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मां तरकुलहा देवी मंदिर, इतिहास भी है इस धाम का दीवाना…

गोरखपुर/चौरी चौरा। भारत में स्थित कई मंदिरों के चमत्कारों और रहस्यों के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन आज हम आपको जिस देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, उसका इतिहास बड़ा ही गौरवान्वित करने वाला है। इस मंदिर का नाम है तरकुलही देवी मंदिर। साथ ही यह मंदिर देश का ऐसा इकलौता मंदिर है जहां प्रसाद के रूप में आज भी मटन मिलता है।

दी जाती थी अंग्रेजों की बलि

1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पहले यहां पर अंग्रेजों की बलि चढ़ाई जाती थी। इससे पहले इस इलाके में जंगल हुआ करता था। यहां से गुर्रा नदी होकर गुजरती थी। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्टदेवी कही जाती हैं। उन दिनों हर भारतीय का खून अंग्रेजों के जुल्म की कहानियां सुनकर खौल उठता था। जब बंधू सिंह बड़े हुए तो उनके दिल में भी अंग्रेजों के खिलाफ आग जलने लगी। बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे। इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसके सर को काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते थे।

अंग्रेजों के हत्थे चढ़े बंधू सिंह

पहले तो अंग्रेज यही समझते रहे कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भी पता लग गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के शिकार हो रहे हैं। अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना-कोना छान मारा, लेकिन बंधू सिंह किसी के हाथ नहीं आए। इसी इलाके के एक व्यवसायी की मुखबिरी के चलते बंधू सिंह अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी।

सातवीं बार फांसी देने में सफल हुए अंग्रेज

12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहे पर सार्वजनिक रूप से बंधू सिंह को फांसी पर लटका दिया गया। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए और बार-बार फांसी की रस्सी अपने आप ही टूट जाती थी। इसके बाद बंधू सिंह ने स्वयं देवी मां का ध्यान करते हुए मन्नत मांगी, कि मां मुझे जाने दें। कहते हैं कि बंधू सिंह की प्रार्थना देवी ने सुन ली और सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए।

अमर शहीद की याद में बनवाया स्मारक

अमर शहीद बंधू सिंह की याद में उनके वंशजों ने उनके सम्मान में यहां एक स्मारक भी बनवाया है। यह देश का इकलौता मंदिर है जहां प्रसाद के रूप में मटन, मीट दिया जाता है। बंधू सिंह ने देवी मां के चरणों में अंग्रेजों का सिर चढ़ा कर जो बलि कि परम्परा शुरू की थी, वो आज भी यहां निभाई जाती है। लेकिन अब यहां पर अंग्रेजों के सिर की जगह बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है। उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, साथ में बाटी भी दी जाती है।

रिपोर्ट-रंजीत जायसवाल

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