रिजेक्शन यानी नामंजूरी या किसी व्यक्ति की अस्वीकृति का सामना करना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है. जिंदगी में हम सभी को कई बार ‘ना’ का सामना करना ही पड़ता है. जिस प्रकार हम किसी के ‘हां’ को अपना लेते हैं, उसी तरह हम सामने वाले व्यक्ति के ‘ना’ को भी अपनाने की कोशिश करें. चाहें करियर हो, जॉब हो या कोई रिश्ता, कुछ लोगों के भीतर हमेशा रिजेक्शन को लेकर एक डर बना रहता है.
रिजेक्शन का सामना न कर पाना मन का कोई डर नहीं है बल्कि एक बीमारीहै. इस बीमारी को ‘रिजेक्शन सेंसिटिव डिसफोरिया’ कहते हैं. रिजेक्शन सेंसिटिव डिसफोरिया’ एक गहन भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जो इस धारणा के कारण होती है कि अपने जीवन में दूसरों को निराश किया है और उस निराशा के कारण लोगों ने आपको प्यार और सम्मान देना बंद कर दिया है. वहीं, ये प्रतिक्रिया दर्दनाक तब हो सकती है, जब आप असफल हो जाते हैं या अपने उच्च लक्ष्यों और अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं.
आरएसडी के लक्षणों को पहचानना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि ये अन्य मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों जैसे अवसाद, पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, बॉर्डरलाइन व्यक्तित्व विकार, सोशल फोबिया आदि से मिलते-जुलते हैं. भावनाएं आहत होने पर अवसाद में चले जाना या आत्महत्या का कोशिश करना भी इसके कुछ लक्षणों में से एक है. जैसे आसानी से शर्मिंदा होना, भावनात्मक रूप से गुस्सा होना, आत्मसम्मान को कम आंकना, सामाजिक रूप से कटा हुआ महसूस करना, रिश्तों को लेकर समस्या महसूस करना.