सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वकील प्रशांत भूषण की एक याचिका पर सुनवाई गर्मियों की छुट्टियों के बाद तक के लिए टाल दी है। इस याचिका में प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने पासपोर्ट कानून के प्रावधान को चुनौती दी है। प्रशांत भूषण के वकील जयंत भूषण के उपलब्ध न होने के चलते जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइंया की पीठ ने याचिका पर सुनवाई गर्मियों की छुट्टियों के बाद तक के लिए टाल दी।
ट्रंप ने नशे की समस्या से निपटने के लिए बनाई योजना, मैक्सिको में घुसकर मारेंगे अपराधी
क्या है मामला
प्रशांत भूषण ने पासपोर्ट कानून के प्रावधान के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में प्रावधान में संशोधन की मांग की गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने जनवरी 2016 में प्रशांत भूषण की याचिका खारिज कर दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। याचिका में पासपोर्ट कानून, 1967 की धारा 6(2)(एफ) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि किसी अपराध के आरोपी को पासपोर्ट जारी नहीं किया जा सकता। साल 1993 में एक नोटिफिकेशन के जरिए इसमें थोड़ा बदलाव किया गया और बदलाव के तहत आरोपी को अदालत से एनओसी जारी करने पर एक साल के लिए पासपोर्ट जारी किया जा सकता है।
दरअसल प्रशांत भूषण ने एक धरना प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसके तहत उन्हें गाजियाबाद स्थित पासपोर्ट के रीजनल सेंटर से सिर्फ एक साल के लिए पासपोर्ट जारी हो रहा था। ऐसे में प्रशांत भूषण ने इस प्रावधान को चुनौती देने का फैसला किया। याचिका में कहा गया है कि कानून का प्रावधान गंभीर और अगंभीर अपराध में अंतर नहीं करता और दोनों मामलों में समान प्रतिबंध लगाता है और यह संविधान से मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन है।