रायबरेली। जिले में सकट का पर्व धूमधाम से मनाया गया । माताओं ने अपनी सन्तान की दीर्घायु के लिए व्रत रख कर उसकी लम्बी उम्र की कामना की। मान्यता है की इस दिन व्रत रखने से सन्तान पर कोई संकट नही आता और जो भी संकट हो वह टल जाते है।
इस व्रत मे तिल से बने लड्डू व शकरकन्द का प्रयोग महिलाए करती है। सम्पूर्ण दिन महिलायें निर्जला रहती हैं शाम को पूजा के बाद ही जल पान करती हैं। सकट चौथ के दिन चौथ माता के रूप में मां पार्वती और भगवान गणेश का पूजन किया । माताओं ने अपनी संतान की दीर्ध आयु के लिए व्रत रखा। अपनी संतान की मंगलकामना के लिए महिलाओं ने माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत रखने की परम्परा है।
इसे संकष्टी चतुर्थी, लंबोदर संकष्टी चतुर्थी,तिलकुटा चौथ एवं माघी चौथ के नाम से जानते है। विघ्नहर्ता श्री गणेश, चौथ माता व चंद्रदेव की विधिपूर्वक पूजा अर्चना सम्पन्न हुयी । पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान गजानन की आराधना से सुख-सौभाग्य में वृद्धि तथा घर-परिवार पर आ रही विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है एवं रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं।
संकष्टी चतुर्थी पर प्रसिद्ध है यह पौराणिक कथा
एक प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के राज में एक कुम्हार रहा करता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आवा लगाया, पर बहुत देर तक आवा पका नहीं। बार-बार नुकसान होता देखकर कुम्हार एक तांत्रिक के पास गया और उसने तांत्रिक से मदद मांगी। तांत्रिक ने उसे एक बालक की बली देने के लिए कहा। उसके कहने पर कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को आवा में डाल दिया, उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी।
उस बालक की मां ने अपनी संतान के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की। कुम्हार जब अपने बर्तनों को देखने गया तो उसे बर्तन पके हुए मिले और साथ ही बालक भी सुरक्षित मिला। इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और उसने राजा के सामने पूरी कहानी सुनाई। इसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाली सकट चौथ की महिमा का गुणगान किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और अपने परिवार की कुशलता और सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।
रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्र