संक्रांति के मूल भाव को समझना आवश्यक है। भारतीय संस्कृति प्रकृति से तादात्म्य रखने हुए सतत प्रवाहित रहती है. मकर संक्रांति प्रकृति का संक्रमण है. इसको भी हमारी संस्कृति में पर्व माना गया. प्रकृति के साथ ही वैचारिक संक्रमण होता है. य़ह बात पूर्व प्रांत संघ चालक प्रभु नारायण श्रीवास्तव ने कही. वह कैलाश चंद्र शर्मा के आवास पर आयोजित लक्ष्मण शाखा के मकर संक्रांति कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होने कहा कि विश्व की समस्याओं का समाधान भारतीय चिन्तन से ही सम्भव है. इसके लिए पहले अपने समाज का संगठित होना आवश्यक है।
संगठन के लिए समरसता पर अमल करना चाहिए. मकर संक्रांति समरसता का ही पर्व है. देवासुर संग्राम भी वैचारिक सप्रमण का परिणाम था. आज भी देश में वैचारिक संक्रमण है।
इसको समझने की आवश्यकता है. राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ समाज को संगठित करने की दिशा मेँ कार्य कर रहा है. इस प्रयास से ही भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना सम्भव होगा. इस अवसर पर नगर कार्यवाह राजीव पंडित,शाखा कार्यवाह रामजनम, मुख्य शिक्षक हेमन्त सिंह, कुंदनलाल, बीएल तिवारी, शिव सेवक, ओम अग्रवाल, अभिषेक, रमाकांत, नरेश, अशोक, हरीश,अनिल, सौरभ, माता प्रसाद सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
रिपोर्ट-डॉ दिलीप अग्निहोत्री