सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर वक्फ संशोधन कानून, 2025 के मामले में सुनवाई की। केंद्र की तरफ से दी गई दलीलों के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं के सवालों का जवाब देने के लिए सरकार को 7 दिन का समय दे दिया। हालांकि, कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता की तरफ से दिए गए भरोसे के तहत कुछ अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनसे कानून तो लागू रहेगा, लेकिन अगली सुनवाई तक इसके कुछ प्रावधान पर एक तरह की रोक लगा दी गई है।
1. गैर-हिंदुओं की नियुक्ति पर
क्या है नए कानून में नियम?
वक्फ बोर्डों के संचालन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जैसे कि अब बोर्ड में गैर-मुस्लिम और कम से कम दो महिला सदस्यों को नामित किया जाना प्रस्तावित है। इन सदस्यों को अतिरिक्त विशेषज्ञता और निगरानी के लिए जोड़े जाने की बात कही गई। इसके तहत अधिकांश सदस्य मुस्लिम समुदाय से होते हैं, जिससे धार्मिक मामलों पर समुदाय का नियंत्रण बना रहता है। गैर-मुस्लिमों के नियुक्ति के प्रावधान पर खासतौर पर विवाद है।
नियम लाने पर सरकार का तर्क: वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 वक्फ प्रशासन के लिए एक धर्मनिरपेक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था तय करता है। जहां वक्फ संपत्तियां धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं, उनके प्रबंधन में कानूनी, वित्तीय और प्रशासनिक जिम्मेदारियां शामिल होती हैं, जिनके लिए सुव्यवस्थित शासन की आवश्यकता होती है। वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद (सीडब्ल्यूसी) की भूमिका धार्मिक नहीं, बल्कि नियामक है, जो कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करती है और सार्वजनिक हितों की रक्षा करती है। यह विधेयक हितधारकों को सशक्त बनाकर और शासन में सुधार करके देश में वक्फ प्रशासन के लिए एक प्रगतिशील और निष्पक्ष ढांचा तैयार करता है।
कानून के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का तर्क: वक्फ संशोधन कानून के प्रावधान (धारा 9, 14) केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों के नामांकन के बारे में है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन में स्वतंत्रता) का सीधा उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं।