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ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिंडोला में मनाया गया अमर शहीद उधम सिंह का शहीदी दिवस

लखनऊ। ऐतिहासिक गुरूद्वारा गुरू नानक देव, नाका हिंडोला में 31 जुलाई को अमर शहीद उधम सिंह के शहीदी दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। प्रात: के दीवान में सुखमनी साहिब के पाठ के उपरांत रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुर वाणी में पवित्र आसा की वार का अमृतसरी शबद कीर्तन गायन किया। मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने गुरमति कथा विचार व्यक्त किये।

ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिंडोला में मनाया गया अमर शहीद उधम सिंह का शहीदी दिवस

लखनऊ गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने बताया कि शहीद उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था, उस समय लोग इन्हें शेर सिंह के नाम से जानते थे दुर्भाग्यवश सिर से माता पिता का साया शीघ्र ही हट गया था। ऐसी दुखद परिस्थिति में अमृतसर के खालसा अनाथालय में आगे का जीवन व्यतीत करने और शिक्षा दीक्षा लेने के लिए शरण लेनी पड़ी। सरदार ऊधम सिंह पंजाब की राजनीति में मची तीव्र उथल-पुथल के बीच अकेले रह गए थे।

उधम सिंह नेअपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। भगत सिंह द्वारा किए गए देश के प्रति क्रांतिकारी कार्यों से प्रभावित हुए। जब आप कश्मीर में थे तब उनको शहीद भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया। उस दौरान उधम सिंह को भगत सिंह का सहयोगी मान लिया गया था। जलियाँ वाले बाग में अकारण निर्दोष लोगों को अंग्रेजों ने मृत्यु के घाट उतार दिया था। इस घटना में बहुत सारे लोग मारे गये थे जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं और नौजवान पुरुष भी शामिल थे।

इस दिल दहला देने वाली घटना को उधम सिंह ने अपने आंखों से देख लिया था। जिसका उन्हें गहरा दुख हुआ और उन्होंने उसी समय ठान लिया कि यह सब कुछ जिसके इशारे पर हुआ है उसको उसके किए की सजा जरूर देकर रहेंगे उन्होंने उसी समय प्रण कर अपने संकल्प को पूरा करने के मकसद से अपने नाम को अलग-अलग जगहों पर बदला और कई देशों में यात्राएं की।
उन्होंने एक पार्टी का निर्माण किया और इससे जुड़ भी गए। परंतु इसी दौरान उनको बिना लाइसेंस हथियार रखने पर गिरफ्तार कर लिया गया। वह 4 साल जेल में रहे सिर्फ यही सोचकर कि वह बाहर निकल कर जनरल डायर के द्वारा किए गए दंडनीय अपराध का बदला अपने देशवासियों के लिए लेकर रहेंगे।

जेल से रिहा होने के बाद वे अपने संकल्प को पूरा करने के लिए कश्मीर गए फिर कश्मीर से वे भागकर जर्मनी चले गए।1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और वहां अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करना शुरू कर दिया। भारत का यही वीर पुरुष जलिया वाले बाग के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के “कास्टन हाल” में बैठक थी जहां माइकल ओ’ डायर को उसके किए का दंड देने के लिए तैयार बैठा था।

जैसे ही वह बैठक का वक्त समीप आया वैसे ही उधम सिंह ने जनरल डायर पर दो गोलियां चलाई, घटना स्थल पर ही डायर की मृत्यु हो गई उसी जगह पर वह शांत खड़े रहे और अपना आत्मसमर्पण किया। उन्हें जनरल डायर की मृत्यु का दोषी घोषित कर 31 जुलाई 1940 को लंदन में उनको फांसी की सजा दी गई। उनके मृत शरीर के अवशेष को 34 साल बाद उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई 1974 के दिन भारत को सौंप दिया गया।

कमेटी के प्रवक्ता सतपाल सिंह मीत ने बताया कि शाम के समागम में रहरास साहिब के पाठ के बाद सिमरन साधना परिवार के सदस्यों और बच्चों ने बारी बारी से गुरबाणी का कीर्तन गायन करके संगतो को भावविभोर किया। छोटी उम्र के बच्चे और बच्चियां बड़े पारंगत ढंग से राग में ही आधारित गुरबाणी का कीर्तन कर रहे थे। शाम के सारे समागम में सिमरन साधना परिवार के बच्चों ने गुरबाणी का कीर्तन किया और अरदास करके समाप्ति की। दीवान की समाप्ति उपरांत समूह संगत में गुरु का लंगर दशमेश सेवा सोसायटी के सदस्यों ने वितरित किया गया।

रिपोर्ट – दया शंकर चौधरी

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