Shripal की कविता
जीवन की पेचीदगियों में,
कहीं हम खो न जायें !
है बहुत कुछ जानने को
इस जहां में,
बस सीखने की कसक,
कम न हो जाए
इस नयनों को तो
बहुत चाह है तेरे पुष्प दर्शन की,
पर राह में पड़े काँटों को,
हम भूल न जाए!
जीवन की पेचीदगियों…………..
यह तेरा है औऱ यह मेरा हैं ,
इसी मे कहीं यह जिंदगी,
खो ना जाये..
हमसे दूर ना हों….हे जिंदगी
एक अलौकिक जीवन में
उससे रूबरू होने मे कही
देर न हो जाए!
जीवन की पेचीदगियों…………..
चिंताओं के कठघेरे में
जीवन सफल नही होता,
रह गई कहाँ कसर मेरी?
मेरे रण कौशल में
बस इसी चिन्तन में
हम मग्न हो जाए!
जीवन की पेचीदगियों…………..
है नहीं तुझसे दूर,तेरी चाह भी
समझ ले बस द्वार खड़ी,
वह देख रही तेरी राह।
तू चला होगा कितने ही कदम,
बस अब एक कदम,
औऱ चलने में,
कहीं देर न हो जाए!
जीवन की पेचीदगियों…………
जो निकल गये है हमसे आगे,
वो कोई कुदरत के अजूबे नहीं ,
ऐसा नहीं है कि पलभर में ही ,
वे अपनी मंजिल तक पहुँच गये,
ठोकरे उन्होंने भी कम नही खायी होगी,
खाकर ठोकरे भले ही हम गिर जाए,
पर गिरकर सम्भलने में
कहीं देर न हो जाए!
जीवन की पेचीदगियों…………..
कुछ कष्ट भी सह ले,
सुख-सुविधाओं को भी तज दे,
कुछ रातों को भी दिन बना के,
इस सुकोमल काया को
वज्र बना दें,
जो रहा है बाट,
एक स्वर्णिम भविष्य तुम्हारी,
बस श्रम, परिश्रम, संघर्ष में,
कहीं कोई निज कसर न रह जाए!
जीवन की पेचीदगियों में,
कहीं हम खो न जाए………….!!! – Shripal singh ‘Balot’ (श्रीपाल सिंह,बालोत)
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