22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) के लिए आयोजित किया जाता है पृथ्वी दिवस। आइए मिलकर पर्यावरण को संरक्षित करें, पञ्च तत्वों की रक्षा करे। पृथ्वी (Earth) के पर्यावरण को सुरक्षित रखने हेतु लोगों को जागरुक करें। पृथ्वी के अस्तित्व से ही यहां रहने वाले सभी जीव जंतुओं का अस्तित्व है। पृथ्वी ही एकमात्र ग्रह है जहां जीवन पाया जाता है इसी में लगभग चौदह करोड़ साल पहले डायनासोर जैसी विशालकाय प्रजातियों ने राज किया है।
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डायनासोर शाकाहारी, मांसाहारी, शांत और उग्र कई तरह के पाए जाते थे ।यदि छः करोड़ पचास लाख साल पीछे का इतिहास पता करें तो हम पाते हैं एक उल्कापिंड जब मेक्सिको की खाड़ी के पास आकर पृथ्वी पर गिरा तो पैंतीस हज़ार डिग्री सेंटीग्रेड की ऊर्जा वाला भयंकर विस्फोट हुआ।
लगभग दस हाइड्रोजन बम के विस्फोट के बराबर विस्फोट जहां ग्यारह पॉइंट पांच तीव्रता का भूकंप उत्पन्न कर गया, तो वही सुनामी की लहरों ने समुद्रों को उत्तल पुथल कर रख दिया। ज्वालामुखी आग उगलने लगे, भयंकर रेडिएशन से सभी जीव जल गए विस्फोट के कारण जो मेटल धूल के बादल बनकर सौ डिग्री सेंटीग्रेड से भी ज्यादा के तापमान में पहुंच गए थे।
उससे पृथ्वी की गर्मी इतनी बढ़ गई कि नब्बे प्रतिशत से ज्यादा जीव मारे गए। सभी प्रकार के पेड़ पौधे जलकर राख हो गए और इस पूरी त्रासदी में कुछ मैमल्स बचे रह गए जिन्होंने पृथ्वी में जीवन को फिर से शुरू किया। जमीन के काफी अंदर अपना घर बनाकर छुपे हुए मैमल्स ही उन पांच प्रतिशत जीवो में से थे जिन्होंने इयोसीन युग में बंदर जैसे प्राइमेट प्रजातियों को जन्म दिया जो समय के साथ सीधे चले और हम मनुष्य के रूप में विकसित हुए। उन्हीं का अस्तित्व कायम रह सका जिनके जीन में प्रतिरोधक क्षमता और वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने के गुण ज्यादा पाए गए।
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हजारों साल पहले टेक्टोनिक प्लेट की हलचल ने एक तरफ जहां हिमालय को खड़ा किया,पृथ्वी के मौसम को बदलने और पृथ्वी को ठंडा करने में महत्वपूर्ण योगदान अदा किया ,वही ओलिगोसीन युग में ग्लोबल कूलिंग हुई जिससे कुछ बची हुई प्रजातियां ठंड के कहर से मारी गई तथा कुछ नई प्रजातियां विकसित हुई। सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट या कहें योग्यता की उत्तरजीविता का सिद्धांत लागू हुआ।
लगभग चालिस हज़ार साल पहले टेक्टोनिक प्लेट की हलचल से अफ्रीकन रिफ्ट वैली का विकास हुआ और ग्रेटऐप जिसका नाम पैरोल पिथिकस था विकसित हुए। जो पेड़ों पर रहने, दो पैरों से खड़े होने में माहिर हुए और यही आगे चलकर चिंपैंजी ,गोरिल्ला तो कुछ मानव के रूप में विकसित हुए और लगातार हो रहे है।
पृथ्वी के परिवर्तन में जिन्होंने खुद को परिवर्तित कर लिया वह आरडी पीथिकस रेमेडीज नामक हमारे पूर्वज, हमारे वंशज बने सबसे पहले खड़े और सीधे रह कर चलने वाले पूर्वज बने ।कई हजार सालों के विकास के बाद होमो हैबिलिस का दिमाग काफी विकसित हुआ उन्होंने पत्थर को हथियार बनाकर अंगूठे और उंगलियों का विकास किया और आगे चलकर होमो इरेक्टस मानव के रूप में आग की खोज की। जो आग गर्मी, रोशनी अंधेरे ,जंगली जानवरों को भगाने, मांस पकाने में सहायक सिद्ध हुई।
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दिमाग की कैपेसिटी भी लगातार बढ़ रही थी। लिरिक्स वोकल कार्ड में और विकसित हुई जिससे भाषा या बोली विकसित हुई। संकेत और निर्देशों को समूह में मरने की प्रक्रिया शुरू हुई और होमोसेपियंस लगभग एक लाख साल पहले अफ्रीकन घर से बाहर निकल कर एफ्रो यूरेशिया पर पहुंचे। विकसित मानव समूह बनाकर रहने लगे पांच लाख साल पहले आइस एज शुरू हुआ जिसमें नार्थ पोल के आगे बढ़ते हुए इंसान, चाइना, ऑस्ट्रेलिया तथा नॉर्थ यूरेशिया तक पहुंच गया।
पूरी दुनिया में बस्तियां बनी समुद्र किनारे हरे-भरे मैदान, पथरीली पहाड़ों से लेकर बर्फीले इलाकों तक हर जगह इंसान ने अपनी दुनिया बनाई ।मनुष्य की आंखें ,त्वचा लंबाई जलवायु के अनुसार जीन में परिवर्तन हुए। आवश्यकता के अनुसार खेती शुरू हुई जानवरों को पालना शुरू हुआ गांव, कस्बे, शहर, विज्ञान, गणित, तकनीकी का विकास हुआ और हमारे जैसे विकसित और विकासशील मनुष्य की सभ्यताओं का जन्म हुआ। पूरी पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जिसने खुद को विकसित किया और आधुनिक बनाया और महाप्रलय की त्रासदी से निकलकर अपना स्वयं का अस्तित्व सिद्ध किया।
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विकास के चरण में हमारे वेदों शास्त्रों में सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग की चर्चा होती है जहां हरिश्चंद्र, राजा राम और परशुराम जी को हम पाते हैं वही द्वापर में श्री कृष्ण के रूप में महाभारत जैसा युद्ध भी देखते हैं। आज अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर पृथ्वी के अस्तित्व और इसके पर्यावरण की अनवरत रक्षा हेतु विकास की इस यात्रा को नमन करते हुए हम पाते हैं कि किसी भी युग और किसी भी विकास के क्रम में उन मनुष्यों का नाश और विनाशी हुआ है जिन्होंने नशे के दुष्चक्र में पडकर खुद का और अपने कुटुंब का ध्यान न दिया हो।
युद्ध तथा नकारात्मक सोच सिर्फ विनाश और अस्तित्व के खत्म करने की ही उपाय हैं यदि वास्तव में हमें पृथ्वी में जीवन की रक्षा करनी है मनुष्यता की रक्षा करनी है तो हम सबको एक होकर अपने विकास के मार्ग को खोजना होगा। वह भी ऐसे विकास के मार्ग को जिसमें सस्टेनेबल डेवलपमेंट या सतत विकास की अवधारणा पूर्ण रूप से परिलक्षित होती हो। पर्यावरण का उपयोग किस प्रकार किया जाए कि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित पंच तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकें।
आज के दिन पृथ्वी दिवस की अवसर पर मानवता की रक्षा के लिए, मानव प्रजाति में जीनिक सुदृढ़ीकरण के लिए,मानव में हो रहे नशे रूपी प्रदूषण से उत्पन्न विकार से मानवता की रक्षा करने का भी प्रण लें। आइए मिलकर अपनी आने वाली पीढ़ियों को नशे के दुष्चक्र में फंसने से रोके, ताकि जिस तरह पूर्व में रह रहे विशाल बलशाली डायनासोर पृथ्वी से विलुप्त हो गए हैं उस तरह मानव की प्रजातियां विलुप्त ना हो। ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करें पंच तत्वों की रक्षा करें।
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हर प्रकार के अन्याय का प्रकृति प्रतिशोध लेती है हम सभी ने डायनासोर के लुप्त होने तथा कई जीव जंतुओं की प्रजाति को संकट में आते हुए देखा है मानव अपनी प्रजाति की रक्षा कर सके, मनुष्य में बुद्धि और विवेक का विकास और हो सके, गुणवत्ता उच्च हो सके, इसके लिए जरूरी है कि हम अपने बच्चों, युवाओं और नई पीढ़ी को नशे रूपी प्रदूषण से दूर रखने की प्रेरणा दें, उन्हें जीवन में कभी नशा ना करने के प्रति संकल्पित करें।…आग्रह एक दिन नशे को छोड़ें!