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बिधूना में चल रही श्रीमद्भागवत कथा, कथा के पांचवे दिन भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की कथा

बिधूना। कस्बा के मोहल्ला सुखचैनपुर में श्री बालाजी सेवा समिति द्वारा आयोजित सातवें श्रीमद्भागवत कथा समारोह के पांचवें दिन भागवताचार्य पं. कृष्ण कुमार पाण्डेय ने भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की कथा सुनायी। बताया कि समुद्र मंथन के दौरान छल से अमृतपान करने वाले राक्षस को किस तरह उन्होंने सजा दी। इस दौरान पंडाल में भारी संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं ने मंत्रमुग्ध हो भागवत कथा का श्रवण किया।

रविवार को भागवताचार्य पाण्डेय ने कथा के दौरान बताया कि भगवान विष्णु के कुल 24 अवतारों का वर्णन हम प्रमुख ग्रन्थों मे देख सकते है। जिनमें से एक प्रमुख अवतार मोहिनी अवतार भी है। जो भगवान विष्णु का शक्ति रूप में स्त्री अवतार है। कहा समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं इत्यादि को परेशानी हुई, तो उससे मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था। बताया कि समुद्र मंथन के दौरान सारी समस्या ज्ञात होने के उपरांत भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धरण किया और राक्षसों को रिझाते हुए सबको बारी बारी से अपने हाथों से अमृत पिलाने का निर्णय लिया।

उन्होंने सबसे पहले देवताओं को अमृत पान कराया। जिस दौरान राक्षसों में एक राक्षस ने छल करके देवताओं का रूप धारण कर अमृत पान कर लिया। जैसे ही भगवान विष्णु को इस बात का संज्ञान हुआ, तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। जिसे हम राहू केतू के रूप मे जानते है।

जब मोहिनी स्वरूप ने भगवान शिव की रक्षा की

भागवताचार्य ने कहा कि भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार से जुड़ी एक और प्रसिद्ध कथा है। जिसमें उन्होंने भगवान शिव की सहायता की। हम सभी जानते है भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते है, और उन्हें कोई भी वरदान दे देते है। इसीलिए उन्हें भोले नाथ कहा जाता है। कहा कि एक समय की बात है। भष्मासुर नाम का एक राक्षस था, उनसे अमर होने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। सबसे पहले उसने अमरता का वरदान मांगा जिसके बदले में भगवान शिव ने कुछ और वर मागने को कहा। उसने पुनः वर मांगा कि जिस किसी के सिर पर अपना हाथ रखे वो वही भष्म हो जाये भगवान शिव ने तथास्तु कह कर उसकी इच्छा पूरी कर दी।

भागवताचार्य ने राजा हरिश्चंद्र व भगवान राम के अवतार का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र द्वारा पुत्र मोह के चलते भगवान वरुण को अपने पुत्र की बलि नहीं देने के कारण अपना राजपाठ गंवाना पड़ा। विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं मांगी। जिसके चलते राजा हरिश्चंद्र को अपनी पत्नी तारा व पुत्र रोहतास को एक ब्राह्मण के हाथों बेचना पड़ा और स्वयं को भी एक चांडाल के यहां बिकना पड़ा। पुत्र रोहतास की सर्पदंश से मृत्यु के बाद जब तारा पुत्र को लेकर श्मशान में जाने लगी तो हरिश्चंद्र ने बिना कर चुकाए अंदर जाने से मना कर दिया। तारा द्वारा कर के रूप में अपनी साड़ी फाड़कर देना, इसी दौरान भगवान का वहां पर उपस्थित होकर पुत्र रोहतास को जिंदा करना और राजा हरिश्चंद्र को पुनः राजपाठ सौंपना जैसा मार्मिक प्रसंग सुनाया।

भागवत पंडाल में परीक्षित ममता त्रिवेदी व नागेन्द्र त्रिवेदी के अलावा अनुज शुक्ला, प्रशांत त्रिवेदी, राहुल तिवारी, अनुराग त्रिवेदी, सत्यम त्रिवेदी, अजीत सिंह, रवि सेंगर सहित बड़ी संख्या में श्रोतागण मौजूद रहे।

रिपोर्ट – राहुल तिवारी

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