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इतिहास के झरोखे से: पढ़ें अंग्रेजों को धूल चटाने वाले दलित महानायकों की कहानी…

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन संपूर्ण देश का आंदोलन था। अनेक जातियां, समुदाय, अनेक क्षेत्रों के लोग इसमें शामिल थे। भारत के दलित समूह की भी भारत छोड़ो आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हालांकि महात्मा गांधी, नेहरू, राजेंद्र प्रसाद के साथ भारत के अलग-अलग प्रान्तों में दलित कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रहे थे। किन्तु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास लेखन में उन्हें महत्वपूर्ण जगह मिलना अभी बाक़ी है।

क्रांतिकारी सिर्फ क्रांतिकारी होता है, वह दलित या आदिवासी नही होता। लेकिन देश के कई ऐसे क्रांतिकारी रहे, जिन्हें दलित या आदिवासी होने के कारण भुला दिया गया और उनका नाम इतिहास के पन्नो में दबा दिया गया। हमारा यह प्रयास है कि उन शहीदों को भी याद किया जाए जिनके देशप्रेम और बलिदान से इतर उनकी जाति को ऊपर रखा गया और उन्हें वो सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वो हकदार थे।

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गंगाराम धानुक एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने देश के लिए मार्च किया, नारे लगाए, जेल गए और यहां तक कि अंग्रेजों द्वारा उन्हें प्रताड़ित भी किया गया। महात्मा गांधी ने जब हरिजन उत्थान आंदोलन शुरू किया था, उसमें उन्होंने 21 दिनों तक उपवास किया था। उन्होंने लोगों से छुआ-छूत की बुरी प्रथा को समाप्त करने और भूल जाने  का अनुरोध किया। वर्ष 1932 में गंगाराम, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के सम्पर्क में आए और उनकी सहायता से उत्तर प्रदेश के इटावा जैसे कुछ क्षेत्रों में आन्दोलन खड़ा किया। इसके बाद उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया।

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गंगाराम धानुक को दलित समुदाय में उनके योगदान के लिए अन्य स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा भी सराहा जाता है। लेकिन वक़्त के साथ-साथ जिन स्वतंत्रता सेनानियों का नाम भी गुमनाम होता गया…उनमें बिहार के गंगा राम धानुक, भोला पासवान, जगलाल चौधरी, उत्तर प्रदेश के धर्म प्रकाश, राम जी लाल सहायक, जौनपुर उत्तर प्रदेश के माता प्रसाद, खुदागंज के प्रेम चन्द आर्य, राजस्थान के गोबिन्द गुरु, मध्य प्रदेश के भगवती चन्द्राकर, के जूलुसों में दलित समूह के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

ऐसा कहा जाता है कि बिहार से उभरे बाबू जगजीवन राम, गंगाराम धानुक के ही राजनीतिक शिष्य माने गए हैं। दलित समूह के ये क्रान्तिकारी देश के लिए अंग्रेजों से लड़े, साथ ही इनमें से कइयों ने समाज में दलित मुक्ति की लड़ाई का भी नेतृत्व किया। बाबू गंगाराम धानुक ने ताउम्र दलित मुक्ति की लड़ाई लड़ी। ये सब कांग्रेस के बैनर तले आज़ादी की लड़ाई से जुड़े, साथ ही अनेक छोटे-छोटे उप संगठन बनाकर दलित मुक्ति की लड़ाई भी लड़ते रहे। इन सबके लिए देश की मुक्ति और दलित मुक्ति एक दूसरे से गहराई से जुड़े थे।

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1941 के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक भोला पासवान ने आज़ादी के बाद अछूतों के बीच जागरूकता लाने के लिए अनेक आंदोलन चलाए। उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे धर्म प्रकाश ने आर्य समाज के बैनर तले दलितों में आत्म सम्मान जागृत करने का अभियान चलाया था, साथ ही भारत छोड़ो आंदोलन के महत्वपूर्ण जननायक बनकर उभरे।

इतिहास के झरोखे से: पढ़ें अंग्रेजों को धूल चटाने वाले दलित महानायकों की कहानी…

उत्तर प्रदेश के मेरठ के रामजी लाल सहायक ने 1942 के आंदोलन में दलित नवयुवकों को बड़ी संख्या में गोलबंद किया था। आज़ादी मिलने के बाद इन्होंने अपना पूरा जीवन पूर्ण रूप से समाज सेवा में लगा दिया। 1966 में वे उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री भी बने।

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1942 के आंदोलन के ये दलित जननायक गांव-गांव और कस्बे-कस्बे में मिल जाएंगे, ज़रूरत है इन पर शोध कर इन्हें सामने लाने की। इन दलित जन नायकों में ज़्यादातर कांग्रेसी थे। लेकिन इनके लिए आज़ादी की लड़ाई सिर्फ़ अंग्रेजों से देश की मुक्ति की लड़ाई नहीं थी, किन्तु अछूतपन से मुक्ति और दलित मुक्ति की लड़ाई से भी जुड़ी थी।

इसीलिए उनमें से ज़्यादातर स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ दलित समाज के समाज सुधारक भी बन कर उभरे। इनमें से कई आज़ादी के बाद बनी राज्य सरकारों में मंत्री तक बने, लेकिन इनमें से कई आज भी अनाम हैं. आज जब इस ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को याद कर रहे हैं तो हमें उन्हें भी याद करने की ज़रूरत है। अगली कडी में आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा और तिलका मांझी के ‘संथाल विद्रोह’ की कहानी…

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