• नशामुक्त सेनानियों से कुतर्क करने के बजाय उनकी बातों को सुनना-समझना होगा
• नशामुक्ति के लिए सरकार का मुंह देखने के बजाय खुद को आगे आना होगा
बीकेटी/लखनऊ। भारत में “नशामुक्त समाज आंदोलन-अभियान कौशल का” से प्रभावित होकर करोड़ों लोग नशामुक्त रहने का संकल्प ले चुके हैं। दो साल में लाखों लोग अपना नशा छोड़ चुके हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश में कुछ लोग बिना कुछ सोचे-समझे, अज्ञानतावश नशे के खिलाफ चल रहे इस बड़े आंदोलन को गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। ऐसे लोग अनजाने में अपनी भावी पीढ़ी के साथ बड़ा अन्याय कर रहे हैं।
यह बात ‘नशामुक्त समाज आंदोलन-अभियान कौशल का’ को नई पहचान देने वाले नशामुक्त सेनानी नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान ने एक अनौपचारिक बातचीत में कही। बीकटी इंचार्ज श्री चौहान ने कहा कि कुछ लोग ‘नशामुक्त समाज आंदोलन-अभियान कौशल का’ में जुटे नशामुक्त सेनानियों पर झूठे-गन्दे आरोप लगाते हैं। ऐसे लोग हर जगह नशे की तरफदारी और गन्दी राजनीति करते हैं। इनमें ज्यादातर लोग नशे से पीड़ित हैं या फिर नशे के सौदागर हैं। ये लोग समाज में नशे को रखने के लिए तरह-तरह कुतर्क करते हैं। जबकि नशा हर किसी की चौखट पर आकर खड़ा हो गया है। पूरे देश में व्यापक जनहानि, धनहानि और मानहानि हो रही है।
इनमें ज्यादातर लोगों का कुतर्क होता है कि सरकार शराब ठेके बन्द कर दे। प्रदेश, देश नशामुक्त हो जाएगा। आखिर ये लोग किस दुनिया में रहते हैं? इनको पता होना चाहिए कि बिहार राज्य में छह साल से नीतीश सरकार ने शराब बन्द कर रखी है। वहीं, गुजरात में भी सरकारी शराबबंदी है।
परन्तु, दोनों राज्यों शराब बन रही है। दोनों जगह शराब बिक रही है। वहां जहरीली शराब पी-पीकर लोग मर रहे हैं।नागेन्द्र कहा कि इसी तरह वर्ष 1977 से 1980 के मध्य पूरे भारत में जनता पार्टी सरकार ने शराबबन्दी की थी। तब पूरे देश में शराब बनाने के अवैध कुटीर उद्योग लग गए थे। हिन्दुस्तान में उस कालखंड में लाखों लोग जहरीली शराब पीकर मरे थे। इस्लाम में शराब पर कड़ी रोक है। कुरान में शराब सहित हर नशे को हराम माना गया है। इसके बावजूद तमाम मुस्लिम भाई शराब और अन्य नशे का सेवन करते हैं। इसी तरह सनातन धर्म सहित अन्य धर्मों में भी शराब सहित अन्य नशों से दूर रहने की सलाह दी गई है। लेकिन, उस धर्म के मानने वाले धार्मिक रोक को दरकिनार कर देते हैं। शराब या अन्य नशा करके अपना और अपने परिवार का जीवन बर्बाद कर लेते हैं। सोचो, ऐसे में सरकारी रोक से कोई कैसे मान जाएगा?
कुछ लोग यह कहते हैं कि सरकार शराब पर रोक लगा दे तो देश नशामुक्त हो जाएगा। वे यह भी कहते हैं कि सरकार शराब बिक्री से अरबों कमा रही है। इसलिए कोई सरकार शराबबन्दी नहीं कर रही है। उनसे पूछना चाहिए कि देश में चरस के कितनी दुकानें हैं? ड्रग्स के कितने ठेके हैं? किस सरकार ने चरस, अफीम, गांजा, हीरोइन व अन्य ड्रग्स के ठेके खुलवा रखे हैं? गुटखा-तम्बाकू की सरकारी दुकानें कितनी हैं? इन नशीले पदार्थो की बिक्री पर सरकार कितना टैक्स पाती है?
नागेन्द्र का कहना है कि कुछ लोग नशा के नाम पर सिर्फ शराब की बात करते हैं। जबकि आज का युवा शराब से ज्यादा गुटखा, सिगरेट, चरस, अफीम, गांजा, हीरोइन व अन्य प्रकार के ड्रग्स ले रहा है। इसके अलावा कोई खांसी के दो-दो सिरप एक साथ पी रहा है। कोई ब्रेड में आयोडेक्स खा रहा है। कोई पेट्रोल टँकी सूंघ रहा है। कोई व्हाइटनर, कोई होम्योपैथी एवं एलोपैथी की दवाएं नशे के रूप में ले रहा है। तरह-तरह के नशे लेकर युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। गुटखा-तम्बाकू से कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
इसका सीधा अर्थ है कि सरकार के सहारे इस ज्वलंत मुद्दे को छोड़ देना उचित नहीं होगा। सरकार का मुंह देखना एक तरह से बहानेबाजी है। हमको शराब ही नहीं, हर प्रकार का नशा खुद छोड़ना होगा। साथ ही, हमें अपने बच्चों को आजीवन नशामुक्त रहने का संकल्प करवाना होगा। सबको अपनी दोस्ती को नशामुक्त बनाना होगा। हर किसी को अपने परिवार, अपने प्रतिष्ठान, अपने संस्थान, अपने घर, अपने स्कूल को नशामुक्त रखने की कोशिश करनी होगी। तभी भारत नशामुक्त होगा। तभी भारत की युवा पीढ़ी बेमौत मरने से बच सकेगी। तभी भारत के नागरिक आर्थिक और सामाजिक गुलामी से बच पाएंगे।
नशामुक्त सेनानी नागेन्द्र ने आमजन से अनुरोध किया है कि ‘आप जहां हैं, वहीं पर भारत को नशामुक्त बनाने के लिए लोगों को जागृत करिये। इसकी शुरुआत खुद से, घर से, पड़ोस से करिये। जो लोग नशा कर रहे, उनके ज्यादा पीछे पड़ने के बजाय बच्चों, किशोरों, युवाओं को नशे के दुष्परिणाम बताएं। भावी पीढ़ी को जीवन पर्यंत कभी कोई भी नशा न करने का संकल्प कराएं। यकीन करिये कि अगर आज के बच्चे, किशोर, युवा अपने जीवन में कभी भी गुटखा-तम्बाकू की पहली चुटकी, बीड़ी-सिगरेट की पहली फूंक और बियर-दारू की पहली घूँट नहीं लेंगे तो भारत एक दिन नशामुक्त देश बन जायेगा।’