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कैम्ब्रिज के मंच से गूंजेगी पंकज प्रसून की कविता

प्रसिद्ध व्यंग्यकार और कवि पंकज प्रसून कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अपनी प्रस्तुति देंगे। कैम्ब्रिज के बुलावे पर उन्होंने बताया कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय पोएट्री सिंपोजियम में उन्हें आमंत्रित किया गया है, जिसमें उनके साथ विदेशों के कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कभी भी रहेंगे। उन्होंने बताया की कैंब्रिज विश्वविद्यालय के साउथ एशियन स्टडी डिपार्टमेंट और कैंब्रिज इंडिया सोसाइटी की ओर से उन्हें उनकी विशेष कविताओं के लिए आमंत्रण दिया गया है। कार्यक्रम का संचालन कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ऐशवर्ज कुमार करेंगे। इस कार्यक्रम में पोलैंड की कवियित्री एलिक्जा, इजराइल से लडमिला केबोतेरेब एवं ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय के प्रोफसर डॉ. पद्मेश गुप्ता भाग ले रहे हैं।

पंकज प्रसून की कई कविताएं सोशल मीडिया पर अक्सर वायरल होती रहती हैं। उनकी कविता लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं को प्रख्यात अभिनेता अनुपम खेर ने टाइम्स स्क्वायर न्यूयॉर्क से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पड़ा था। उसके बाद अनुपम खेर उनके प्रशंसक बन गए और फिर उन्होंने उनकी दूसरी कविता मां का बुना स्वेटर कभी छोटा नहीं होता को पढ़कर अपनी वॉल पर पोस्ट किया था।

इसके अतिरिक्त वो उनकी कई कविताएं शेयर करते रहते हैं। पंकज प्रसून राष्ट्रीय स्तर के कई मंचों पर काव्य पाठ कर चुके हैं। उन्होंने रायबरेली जिले से लाल किला कवि सम्मेलन में 37 साल के सूखे को खत्म किया था। तमाम सारे आईआईटी, आईआईएम सहित कई टीवी चैनल पर पंकज प्रसून अक्सर दिखते रहते हैं, उनका कॉलम प्रसून का पंच काफी चर्चित रहा है।

उन्होंने बैसवारे के गावों की मासूम विसंगतियों को लेकर व्यंग्य कहानियों की किताब ‘द लंपटगंज’ लिखी थी। जो अमेजॉन हिंदी बेस्ट सेलर रही थी। वह बताते हैं कि उन्होंने बैसवारा में महसूस किया है कि यहां पान की दुकान चलाने वाला भी जायसी के दोहे चुनाव सुनाते मिल जाएगा। यहां का हल चलाता किसान भी घनाक्षरी छंदों की जुगलबंदी करता दिखेगा। यहां पर राजनीति में प्रेम भले ना मिले लेकिन प्रेम में राजनीति जरूर मिलती है।

पंकज प्रसून के नाम एक और रिकॉर्ड है। उन्होंने सिर्फ 33 साल की उम्र में ही उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से दो बार पुरस्कार प्राप्त किए। उनके पहले व्यंग्य संग्रह जनहित में जारी के लिए उन्हें वर्ष 2014 का रांगेय राघव पुरस्कार मिला था। फिर वर्ष 2018 में उनकी किताब परमाणु की छांव के लिए उन्हें केएन भाल अवार्ड तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक के हाथों प्राप्त हुआ था। पंकज प्रसून की अब तक 7 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। पंकज प्रसून का नाम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड एवं इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा पर कविता की पहली किताब लिखी थी। पंकज प्रसून को व्यंग्यविभूषन केपी सक्सेना व्यंग्य सम्मान, साहित्य गौरव अवॉर्ड, आउटस्टैंडिंग यूथ अवार्ड सहित अब तक कुल 40 वार्ड प्राप्त हैं।

पंकज प्रसून को लखनऊ विश्वविद्यालय के100 साल पूरे होने पर पिछले दिनों विशिष्ट ‘शताब्दी वर्ष सम्मान’ से नवाजा गया था। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें उन 50 पूर्व छात्रों में रखा था जो देश विदेश में विश्वविद्यालय का नाम रोशन कर रहे हैं। पंकज प्रसून ने व्यंग के साथ-साथ विज्ञान कविताओं की भी अलख जगा रखी है। उन्होंने देश का सबसे पहला विज्ञान कवि सम्मेलन लखनऊ में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान एवं निस्केयर दिल्ली के सहयोग से आयोजित कराया था। उसके बाद विज्ञान कवि सम्मेलन की फसल लहलहाने लगी।

पंकज प्रसून को देश के सबसे बड़े विज्ञान उत्सव इंटरनेशनल इंडिया साइंस फेस्टिवल में विज्ञान कविताओं के प्रस्तुतीकरण के लिए बुलाया जाता है। पंकज प्रसून एक नई विधा साइनटेनमेंट के संस्थापक भी हैं, जिसमें वह नीरस कहे जाने वाले विज्ञान को रसमय तरीके से प्रस्तुत करते हैं।

पंकज के बारे में कमाल की बात यह है कि वह पेशे से केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान में तकनीकी अधिकारी हैं और दवाओं पर अनुसंधान करते हैं। वह कोविड टेस्टिंग टीम का भी हिस्सा रह चुके हैं। कवि और वैज्ञानिक के इस दुर्लभ संयोग पर वह बताते हैं की वैज्ञानिक तन की वैक्सीन बनाता है और कवि मन की वैक्सीन बनाता है। वैज्ञानिक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन देता है, लेकिन कवि के पॉइंट में पावर होती है। वास्तव में कवियों ने कल्पना पहले की लेकिन वैज्ञानिकों ने सिद्ध बाद में किया। पंकज प्रसून आजकल अपनी नई उपन्यास ‘आवामपंथी’ पर कार्य कर रहे हैं। और जल्द ही उनकी किताब हंसी का पासवर्ड भी प्रकाशित होने वाली है।

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