दिल्ली में राहुल गांधी की मौजूदगी के बावजूद भी राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) से सीधी लड़ाई के मूड में दिखाई दे रहे हैं। सचिन पायलट (Sachin Pilot) अपनी मांगों पर अडिग है।
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पीछे हटने के लिए तैयार नही है। हालांकि, सीएम गहलोत पायलट की मांगों को बुद्धि का दिवालियापन बता चुके है। सचिन पायलट के बयानों से साफ झलक रहा है कि वह पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। माना जा रहा है कि आगामी दिनों में गहलोत सरकार पर हमला तेज करेंगे।
राजनीतिक विश्षकों का मानना है कि चुनावी साल में सचिन पायलट तीन मांगों के जरिए कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते है। क्योंकि बीजेपी ने सचिन पायलट की आड़ में गहलोत सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अपनाए हुए है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गांधी परिवार के प्रति गहलोत की वफादारी काम आई है। जबकि सचिन पायलट को उनके पिता राजेश पायलट के तेवरों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। बता दें राजेश पायलट तत्कालिन कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चो खोल चुके हैं। गहलोत ने राजस्थान में 2018 में कमान संभाली थी।
पायलट कैंप ने गहलोत का सीएम बनने का विरोध किया। लेकिन कांग्रेस आलाकमान से सुलह के बाद पायट कैंप शांत हो गया। पायलट समर्थक गहलोत का परदे के पीछे विरोध करते रहे। परिणाम यह हुआ कि 2020 में सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी। सचिन पायलट अपने समर्थकों के साथ गुड़गांव के एक होटल में करीब 20 दिन रहे थे।
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राजस्थान में अशोक गहलोत का विरोध भले ही सचिन पायलट कर रहे हैं लेकिन बीते साढे़ चार साल में सीएम अशोक गहलोत सचिन पायलट पर भारी पड़े है। पायलट के विरोध के बावजूद कांग्रेस आलाकमान गहलोत के पक्ष में दिखाई दिया है। सचिन पायलट की पदयात्रा हो या अनशन। कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत का ही साथ दिया है।
पायलट की वर्ष 2020 में बगावत के दौरान भी कांग्रेस आलाकमान खुलकर गहलोत के साथ रहा। यहीं वजह है कि सचिन पायलट के विरोध के बावजूद गहलोत को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाया गया। मोटे तौर पर सचिन पायलट साढ़े चार में 9 बार सीधे तौर पर गहलोत से टकरा चुके हैं। लेकिन गहलोत को सोनिया गांधी का साथ मिला। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यही वजह वजह कि गहलोत की कुर्सी हिली तक नहीं।