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‘फेस्का’ फिल्म्स की 2 शॉर्ट फिल्म्स की स्क्रीनिंग हुई संपन्न

इस कार्यक्रम में फिल्म के कलाकार देवेंद्र मोदी, कीर्तिका श्रीवास्तव कांति, अखिलेश श्रीवास्तव के साथ पूनम जायसवाल प्रेस से रूबरू हुए और अपने अनुभव को साझा किया। फिल्म का निर्माण आगामी होने वाले विभिन्न फिल्म्स फेस्टिवल के लिए भी किया गया है।

लखनऊ। ‘फेस्का’ फिल्म्स के बैनर तले राजीव प्रकाश की लिखी हुई 2 शॉर्ट फिल्म्स ‘एक आहट’ और ‘साथ तुम्हारा’ की स्क्रीनिंग और प्रेस वार्ता बून्स रेस्टोरेंट अलीगंज में संपन्न हुई।कलाकारों के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ अमरेश कुमार झा डीजीएम भारतीय स्टेट बैंक के कर कमलों से हुआ।

इस कार्यक्रम में फिल्म के कलाकार देवेंद्र मोदी, कीर्तिका श्रीवास्तव कांति, अखिलेश श्रीवास्तव के साथ पूनम जायसवाल प्रेस से रूबरू हुए और अपने अनुभव को साझा किया। फिल्म का निर्माण आगामी होने वाले विभिन्न फिल्म्स फेस्टिवल के लिए भी किया गया है। निर्मित फिल्म सामाजिक परिदृश्य का सशक्त ताना बाना है। फिल्म में डी.ओ.पी मोहम्मद दानिश थे जबकि, एडिटिंग राहुल दुबे, मोहम्मद दानिश और स्नेहिल श्रीवास्तव ने बखूबी निभाई है।

फिल्म का निर्माण आभा प्रकाश और अर्चना अपूर्वा द्वारा किया गया, जबकि निर्देशन का दायित्व राजीव प्रकाश और राजेश श्रीवास्तव ने निर्वाह किया। निदेशक राजीव प्रकाश ने बताया दोनों फिल्म आज के सामाजिक विषयों का सटीक चित्रण करने में सफल रही हैं ‘एक आहट’ फिल्म में मां-बाप अपने बच्चों के लिए अपना पूरा जीवन उनकी छोटी-छोटी खुशियों के लिए न्योछावर कर देते है, जबकि जीवन के अंतिम पड़ाव पर उनको बच्चों से मिलता है एकाकीपन, घुटन और वृद्धा आश्रम की राह।

दूसरी फिल्म ‘साथ तुम्हारा’ ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए एक महिला एक पुरुष की कहानी है, जो अपना जीवन साथी को अपने जीवन काल के बीच में ही खो देते हैं। शेष जीवन के लिए जीवन बिताना एक पहाड़ सा लगता है। ऐसे में यदि किसी का सहारा मिले, तो क्या परिवार और समाज इसको मान्यता देगा? जीवन के अंतिम पड़ाव पर एक साथी की आवश्यकता पड़ती है, तो क्या तब यह समाज उसे स्वीकार करेगा?

आज के समाज की चकाचौंध और बच्चों का महात्वाकांछी हो जाना, उसके लिए मां-बाप को भी छोड़ देना। ऐसी स्थितियों में यदि समाज से लड़कर कोई अपना जीवन साथी किसी दूसरे को बना ले, तो अंत समय निश्चित ही सुखदायी होगा। आज दोनों ही परिस्थितियां समाज में तेजी से समाज को विकृत स्वरूप प्रदान कर रही हैं। राजीव प्रकाश ने बताया आने वाले समय में और भी सामाजिक विषमताओं वाले विषय पर फिल्म बनाने की तैयारी है। अगली फिल्म ‘उसकी तलाश में’ बनेगी, जिसमें एक लड़का एक ऐसी लड़की की तलाश करता है, जो अपने पिता को साथ रख सके, उनकी उचित देखभाल कर सके, उनकी हर समस्या में बराबर की भागीदार बन सके।

इस तरह फिल्म निर्माण में नवोदित कलाकारों को साथ लाने और उनकी प्रतिभा को निखारने का प्रयास भी है। अभी पांच फिल्में और तैयार की जाएंगी। 3 वीडियो एल्बम भी फ्लोर पर हैं। आशा है इस साल के अंत में फीचर फिल्म ‘खामोश निगाहें’ पूरी कर लेने की संभावना है। अंत में राजेश श्रीवास्तव ने बताया वर्तमान समय में कलाकारों की प्रतिभाओं को सही दिशा प्रदान कर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने की पूरी कोशिश है।

फेस्का फिल्म्स ने अनेक कलाकारों को मंच ही नहीं प्रदान किया, बल्कि उनको एक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने में सही दिशा दी और आज भी इस दिशा में कार्यरत है। यही कारण है कि आज इसका स्वरूप बहुत विस्तृत हो गया है। अगले माह कलाकारों के चयन के लिए नृत्य, गायन और फैशन शो का भी आयोजन किया जाएगा। ‘मदर्स स्पेशल’ के अंतर्गत भी डांस और रैम्प शो का आयोजन भी शामिल है। अभी एक फिल्म के निर्देशन का दायित्व निभाने में व्यस्त हूं।

जल्दी ही एक फिल्म फेस्टिवल के आयोजन के संदर्भ में प्रस्ताव बनाया जा चुका है कब करेंगे ये वक्त आने पर आप सब को पता चल जायेगा।राजेश जी ने बताया जैसे सरकार महिला सुरक्षा के प्रति अपना दायित्व बखूबी निभा रही है वैसे वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान और सुरक्षा पर भी ध्यान और देने की जरूरत है इस लिए हमने फिल्मों में इसी विषय को आधार माना है कि समाज में जन्म ले रही बुराई के प्रति आज की युवा पीढ़ी और समाज में बदलाव लाकर भारतीय संस्कृति को अपनाकर इसको पुराना स्वरूप दे सके। परिवार में खुशियों का वास हो और फिर संयुक्त परिवार की अवधारणा को नया आयाम मिल सके।

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