CJI Deepak Mishra के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग नोटिस को राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने बिना ठोस कारण व तथ्यों के अभाव को देखते हुए शुरूआती चरण में ही खारिज कर दिया। जिससे विपक्ष और भाजपा इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर कानूनविद भी एकमत नहीं दिखाई दे रहे। बल्कि महाभियोग को हवा हवाई बताया जा रहा है।
CJI, पहले भी खारिज हो चुके हैं महाभियोग प्रस्ताव
लगभग पांच दशक पहले सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को पहली बार ऐसे कदम का सामना करना पड़ा था। पूर्व सरकारी सेवक ओपी गुप्ता की एक मुहिम के बाद मई, 1970 में लोकसभा स्पीकर जीएस ढिल्लों को न्यायमूर्ति जेसी शाह के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव सौंपा गया था। गुप्ता ने शाह पर तब बेईमानी का आरोप लगाया था जब जज ने एक सुनवाई के दौरान उनके खिलाफ कुछ टिप्पणियां की थी। बहरहाल, स्पीकर ने नोटिस को महत्वहीन करार देकर खारिज कर दिया था।
संसद में पहले भी लाया गया है महाभियोग प्रस्ताव
संसद में न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही में प्रगति 1993 में पहली बार तब हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. रामास्वामी को एक जांच आयोग की रिपोर्ट के बाद भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा था। वरिष्ठ वकील और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने उस वक्त लोकसभा में रामास्वामी का जोरदार बचाव किया था। गौरतलब है कि सीजेआई दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने की मुहिम में सिब्बल अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। पीवी नरसिंह राव सरकार के दौरान लाया गया महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में विफल हो गया था, क्योंकि उसे संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के तहत जरूरी सदन के दोतिहाई सदस्यों का समर्थन प्राप्त नहीं हो पाया था।
न्यायमूर्ति रामास्वामी ने दे दिया था इस्तीफा
न्यायमूर्ति रामास्वामी के अलावा, 2011 में कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। उन पर एक न्यायाधीश के रूप में वित्तीय गबन और गलत तथ्यों को पेश करने के आरोप थे। उनके खिलाफ लाया गया प्रस्ताव राज्यसभा में पारित हो गया और राज्यसभा में अपना बचाव करने वाले सेन को जब नतीजे का आभास हो गया तो लोकसभा में प्रस्ताव पर चर्चा से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
सिक्किम हाईकोर्ट न्यायाधीश ने भी दिया था इस्तीफा
सिक्किम हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीडी दिनाकरण ने 2011 में महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उन्हें एक जांच समिति ने जमीन हड़पने, भ्रष्टाचार और न्यायिक पद का दुरूपयोग करने का दोषी पाया था। जब उन्होंने अवकाश पर जाने के आदेश का पालन नहीं किया तो कर्नाटक हाईकोर्ट से उनका तबादला सिक्किम उच्च न्यायालय में कर दिया गया था।
रिपोर्ट—संदीप वर्मा