लखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. मसूद अहमद ने केन्द्र और प्रदेश सरकार की हठधर्मिता पर आक्रोश व्यक्त करते हुये कहा कि लगभग 2 माह से दिल्ली स्थित शाहीनबाग और उ.प्र. की राजधानी लखनऊ सहित विभिन्न शहरों में चलने वाले नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरूद्व धरनों में सरकारों की तरफ से प्रताड़ना ही मिली है, जबकि इन दोनों ही सरकारों का कर्तव्य प्रदर्शनकारियों के बीच में जाकर सांमजस्य स्थापित करना था। प्रदर्शनकारी महिलाओं में अल्पसंख्यक वर्ग ही नहीं बल्कि हिन्दू वर्ग की महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व है।
डाॅ. अहमद ने कहा कि इन धरनों में पुरूष वर्ग के प्रतिनिधियों ने समय समय पर जाकर समर्थन देने की घोषणाएं की परन्तु पुरूषों पर विभिन्न थानों में मुकदमें दर्ज कराकर सरकार ने दण्डात्मक कार्यवाही की है, जिसकी निन्दा की जानी चाहिए तथा सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि यदि इन शान्तिपूर्वक धरनों के माध्यम से महिलाओं के साथ साथ पुरूषों ने भी भागीदारी प्रारम्भ कर दी तो सामाजिक ताना-बाना तितर बितर हो जायेगा। जिसकी जिम्मेंदारी केन्द्र और प्रदेश सरकार की होगी।
रालोद प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनसाधारण को शान्तिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन का अधिकार है और सरकार का यह दायित्व है कि जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुये उनकी समस्याओं का निराकरण भी किया जाय। प्रदर्शनकारियों द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम के सन्दर्भ मेें सरकार के समक्ष जो भी मांग रखी जा रही है उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करके अधिनियम को वापस लिया जाय ताकि आम जनमानस में सांमजस्य स्थापित हो सके।