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अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रश्नचिन्ह लगाता है कवयित्री अनामिका जैन अम्बर का अपमान 

बिहार की धरती प्राचीन काल से ही अध्यात्म, साहित्य और संस्कृति से समृद्ध रही है। ऐसा कोई काल खण्ड नहीं रहा जब बिहार ने अपनी कोख से ऋषि, साहित्यकार एवं कवि को जन्म न दिया हो, जहाँ पौराणिक काल में  गौतम, विश्वामित्र, कपिल, कनादी, याग्बल्ल्व, अष्टावक्र, जैमिनी आदि दिव्य विभुतियो ने जन्म लिया तो वहीं मध्यकाल में महात्मा बुद्ध , भगवान महावीर, कालिदास , विद्यापति, गुरु गोबिंद सिंह से बिहार गौरवान्वित रहा है। अगर कवि और कविता की बात करें तब भी विधापति, गोपाल सिंह नेपाली, राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर से लेकर बाबा नागार्जुन तक बिहार की मिट्टी में न सिर्फ इन कवियों ने जन्म लिया है अपितु अपनी लेखनी से सत्ता के सिंहासन को भी चुनौती देने से नहीं चुके हैं। ऐसे में बिहार के सारण जिला का सोनपुर क्षेत्र जो विश्व प्रसिद्ध पशु मेले के लिए जाना जाता है।
यह मेला प्राचीन काल से ही अध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत सहेजने का केन्द्र रहा है। इस मेले में देश भर से आए कलाकार अपनी प्रस्तुति देते रहे हैं और सोनपुर भी ऐसे कलाकारों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर गौरवान्वित महसूस करता रहा है। लेकिन, बिहार और खासकर बिहार के सोनपूर हरिहर क्षेत्र में सारण जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में भारत की नामचीन कवयित्री अनामिका जैन अम्बर को कविता पढने से रोककर बिहार नेअपनी गरिमा खोई है।
गौरतलब है कि सोनपुर मेले के हरिहर क्षेत्र में पर्यटकों एवं आगंतुकों के लिए जिला प्रशासन सारण द्वारा एक कवि सम्मेलन का आयोजन 25 नवम्बर को किया गया था जिसमें “यूपी में बाबा” कविता से देश भर में धूम मचाने वाली कवयित्री अनामिका जैन अम्बर, प्रभु राम जी पर लिखे अपनी कविता और रामसेतु फिल्म में गीत लिखकर अपनी अलग पहचान बनाने वाले प्रसिद्ध कवि अमन अक्षर, गाँव का लड़का और बिहार प्रेरणा गीत से बिहार के युवाओं को प्रेरित करने वाले नालंदा के प्रसिद्ध कवि संजीव मुकेश, प्रसिद्ध ओज कवि सौरभ जैन, प्रसिद्ध हास्य कवि प्रतीक गुप्ता, प्रसिद्ध शायर , गजलकार समीर परिमल एवं युवा कवि प्रशांत बजरंगी भी शामिल थे। लेकिन जिला प्रशासन सारण द्वारा आयोजित यह कवि सम्मेलन तब विवादों में आ गया जब आमंत्रित कवियों को इस मंच का बहिष्कार करना पड़ा। आरोप है कि अनामिका जैन अम्बर सोनपुर में आयोजित कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने हेतु पटना फ्लाइट से पहुँची थी, जिसकी तस्वीर उन्होंने अपने फेसबुक पर भी साझा किया है। लेकिन, चुकि उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पक्ष में नेहा सिंह राठौड़ द्वारा लिखित और गाया गीत “यूपी में का बा” का जबाब “यूपी में बाबा”  गीत से दिया था, जो कि काफी प्रसिद्ध भी हुआ। उस गीत को मंच पर नहीं गाने का दबाव प्रशासन ने बनाया और कवयित्री अनामिका जैन अम्बर को पटना में ही रोक लिया गया। इतना ही नहीं उन्हें सोनपुर मंच पर जाने से मना कर दिया गया।
अनामिका जैन अम्बर को कविता पाठ करने से प्रशासन द्वारा रोके जाने के कारण की तालाश करें तो थोड़ा पीछे जाना होगा।जब यू पी में विधान सभा चुनाव आयोजित था। अपने फेसबुक लाइव से लोक गायिका एवं कवि के तौर पर खुद को स्थापित करने वाली नेहा सिंह राठौर ने “बिहार में का बा” के तर्ज पर ” यूपी में का बा” गीत गाया तो उस गीत ने जनता के बीच खूब वाहवाही बटोरी। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने इस गीत को न सिर्फ सराहा  अपितु सोशल मीडिया पर साझा भी किया। इसी गीत के जबाब में उत्तर प्रदेश मेरठ से आने वाली कवयित्री अनामिका जैन अम्बर ने “यूपी में बाबा” गीत लिखा और गाया जो देखते-देखते इतना वाइरल हुआ कि चंद दिनों में पाँच लाख से कहीं अधिक व्यूज इस कविता के वीडियो ने झट से प्राप्त कर लिया। इस तरह से अनामिका जैन अम्बर और नेहा सिंह राठौर उत्तर प्रदेश चुनाव के केन्द्र में आ गयी और पूरे चुनाव में  इन दोनों ही गीतों की धूम रही, पहली बार आजतक टीवी चैनल पर जब दोनों कवयित्री आमने-सामने आयी तो उनकी तल्खी देखते ही बनती थी। लेकिन, जहाँ एक तरफ अनामिका जैन अम्बर ने नेहा सिंह राठौर से भाषा की मर्यादा में रहकर बात की वहीं दूसरी तरफ नेहा सिंह राठौर, अनामिका जैन अम्बर को भांट कवि और दरबारी कवि कहने से भी नहीं चुकी।
लेकिन इन तल्खियों के बीच भले उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने एक दूसरे की खूब चुटकी ली। लेकिन कभी भी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर पूरी बहुमत से काबिज भारतीय जनता पार्टी ने नेहा सिंह राठौड़ को उस गीत को गाने से रोकने की कोशिश नहीं की, क्योंकि इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी है। प्रत्येक नागरिक किसी भी राजनीतिक दल और नेता के विषय में न सिर्फ अपनी राय रख सकता है, अपितु उसे किसी भी माध्यम से अभिव्यक्त कर सकता है और अगर उसे ऐसा करने से कोई सरकार रोकने की कोशिश करती है तो यह सरासर संविधान का अपमान है और अपराध भी है। दूसरी बार हाल ही में  “साहित्य आजतक” के मंच पर भी दोनों कवयित्री आमने सामने हुई, वहाँ भी कवयित्री अनामिका जैन अम्बर मर्यादित रहीं, लेकिन नेहा सिंह राठौर ने फिर अनामिका जैन अम्बर को सरकारी कवि कहकर नवाजा ऐसे में  सवाल उठता है कि लोक कवि और सरकारी कवि में वास्तविक क्या अंतर है ?
अगर सीधे शब्दों में कहें तो जो सरकार का समर्थन करे उसे सरकारी कवि कह सकते हैं और जो जनता की बात करे उसे लोक कवि कह सकते हैं। लेकिन नेहा सिंह राठौर जब लोक कवि और सरकारी कवि की बात करती हैं तो भूल जाती हैं कि देश में राजतंत्र नहीं  लोकतंत्र है। एक समय था जब राजा का पुत्र ही राजा होता था। तब राजा अपनी महिमामंडन हेतु दरबारी कवि रखते थे। लेकिन आज सरकार लोकतांत्रिक ढंग से जनता द्वारा चुनी जाती है। ऐसे में देश या प्रदेश की सत्ता पर वही काबिज हो सकता है जिसे लोक ने यानी जनता ने लोकतंत्र में अपना मत देकर चुना हो, ऐसे में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के सही कदमों का समर्थन भी लोक कवि ही कर सकता है। क्योंकि निश्चित रूप से जिसे जनता ने सत्ता सौंपा है उस दल या नेता को विपक्षी दलों से अधिक जनता का समर्थन हासिल है। इतना ही नहीं भारत में द्वैध शासन प्रणाली है। जहाँ केन्द्र में किसी एक दल या गठबंधन की सरकार संभव है तो दूसरे राज्यों में किसी और दूसरे दल या गठबंधन की सरकार भी संभव है। ऐसे में जब भी हम किसी सत्ताधारी राजनीतिक दल का केन्द्र या किसी राज्य में समर्थन या विरोध करते हैं तो उसका लाभ या हानि निश्चित तौर पर किसी दूसरे राज्य के सत्ताधारी या विपक्षी दलों को होता है।
उदाहरण के तौर पर अगर नेहा सिंह राठौर केन्द्र की सत्ता में काबिज भाजपा या व्यक्तिगत रूप से नरेन्द्र मोदी का विरोध करती हैं तो दूसरी तरफ उसका फायदा समाजवादी पार्टी या अन्य विपक्षी दलों को निश्चित रूप से  होता है और बिहार की बात करें तो राजद को भी निश्चित रूप से इसका लाभ मिलता है। ऐसे में जब देश में कोई कवि या आम नागरिक किसी के पक्ष में या विरोध में अपनी बात रखता है तो वह दूसरी तरफ उसके विपक्षी दल का परोक्ष रूप से समर्थन करता है या विरोध करता है। ऐसे में नेहा सिंह राठौर का कवयित्री अनामिका जैन अम्बर को सरकारी कवि कहकर नवाजना न सिर्फ अनुचित है अपितु अपमानजनक भी है। जो एक लोक कवि को शोभा नहीं देता है। एक दृष्टि से देखें तो दोनों ही लोक कवि हैं या फिर दोनों ही सरकारी कवि भी हैं  । इन दो कवयित्री की तल्खियों तक तो बात फिर भी नियंत्रण में थी लेकिन इन तल्खियों में किसी सत्ताधारी सरकार का शामिल हो जाना सर्वथा गलत , शर्मनाक और निंदनीय है।
बिहार विधान सभा चुनाव में भाजपा के साथ चुनाव लड़कर जीतने के बाद नीतीश कुमार ने सरकार बनाया और फिर भाजपा का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ अब सरकार बनाकर एक बार फिर सत्ता पर काबिज हैं। नितिश कुमार भले ही आंकड़े के खेल से सरकार बनाने में सफल हो गए हो। लेकिन इस सरकार को जनता का मत और समर्थन भी प्राप्त है , ऐसा कहना बेमानी होगी ,ऐसी सरकार और उसका प्रशासन अगर किसी कवयित्री पर यह दबाव बनाता है कि वह मंच से कौन सी कविता पढे या न पढे तो यह सिर्फ़ किसी एक कवयित्री का अपमान नहीं है। यह भारत के संविधान का अपमान है, जो अपराध की श्रेणी में भी आता है। ऐसी घटना क़लमकार और कलाकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रश्न चिन्ह लगाती है। आज बिहार और खासकर सोनपुर की पावन धरती निश्चित रूप से बिहार सरकार और प्रशासन के इस कुकृत्य से शर्मिंदगी महसूस करती होगी इसमें कोई संदेह नहीं है।
    अमित कुमार अम्बष्ट “आमिली

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