भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने गुरुवार को वित्त वर्ष 2018-19 के लिए अपनी वार्षिक रिर्पोट जारी की। रिर्पोट में कहा गया है कि देश में चलन में मौजूद मुद्रा 17 फीसदी बढ़कर 21.10 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई है। साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 में बैंकों में 71,542.93 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 6,801 मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बैंक धोखाधड़ी में साल दर साल इसमें 15 फीसद की वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2018-19 में 73.8 फीसद रकम की चपत लगी है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017-18 में 5,916 मामले सामने आए थे, जिनमें 41,167.04 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई थी। 2018-19 में सबसे ज्यादा धोखाधड़ी पब्लिक सेक्टर बैंक में हुए। इसके बाद निजी क्षेत्र के बैंक और विदेशी बैंक थे। समीक्षाधीन वर्ष में सरकारी बैंकों ने 3,766 मामलों में 64,509.43 करोड़ रुपये के धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए, जबकि 2,885 मामलों में 38,260.8 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक फ्रॉड का पता चलने और फ्रॉड होने की तारीख में औसतन 22 महीने का समय लगा। बड़े फ्रॉड यानी 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की धोखाधड़ी के बीच यह अंतर औतसन 55 महीने था।
आपको बता दें कि यह रिपोर्ट हर साल जारी की जाती है, जिसमें केंद्रीय बैंक के कामकाज तथा संचालन के विश्लेषण के साथ ही अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन में सुधार के लिए सुझाव दिए जाते हैं। आरबीआई की इस रिपोर्ट में आईएल एंड एफएस संकट के बारे में कहा गया है कि इसके बाद एनबीएफसी से वाणिज्यिक क्षेत्र को ऋण प्रवाह (लोन फ्लो) 20 फीसदी तक घट गया है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार साल 2018-19 में बैंकों में धोखाधड़ी के 6,801 मामले सामने आए, इनमें 71,542.93 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई।
रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि अधिशेष कोष से सरकार को 52367 करोड़ रुपये देने के बाद आरबीआई के आकस्मिक कोष में 1,96,344 करोड़ रुपये की राशि बची है। इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि ऋण माफी, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन, आय समर्थन योजनाओं के चलते राज्यों की वित्तीय प्रोत्साहन की क्षमता घटी है। आपको बता दें कि रिजर्व बैंक ने इसी महीने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अपने अनुमान को घटाकर 6.9 प्रतिशत किया है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि अर्थव्यवस्था के समक्ष इस समय जो बड़ा सवाल हैं: वह यह कि क्या हम अस्थाई नरमी में है या यह चक्रीय गिरावट है अथवा इस सुस्ती के पीछे संरचनात्मक मुद्दे बड़ी वजह हैं ?