लखनऊ। बीएसएनवी पीजी कॉलेज लखनऊ के शिक्षा शास्त्र विभाग द्वारा आज (11 नवंबर) राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया गया। राष्ट्रीय शिक्षा दिवस को वर्ष 2008 से प्रतिवर्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद जो कि भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री थे की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.रमेश धर द्विवेदी सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ वाग्देवी सरस्वती की स्तुति के साथ हुआ जिसे बी.ए. तृतीय वर्ष की छात्रा प्राची सिंह के द्वारा प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सर्वप्रथम मंजुल त्रिवेदी (असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षाशास्त्र विभाग) के द्वारा मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन से संबंधित तथ्यों को विद्यार्थियों के समक्ष रखा गया। इस दौरान उन्होंने बताया कि मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री ही नहीं वरन एक पत्रकार, राजनेता एवं सामाजिक समरसता के पोषक विद्वान भी थे। इस दौरान डॉ मंजुल ने अबुल कलाम आजाद के जीवन से संबंधित अन्य प्रसंग भी विद्यार्थियों को बताएं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. रमेश धर द्विवेदी ने अपने उद्बोधन में प्राचीन भारतीय गौरवशाली शिक्षा परंपरा का उल्लेख करते हुए बताया कि हमारी शिक्षा व्यवस्था सदियों से संस्कारों से अनुप्राणित रही है। अनेक विदेशी आक्रांताओ के कुत्सित प्रयास भी हमारी शिक्षा को अधिक नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे, किंतु मैकाले द्वारा प्रतिपादित इस अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने हमारे देश की शैक्षिक व्यवस्था को गलत राह पर ले जाने का कार्य किया। आज हम एक ऐसी शैक्षणिक पद्धति का हिस्सा है जो कि अधिक अंको को अर्जित करने एवं डिग्री प्राप्त करने पर ही जोर देती है। जिससे विद्यार्थी शिक्षा तो प्राप्त कर लेते हैं लेकिन उन्हें वह ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता जो उनके लिए जीवन उपयोगी होता है।
इस संदर्भ में उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से काफी आशाएं जताई और कहा कि इस नीति में वह भाव है जो हमें हमारी गौरवशाली परंपरा के करीब ले जा सकता है। मौलाना अबुल कलाम आजाद के शैक्षिक अवदान का स्मरण करते हुए प्राचार्य जी ने बताया कि स्वतंत्र भारत में अनेक शैक्षिक प्रतिमान गढ़े गए जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना, आईआईटी की स्थापना, विभिन्न कलाओं संबंधित अकादमियों की स्थापना आदि में मौलाना आजाद का अतुलनीय योगदान रहा है। देश आज उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है लेकिन हम शिक्षा के माध्यम से उनके विचारों एवं संकल्पों को मूर्त रूप प्रदान कर उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रभारी प्रो. अनिल कुमार पांडे ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षा एवं विद्या के भेद को स्पष्ट करते हुए आज की स्थिति का रेखांकन किया गया। प्रो. पांडे ने कहा कि कुछ कुशलताओं को अर्जित कर लेना भर ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है। आज “सा विद्या या विमुक्तये” वाक्य में संदर्भित मुक्ति को सच्चे अर्थों में जानने की आवश्यकता है।
इस दौरान उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वह अंको के लिए नहीं बल्कि ज्ञान के लिए पढ़ें तभी वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे। कार्यक्रम के अंत में प्रो गीतारानी द्वारा औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा गया कि शिक्षाशास्त्र विभाग पूर्व में भी ऐसे आयोजन करता रहा है और भविष्य में भी हम ऐसे शैक्षिक उत्सवों को हम पूर्ण उत्साह के साथ मनाते रहेंगे।