गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच हुए खूनी संघर्ष को लेकर राहुल गांधी के सवालों का जवाब तो विदेश मंत्री जयशंकर दे चुके हैं। लेकिन 2008 में कांग्रेस पार्टी की ओर से राहुल गांधी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जो समझौता किया, उस पर उठ रहे सवालों का जवाब आना बाकी है।
गलवान घाटी में भारत-चीन झड़प पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी संतुष्ट नहीं हैं। ट्विटर पर उन्होंने अपना एक वीडियो शेयर करते हुए सरकार से सवाल किया कि गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों को किसने निहत्था भेजा? हालांकि, विदेश मंत्री जयशंकर ने तथ्यों को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह गलत बात न फैलाई जाए कि हमारे सैनिक निहत्थे थे।
दोनों के बीच पूर्व में हुए समझौतों के तहत ही वहां फायरिंग नहीं हुई। राहुल गांधी के इस आरोप की इसलिए भी आलोचना हो रही है, क्योंकि इस समय ये सवाल उठाने से किसी का फायदा नहीं होने वाला। खासतौर पर सर्वदलीय बैठक से पहले। हालांकि, इससे पहले राहुल गांधी चीन के मसले पर भारत सरकार को अपना समर्थन देने की बात भी कह चुके हैं। समर्थन और फिर अचानक विरोध को लेकर राहुल गांधी से ही सवाल पूछे जाने लगे हैं।
सवाल इसलिए कि अमूमन राहुल गांधी चीन को लेकर अलग रुख़ रखते रहे हैं। जब डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं आंखों में आंखे डालकर एक-दूसरे के सैनिकों की सेहत का अंदाज़ा लगा रही थी, तो राहुल गांधी ने चीन के राजदूत से मिलकर राजनीतिक हड़कंप मचा दिया था। तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राहुल गांधी पर चीन के साथ गुपचुप बातचीत करके भारत का पक्ष कमज़ोर करने का आरोप लगाया था।
फिर, पिछले साल के लोकसभा चुनाव के वक़्त राहुल गांधी मानसरोवर की तीर्थयात्रा पर गए थे। वहां वो चीन के कई अधिकारियों से मिल आए थे। उनमें से कुछ कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के वरिष्ठ नेता भी थे। ऐसे में राहुल के चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी से कथित संबंधों को लेकर भी कुछ लोग सवाल कर रहे हैं।
भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी यूपीए गठबंधन में जिसे लेफ़्ट फ़्रंट बाहर से समर्थन दे रही थी। उधर, चीन में ओलंपिक गेम्स की तैयारी चल रही थी। चीन ने आधिकारिक तौर पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को उद्घाटन समारोह में आने का न्योता दिया था। मनमोहन सिंह तो गए नही। उनकी जगह तब के खेल मंत्री एमएस गिल शामिल हुए और वीआईपी गैलरी में जॉर्ज बुश, हु जिंताओ समेत तमाम विश्व नेताओं के साथ बैठ कर समारोह का मज़ा लिया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चीनी सरकार की ख़ास मेहमान दीर्घा में बैठी थीं।
चीन के दौरे पर सोनिया गांधी के साथ तब के कांग्रेस जनरल सेक्रेट्री राहुल गांधी, उनकी बहन प्रियंका गांधी, उनके पति रॉबर्ट वाड्रा और दोनों बच्चे भी गए थे। ओलंपिक गेम्स के उद्घाटन से एक दिन पहले, कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच एक समझौता हुआ। राजनीतिक, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर विचार-विमर्ष के लिए। कांग्रेस की तरफ़ से राहुल गांधी ने मेमोरैंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (एम. ओ.) पर दस्तख़त किया। कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना की तरफ़ से वांग चियारुई ने दस्तख़त किए। यह समझौता पार्टी के स्तर पर हुआ था।
सोनिया गांधी और तब के चीनी उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग कांग्रेस-कम्यूनिस्ट पार्टी समझौते के गवाह थे। राहुल के दस्तख़त किए जाने से पहले उन्होंने और सोनिया गांधी ने शी चिनपिंग के साथ एक अलग मीटिंग भी की थी। यह समझौता उस वक़्त हुआ जब भारत की कम्यूनिस्ट पार्टियां कांग्रेस सरकार से नाराज़ चल रही थीं। अमेरिका से परमाणु क़रार को लेकर दोनों में अनबन थी।
लेकिन शी जिनपिंग और सोनिया गांधी ने इस समझौते को सहमति देकर एक नया रास्ता खोलने की उम्मीद जताई थी।साल 2008 में ही शी को हु के बाद चीन के राष्ट्रपति का सबसे मजबूत दावेदार समझा जाने लगा था। कांग्रेस के लिए यह कोई अनोखा समझौता नहीं था।लेकिन, ये दोनों पार्टियां गांधीवादी विचारधारा की राजनीति की बात करती है जबकि कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना गांधी के उलट माओ के हिंसक क्रांतिकारी आंदोलन से उपजी है।कांग्रेस और अफ़्रीकी कांग्रेस प्रजातांत्रिक व्यवस्था की पार्टियां हैं जबकि चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी डिक्टेटरशिप वाली सत्ता में भरोसा करती है। शायद यही वजह है कि राहुल गांधी और कांग्रेस को भारत-चीन विवाद के बीच में कठघरे में खड़ा किया जा रहा है.