आजकल प्याज की कीमतों ने लोगों की नाक में दम कर रखा है. खबर है कि कुछ शहरों में प्याज की कीमत 200 रु. किलो तक चली गई है. भारत सरकार और प्रांतीय सरकारें लोगों को कम दाम पर प्याज मुहैया करवाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं लेकिन वे हजारों टन प्याज रातों-रात कहां से पैदा करें? वे तुर्की जैसे देशों से आयात का इंतजाम कर रही हैं लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि इस इंतजाम में भी अभी कई हफ्ते लग जाएंगे और उसके बावजूद लोगों को पूरी राहत मिल पाएगी, इसका भी कुछ भरोसा नहीं है.
देश के कुछ ही परिवारों को छोड़कर सभी लोग प्याज का नित्य-प्रति इस्तेमाल करते हैं. देश के करोड़ों किसान और मजदूर ऐसे हैं कि जिन्हें यदि रोटी के साथ प्याज मिल जाए तो उनको अपने खाने में किसी तीसरी चीज की जरूरत नहीं होती. पिछले साल मध्यप्रदेश में यह दो रु. किलो तक बिका है. लेकिन इस बार फसल खराब होने के कारण प्याज अकालग्रस्त हो गया है. उसके बाजार में कम आने का एक बड़ा कारण यह है कि इस वक्त प्याज पर जमकर मुनाफाखोरी हो रही है.
गोदामों से बाजार तक आने में उसके दाम छलांग लगा लेते हैं. बेचारे किसान को तो 5-7 रु. किलो के भाव ही नसीब होते हैं. इसलिए सरकारों को चाहिए कि देश में प्याज के जितने भी गोदाम हैं, उन पर वह कब्जा कर ले. उनके मालिकों को उचित मुआवजा दे दे और मर्यादित दाम पर जनता को प्याज उपलब्ध कराती रहे, जैसे कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार करती रही है.
सरकार चाहे तो प्याज ही नहीं, सभी खाने-पीने की महत्वपूर्ण चीजों के ‘दाम बांधने की नीति’ बना सकती है ताकि किसान और व्यापारी मुनाफा तो कमाएं लेकिन लूट-पाट न कर सकें. लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी एक काम है, जो जनता को करना पड़ेगा. वह है, खुद पर संयम रखने का! यदि कुछ दिनों के लिए प्याज खाना बंद कर दें तो सारा मामला अपने आप हल हो जाएगा. न मुनाफाखोरी होगी, न प्याज आयात करने की मजबूरी होगी. प्याज के भाव अपने आप गिरेंगे.