बीते अगस्त महीने में ऐसी खबर आई कि बिस्किट बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी पारले प्रॉडक्ट्स 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करने वाली है. इसके ठीक दो महीने बाद अब Parle को मुनाफे की खबर है. दरअसल, पारले ग्रुप का नेट प्रॉफिट बीते वित्त वर्ष में 15.2 फीसदी बढ़ा है. वहीं इसके रेवेन्यू में भी इजाफा हुआ है.
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक पारले को वित्त वर्ष 2019 में 410 करोड़ रुपये नेट प्रॉफिट हुआ, जो पिछले वर्ष 355 करोड़ रुपये था. इसका मतलब यह हुआ कि कंपनी ने एक साल पहले के मुकाबले 55 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है. इसके अलावा कंपनी के कुल रेवेन्यू में 6.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अब पारले का रेवेन्यू 9,030 करोड़ रुपये हो गया है जो उससे पिछले वर्ष 8,780 करोड़ रुपये पर था.
इन आंकड़ों के सामने आने के बाद बीजेपी आईटी सेल के अध्यक्ष अमित मालवीय ने चुटकी ली है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ”कुछ दिनों पहले ‘एनलाइटेंड इकनॉमिस्ट’ हमें बता रहे थे कि लोग 5 रुपये का पारले जी बिस्किट पैक नहीं खरीद पा रहे हैं? खैर कंपनी का मुनाफा 15.2 फीसदी बढ़ा है और आमदनी भी 6.4 फीसदी बढ़कर 9,030 करोड़ रुपये हो गई है.”
दरअसल, बीते अगस्त महीने में पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगिरी हेड मयंक शाह ने एक बयान दिया था. इसमें उन्होंने बताया कि Parle की बिक्री और प्रोडक्शन में गिरावट आ रही है. इस वजह से कंपनी को आने वाले दिनों में 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है. मयंक शाह ने इस हालात के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार बताया था. इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में मयंक शाह ने कहा था कि बिस्किट पर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी बढ़ोतरी ने बिक्री को प्रभावित किया है.
अगस्त में इंटरव्यू के दौरान शाह ने बताया था, ”बिस्किट को मुख्य तौर पर दो कैटेगरी (100 रुपये प्रति किलो से ज्यादा और कम) में बांटा गया है. GST लागू होने से पहले 100 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 फीसदी टैक्स लगाया जाता था. लेकिन GST लागू होने के बाद हालात बदल गए और सभी बिस्किटों को 18 फीसदी स्लैब में डाल दिया. यह ठीक नहीं था.
इसका असर ये हुआ कि बिस्किट कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े और इस वजह से बिक्री में गिरावट आ गई है. शाह के मुताबिक आज हम लगभग 10 कंपनियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 1 लाख लोगों को नौकरी दे रहे हैं. मयंक शाह ने इंटरव्यू में यह भी बताया कि डिमांड में लंबे समय तक गिरावट होती रहने की स्थिति में छंटनी की जा सकती है.