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विद्यार्थी परिषद की ‘ध्येय यात्रा’ : उद्देश्य और प्रगति का संकलन

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना राष्ट्र साधना के धरातल पर हुई थी। इसके अनुरूप संघ की शाखाओं से सहज रूप संस्कार जागृत होते है। इस प्रेरणा से समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों में कार्य का विस्तार हुआ। आनुषंगिक संघठन समाज सेवा की मिसाल कायम कर रहे है। गोस्वामी जी ने लिखा है-

धीरज धरम मित्र और नारी।
आपद काल परिखिये चारी।।

विगत दो वर्षों तक वैश्विक महामारी कोरोना का प्रकोप रहा। इस दौरान संघ के आनुशांगिक संगठनों ने बेहतरीन व व्यापक राहत कार्यों का संचालन किया। मतलब आपदा काल में इन सभी आनुषंगिक संगठनों ने अपने सामाजिक दायित्व का बखूबी निर्वाह किया। जबकि इस अवधि में अनेक राजनीतिक दल व उनके युवा छात्र प्रकोष्ठ ट्विटर में ही सक्रिय दिखाई दिए। जिनको संघ से प्रेरणा मिली उन्होंने स्वयं कठिनाई उठा कर जरूरतमंदों को राहत पहुंचाई।

चीन व पाकिस्तान के आक्रमण के समय स्वयंसेवक अपने स्तर से सहयोग करते थे। इसीलिए गणतंत्रदिवस परेड में स्वयंसेवकों को पथसंचलन हेतु राजपथ पर आमंत्रित किया गया था। लाल बहादुर शास्त्री ने द्वितीय सर संघचालक से पूछा था कि आप स्वयं सेवकों को राष्ट्र सेवा की प्रेरणा कैसे देते थे।

गुरु गोलवलकर ने कहा था को हम लोग शाखा में खेलते है। यहीं संगठन की प्रेरणा मिलती है,संस्कार और राष्ट्रभाव जाग्रत होता है। इसके लिए शाखाओं की पद्धति शुरू की गई।

विद्यार्थी परिषद ऐसा ही संगठन है। इसने अपनी स्थापना के पचहत्तर वर्ष पूरे किए। इस उपलक्ष्य में ध्येय यात्रा पुस्तक का प्रकाशन किया गया। 1949 में स्थापित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आज विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन बन चुका है। परिषद की इस जीवन यात्रा को पुस्तक के रूप में दो खंडों में प्रकाशित किया गया है।

वस्तुतः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना राष्ट्र भाव करने के लिए हुई थी।

वस्तुतः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना राष्ट्र भाव करने के लिए हुई थी। संघ संस्थापक के डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के निवास स्थान में समर्थ गुरु रामदास व शिवजी के चित्र लगे थे। वह जो छड़ी लेकर चलते थे, उसमें शेर बना था। उनका कहना था कि शेर जंगल का राजा होता है। उसे यह बात कहनी नहीं पड़ती। इन प्रतीकों से संघ के संस्थापक के विचार का अनुमान लगाया जा सकता है। वह भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे। यह सामान्य संघठन है,जो खुले मैदान में चलता है। विश्व का सबसे बड़ा ही नहीं सर्वाधिक खुला संगठन है।

संघ की स्थापना से पहले डॉ हेडगेवार ने महात्मा गांधी से वार्ता की थी। कहा कि समाज को मजबूत बनाना चाहते है, राजनीतिक पार्टी नहीं बनाना चाहते। महात्मा गांधी दो बार संघ के शिविर में आये। संघ को गांधी जी से कभी परहेज नहीं रहा एकात्मक स्त्रोत में गांधी जी का स्मरण किया जाता है। द्वितीय सरसंघ चालक श्री गुरु जी ने कहा था कि संघ परिवार केंद्रित कार्य करता है। बड़ों की सेवा करना परिवार का काम है। विदेशों में यह कार्य भी सरकार करने लगी। संघ का प्रयास है कि ऐसी जिम्मेदारी का परिवार स्तर पर ही निर्वाह करे। यह विचार आदर्श समाज की स्थापना करता है। ऐसा आदर्श चिंतन भारतीय संस्कृति में ही संभव है। यह सही हो तो परिवार सही रहेगा, इससे समाज भी मजबूत होगा। संघ का यही प्रयास है।

संघ का चाहता है कि स्नेह सद्भाव का रिश्ता होना चाहिए। भारत परम्परा से हिन्दू राष्ट्र है। यह शास्वत सत्य है। संघ समाज से जुड़ा संगठन है। समाज से अलग नहीं है। समाज के साथ ही चलना है। संघ यही कर रहा है। इतिहास वह नहीं है जो अंग्रेजो ने लिखा। बहुत से गौरवशाली काल इतिहास में शामिल ही नहीं किये गए। इससे गलतफहमी हुई। हिन्दू शब्द को साम्प्रदायिक मान लिया गया। यहाँ कभी सभ्यताओं का संघर्ष नहीं रहा। उत्पीड़ित लोगो को शरण देना भारतीय संस्कृति है। हिंदुत्व शब्द जोड़ने वाला है। जिसमें उपासना पद्धति पर भेदभाव नहीं किया गया। विश्व में ऐसा अन्य कोई देश नहीं है।

हिन्दू राष्ट्र में सभी के पूर्वजों को एक मानने का भाव रहा है।

हिन्दू राष्ट्र में सभी के पूर्वजों को एक मानने का भाव रहा है। यह तो जोड़ने वाला विचार है। संघ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुआ था। उस समय सभी संगठन कांग्रेस के माध्यम कार्य कर रहे थे। संघ के स्वयं सेवक यह कर रहे थे। संघ के संस्थापक स्वयं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत केवल भूगोल नहीं है। यह सांस्कृतिक भूमि है। सीमा की भी रक्षा करनी है। संस्कृति की रक्षा के लिए भी समाज में लोगों को आगे आना पड़ता है। डॉ हेडगेवार भारत को पुनः परम वैभव के पद पर आसीन देखना चाहते थे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ध्येय यात्रा पुस्तक का अग्रिम पंजीयन करवाया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में अहर्निश रत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के इतिहास ग्रंथ ध्येय-यात्रा अभाविप की ऐतिहासिक जीवन गाथा की प्रति का अग्रिम पंजीकरण कराया।

पुस्तक के खंड एक में स्थापना की पृष्ठभूमि, वैचारिक अधिष्ठान, संगठन का स्वरूप और विकास क्रम,छात्र आंदोलन की रचनात्मक दिशा,शिक्षा,छात्र।हित, राष्ट्रहित में साहसिक प्रयास शामिल है। खंड दो में छात्र नेतृत्व एवं अभाविप,वैष्विक पटल पर, ऐतिहासिक प्रस्ताव, राष्ट्रीय,सामाजिक एवं शैक्षिक मुद्दे,विविध आयाम,महत्व,प्रभाव और उपलब्धियां शामिल हैं। नई दिल्ली के अम्बेडकर इंटरनेशनल भवन में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इस पुस्तक का विमोचन किया। इस मौके पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा,संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर, अभाविप के राष्ट्रीय अध्यक्ष छगन भाई पटेल व अभाविप की राष्ट्रीय महामंत्री निधि त्रिपाठी आदि उपस्थित थे।

सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि ध्येय यात्रा का प्रकाशन कोई आत्मस्तुति के लिए नहीं किया गया है। इसके पीछे यह उद्देश्य है कि आगामी कार्यकर्ताओं को कार्य की प्रेरणा और आधार मिल सके। जो विशिष्ट दर्शन जो अभाविप ने विकसित किया है, उससे लोग परिचित हो सकें,और उसे समझ सकें। प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि विद्यार्थी परिषद ठहरा हुआ इतिहास नहीं है, लगातार परिषद के आयाम बढ़ रहे हैं। नए नए समाजिक जीवन के विषयों पर आंदोलन जारी है। विद्यार्थी परिषद की यात्रा के साथ एक ध्येय जुड़ा है।

हम सब उसके यात्री बन गए हैं। इस सतत प्रवाह का रूपांतरण करने का प्रयास पुस्तक में किया गया है। ध्येय यात्रा में पचहत्तर वर्षों के इतिहास का संकलन है। गुजरात में भूकम्प बाढ़,ओडिशा एवं महाराष्ट्र में सूखे के दौरान किये गए सेवा कार्य से प्रेरणा लेकर, अभाविप के कार्यकर्ताओं ने अद्वीतीय सेवा कार्य किया। विभिन्न आयामों के विकास एवं एक करोड़ सदस्यता के लक्ष्य के साथ यह यात्रा अनवरत आगे बढ़ती रहेगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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