हिंदू धर्म में भगवान से जुड़ी किसी भी खंडित वस्तु की पूजा नहीं होती है। यदि गलती से कुछ खंडित हो भी जाए तो उसे जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। क्या आपको मालूम है कि देश में एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के खंडित त्रिशूल की पूजा होती है। मंदिर से जुड़ी ऐसी भी मान्यता है कि यहां देवी पार्वती का जन्म भी हुआ था। आइए जानते हैं कहां है यह मंदिर और उससे जुड़ी विशेष बातें।
जम्मू से थोड़ी दूर स्थित पटनीटॉप के पास शुद्ध महादेव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर भगवान शंकर के प्रमुख मंदिरों में से एक है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहां पर एक विशाल त्रिशूल के तीन टुकड़े जमीन में गड़े हुए हैं जो कि पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वयं भगवान शिव के हैं।
मां पार्वती से जुड़ी है कहानी
पुराणों के मुताबिक, इस स्थान पर माता पार्वती का जन्म हुआ था। माता पार्वती और मंदिर से जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है। मां पार्वती इस जगह अक्सर पूजा करने आती थीं। एक बार सुधान्त नाम का राक्षस भी आ गया। वह भी शिव भक्त था और पूजा करने आया था। राक्षस को देखकर मां पार्वती के मुंह से चीख निकल गई। उनकी चीख भगवना शंकर के पास तक पहुंची और उनकी आंख खुल गई।
भगवान शंकर ने सोचा कि मां पार्वती किसी मुसीबत में हैं, इसलिए उन्होंने कैलाश पर्वत से ही त्रिशूल फेंका। त्रिशूल आकर राक्षस सुधान्त को लगता है। हालांकि बाद में भगवान शंकर को लगता है कि उनसे गलती हुई है। वह राक्षस सुधान्त को दोबारा जीवन देना चाहते हैं, लेकिन सुधान्त मोक्ष प्राप्त करना चाहता था। तब भगवान शिव राक्षस सुधान्त से कहते हैं कि आज से तुम्हारे नाम पर यह जगह सुध महादेव के नाम से जानी जाएगी। साथ ही शंकर भगवान ने उस त्रिशूल के तीन टुकड़े करके वहीं गाड़ दिए जो आज भी देखे जा सकते हैं।
त्रिशूल की होती है पूजा
मंदिर में इस खंडित त्रिशूल की भक्त विशेष पूजा करते हैं। लोग भगवान शंकर के बाद इस त्रिशूल का भी जलाभिषेक करते है। इस मंदिर में नाथ संप्रदाय के संत बाबा रूपनाथ ने कई वर्षों पहले समाधि ली थी उनकी धूनी आज भी मंदिर परिसर में है। मंदिर के बाहर ही पाप नाशनी बाउली (बावड़ी) है, जिसमें पहाड़ों से 12 महीनों पानी आता रहता है।