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राम कथा सुनने से मिलती है सुख-शांति: ओम नारायण दास

• अयोध्या के गोसाईगंज में आयोजित है कथा।

अयोध्या। राम कथा सुंदर करतारी, संशय विहग उड़ावन हारी।। अर्थात रामचरितमानस में वर्णित राम कथा के माध्यम से व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को जब भी समय मिले कथा सुनना तथा पढ़ना चाहिए। उक्त ज्ञानवर्धक बातें ओम नारायण दास महाराज दतौली धाम अयोध्या ने जनपद के नगर पंचायत (मोहल्ला कटरा) गोसाईगंज में दिनेश जायसवाल के आवास पर प्रवचन के दौरान कही।

राम कथा सुनने से मिलती है सुख-शांति: ओम नारायण दास

उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के माध्यम से विश्व कल्याण की कामना की है। राम कथा के माध्यम से इंसान को सुखमय दांपत्य जीवन के साथ-साथ पारिवारिक तथा सामाजिक जीने की प्रेरणा मिलती है। श्रद्धा, विश्वास, दायित्व का निर्वहन एवं समय पर त्याग की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होनी चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है।

एक अन्य प्रसंग के दौरान उन्होंने कहा कि जब जब होहि धरम की हानि बाढ़ही असुर महा अभिमानी। तब तब धरि प्रभु मनुज शरीरा, हरहि शकल सज्जन भव पीरा।। सामाजिक भावनाएं जब टूटने लगती हैं, समाज में प्रेम समाप्त होने लगता है, मानव संवेदनहीन हो जाता है तथा संसार में अज्ञानता रूपी अंधकार छा जाता है वैसी स्थिति में लोक कल्याण के लिए प्रभु को अवतार लेना पड़ता है।

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भगवान विष्णु के आयुध शंख, चक्र, गदा, पद्म की विशेषता एवं महत्व का वर्णन करते हुए महाराज ओम नारायण दास ने कहा कि भगवान द्वारा धारण किए गए सभी चीजों का अपना महत्व है, जिसमें शंख ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, चक्र से आत्मरक्षा के साथ-साथ अन्य जीवो की रक्षा तथा गदा के माध्यम से ईश्वर ने मानव जीवन में व्याप्त काम, क्रोध ,लोभ, मोह मद मत्सर इत्यादि दुर्गुणों का नाश करते हैं।

राम कथा सुनने से मिलती है सुख-शांति: ओम नारायण दास

राम कथा समानता प्रेम एवं सौहार्द का संदेश देता है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि राम राज्य की स्थापना करने के लिए भगवान श्रीराम ने सबसे पहले केवट के पास पहुंचकर सहयोग लिया था, भगवान ने शबरी के घर जाकर प्रेम से खिलाया गया जूठा बेर भी खाया। ऐसा कर उन्होंने संपूर्ण मानव जाति के लिए यह संदेश दिया कि इंसान को जात-पात ऊंच-नीच धर्म संप्रदाय के आधार पर भेदभाव या तिरस्कार नहीं करना चाहिए।

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प्रसंग के दौरान उन्होंने बहु विवाह को दुख का कारण बताया। कई उदाहरण प्रस्तुत कर उन्होंने कहा कि एक से अधिक विवाह करने वाले कभी सुखी नहीं रहते बल्कि उनकी जीवन उलझनो से भरी रहती है। पत्नी द्वारा पति व्रत का पालन तथा पति द्वारा जिम्मेवारी का निर्वहन करने से जीवन तथा परिवार मे सुख-शांति बनी रहती है।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह 

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