सफर
ये उदासी का सफर
कब तक रहें यूं दरबदर
बोझिल हुए अपने कदम
ढूढते मंजिल किधर।।
ये उदासी का सफर।
व्यर्थ ही बीते प्रहर
धूप छांव सब कहर
पांव के कांटे निकाले अनवरत
व्यथित मन पीड़ित है तन।।
ये उदासी का सफर।
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