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कुष्ठ की पीड़ा से उबर चुके धरम बने दूसरों के मददगार

• सफ़ेद दाग जो सुन्न नहीं होता, कुष्ठ रोग नहीं है : डॉ महेश कुमार

कानपुर नगर। जिस उम्र में जीवन की ऊंचाइयों को हासिल करने के सपने पनप रहे होते हैं, वह समय बहुत ही खास होता है। जोश और जज्बा चरम पर होता है पर इसी उम्र में शारीरिक परेशानी के कारण उन सपनों में ब्रेक लग जाये तब बहुत निराशा होती है। कुछ ऐसी ही कहानी है ब्लॉक पतारा के गाँव अकबरपुर झबईया के रहने वाले 55 वर्षीय धरम सिंह की। वर्ष 1987 में लगभग 20 वर्ष की उम्र में जब धरम किसानी से अलग हटकर नौकरी करने के सपने बुन रहे थे तभी उन्हें हाथ पैरों में की उंगलियों में दर्द के साथ अकड़न शुरू हुई और कुछ दाग से दिखे।

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पहले तो निजी डॉक्टरों से दवा ली पर आराम नहीं मिला। फिर सरकारी अस्पताल में दिखाया तो वहाँ पूरा इलाज हुआ। मर्ज तो ठीक हो गया पर अपना प्रभाव ऐसा छोड़ा कि हाथ में दिव्यांगता हो गयी। अब वह दूसरों के मददगार बनकर कुष्ठ से बचाने में जुटे हैं। किसी में अगर इसके लक्षण नजर आते हैं तो उसे जाँच और उपचार के लिए प्रेरित करते हैं।

कुष्ठ की पीड़ा

धरम अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि एक समय वह मुश्किलों से जूझ रहे थे, खेती-किसानी के काम भी नहीं कर पाते थे। फावड़ा तक पकड़ने में असहाय धरम सिंह अब खेती- किसानी के साथ घर के भी सारे काम आराम से निपटा लेते हैं। अब किसी तरह का कोई संक्रमण नहीं है और धरम सिंह स्वयं सहायता समूह और सामुदायिक बैठकों में कुष्ठ पर चर्चा करते हैं। धरम बताते हैं कि जब उनके बाएं पैर और हाथ की उंगलियों में दर्द हुआ तो उन्होंने इसे साधारण दर्द मान लिया। कुछ दिन बाद जब लालिमा लिये हुए कुछ चकत्ते दिखे तभी गाँव में डाक्टरों को दिखाते रहे और इधर-उधर इलाज चलता रहा।

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आराम नहीं मिला तो कानपुर शहर में प्राइवेट चर्म रोग विशेषज्ञ को दिखाया और इलाज शुरू हुआ। वर्ष 1990 में गाँव में जब टीम आयी तब उन्होंने एमडीटी दवा के सेवन के बारे में बताया। पूरे बारह महीने का उपचार लिया। कुष्ठ विभाग की टीम के शालीन व्यवहार और फिजियोथेरेपी से इस लड़ाई को जीतने की ताकत मिली। वह कहते हैं- बीमारी से लड़ने में परिवार ने भी हमेशा साथ दिया। अब मैं ठीक हूँ और सारे काम स्वयं करता हूँ। कुष्ठ जनित दिव्यांगता (कुष्ठ की पीड़ा) के तहत मिलने वाली पेंशन के कारण ही आज अपने परिवार का पालन-पोषण कर पा रहा हूँ।”

कुष्ठ की पीड़ा

कुष्ठ रोग के लिए सरकारी इलाज और सुविधाओं से बेहतर और कुछ नहीं है। यह केवल धरम ही नहीं, बल्कि ऐसे कई लोगों का कहना है जिन्होंने कुष्ठ से लड़ाई में सरकारी इलाज और सुविधाओं पर भरोसा किया और इसमें जीत भी हासिल की। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ महेश कुमार बताते हैं कि कुष्ठ कार्यक्रम के तहत जनपद में रोगियों को विशेष सेवाएं दी जा रही हैं। कुष्ठ जनित दिव्यांगता के लिए सरकार द्वारा प्रमाण पत्र भी दिए जाते हैं। डॉ महेश बताते हैं कि कुष्ठ रोग एक बहुत ही कम संक्रामक रोग है जो बैक्टीरिया के कारण होता है। हमारे समाज में अभी भी कुष्ठ रोग को लेकर कई भ्रांतियाँ फैली हुई हैं।

इसलिए इसके प्रति लोगों में जागरुकता फैलाना ज़रूरी है। यदि कुष्ठ रोग की जांच शुरुआत में ही करा ली जाए और इसका पूरा उपचार कराया जाए तो यह पूर्ण रूप से ठीक हो सकता है। कुष्ठ जनित दिव्यांगता (कुष्ठ की पीड़ा) से भी बचा जा सकता है। हालांकि दवा खाने के कुछ मामूली दुष्प्रभाव जैसे त्वचा का सांवलापन हो सकता है पर इनसे घबराना नहीं चाहिए। कार्यक्रम के तहत कुष्ठ रोगियों को सेल्फ-केयर किट दी जाती है। इससे वह घावों का ख्याल रख सकें। इसके अलावा कुष्ठ प्रभावित पैरों को घाव से बचाने के लिए ख़ास चप्पल भी दिए जाते हैं।

प्रमाण पत्र और पेंशन के लिए यहाँ करें आवेदन

जिला कुष्ठ कार्यालय में तैनात फिजियोथेरेपिस्ट पूजा बताती हैं कि कुष्ठ जनित दिव्यांगता के लिए सरकार द्वारा प्रमाण पत्र भी दिए जाते हैं। इसके साथ ही पत्र पाए जाने पर दिव्यांग कल्याण विभाग की ओर से कुष्ठ प्रभावित दिव्यांगों को पेंशन दी जाती है। इसके तहत वर्तमान में जिले में 147 कुष्ठ रोगियों का उपचार चल रहा है। जनपद के 286 कुष्ठ प्रभावित दिव्यांगों को 3000 रुपये प्रति माह की दर से पेंशन भी दी जा रही है। कुष्ठ के कारण दिव्यांग हुए व्यक्ति अपना प्रमाण पत्र बनवाने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के विकलांग बोर्ड में संपर्क कर सकते हैं। पेंशन के लिए आवेदन करने के लिए कचहरी स्थित जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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