने निवेश के रूप में कला की अपार संभावनाओं पर विस्तृत प्रकाश डाला। इस सत्र के कुछ मुख्य बिंदु था कि कला दुनिया को कैसे आकार देती है। कलाकृतियों को एक मूल्यवान संपत्ति में बदलना।
मेट्रो शहरों के अलावा देश के हर कोने में कला संस्कृति को बढ़ावा। खुदरा कला क्रांति: कला मेले व कला की आर्थिक शक्ति के द्वारा बाजारों को बढ़ावा देने के प्रयासों पर विशेष चर्चा हुई।

विकास कुमार समकालीन कला के गंभीर कला रिसर्चर और अच्छे क्यूरेटर भी हैं जो देश के कई महत्त्वपूर्ण आर्ट फेयर से भी जुड़े रहे हैं l इनके पास कला और संस्कृति के क्षेत्र में 17 वर्षों से अधिक का अनुभव है। स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से मास्टर डिग्री हासिल की है। 2008 से, विकास ने कई बड़ी प्रदर्शनियों और सम्मेलनों का आयोजन किया है। वह इंडिया आर्ट फेयर के शुरुआती संस्करणों की आयोजन टीम के सदस्य भी थे।विकाश ने नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट में क्यूरेटर के रूप में कार्य किया और कॉलेज ऑफ आर्ट में विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर रहे है। एक्सपो दुबई के दौरान इंडिया पवेलियन में 250 से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रबंधन में विशेष रूप से उन्होंने नेतृत्व किया। इसके अतिरिक्त वह कला पत्रिका आर्ट के संपादक भी रहे। प्रख्यात कलाकार और शिक्षक प्रो जय कृष्ण अग्रवाल ने भी अपने अनुभवों के आधार पर कला और कला निवेश पर अपनी बात रखी।

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