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सर्वजन भावना से समाधान: मोहन भागवत

राष्ट्रीय भावना के जागरण हेतु विजय दशमी पर आरआरएस की स्थापना हुई थी। इसके संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार सक्रिय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। उन्हें विश्व गुरु व सोने की चिड़िया का परतन्त्र होना विचलित करता था। उन्होंने इस प्रश्न पर व्यापक व गम्भीर शोध किया था। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि राष्ट्रीय गौरव,स्वाभिमान व एकता के अभाव का भारत को नुकसान हुआ। विदेशी आक्रांताओं ने इसका लाभ उठाया। राष्ट्रीय भाव व सामाजिक समरसता के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की गई।

राष्ट्र को पुनः परम् वैभव के पद पर आसीन करना इसका लक्ष्य बनाया गया। संघ अनवरत इस दिशा में कार्य कर रहा है। विजय दशमी उत्सव पर सरसंघ चालक मोहन भागवत ने नागपुर में इन्हीं विचारों का उल्लेख किया। पिछले कुछ दिनों में हुए महत्वपूर्ण समाधान को उन्होंने सराहनीय बताया। इसमें श्री राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण का भूमि पूजन,अनुच्छेद तीन सौ सत्तर की समाप्ति व नागरिकता संशोधन कानून शामिल है। राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होना अभूतपूर्व रहा। समाज ने इस पर संयम दिखाया। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून पर नकारात्मक राजनीति हुई। इसमें किसी भारतीय की नागरिकता समाप्ति के एक शब्द भी नहीं था। यह तो पड़ोसी देशों में उत्पीड़ित बन्धुओं को नागरिकता देने का कानून था। फिर भी इस पर भ्रम फैलाया गया।

अराजकता फैलाने का प्रयास किया गया। लेकिन कोरोना के कारण यह आगे नहीं बढ़ सका। जबकि ऐसे सभी समाधान भारतीय चिंतन के अनुरूप थे। जिसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयःकी कामना की गई। इसी के अनुरूप कोरोना काल में जरूरतमंदों की सहायता प्रदान की गई। इस अवधि में सरकार ने समय पर उचित निर्णय लिए। संघ की यही विचार दृष्टि है। स्वयं सेवक का भाव भी इसी को रेखांकित करता है। निःस्वार्थ सेवा का विचार ही किसी को स्वयंसेवक बनाता है। सेवा कार्य में कोई भेदभाव नहीं होता। संघ के स्वयंसेवक पूरे देश में सेवा प्रकल्प चलाते रहे है। सभी आनुषंगिक संघटन इस समय इसी कार्य में तन मन धन से समर्पित रहे है। मोहन भागवत ने वर्तमान चुनौती के मुकाबले पर सकारात्मक सन्देश दिया। मोहन भागवत ने वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका पर मार्गदर्शन किया। स्वदेशी का आचरण आज हमारा सम्बल बना है।

समाज और देश को स्वदेशी को अपनाना होगा। संकट को अवसर के रूप में समझने की आवश्यकता है। इसी से बेतरह भारत की राह निर्मित होगी। स्वदेशी उत्पाद में क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। विदेशों पर निर्भरता को कम करना होगा।स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में आत्मसंयम और नियमों के पालन का भी महत्व है। समाज में सहयोग,सद्भाव और समरसता का माहौल बनाना आवश्यक है।भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयारी करनी होगी। नए सिरे से रोजगार की व्यवस्था करनी होगी। अर्थनीति, विकासनीति की रचना अपने सिस्टम के आधार से करना होगी।

मोहन भागवत ने भारतीय चिंतन के अनुरूप सहयोग पर बल दिया। यह किसी के विरोध का समय नहीं है। जरूरतमंदों की निस्वार्थ सहायता करनी चाहिए। यह हमारे देश का विषय है। इसलिए हमारी भावना सहयोग की रहेगी। एक सौ तीस करोड़ का समाज भारत माता का पुत्र है। हमारा बंधु है। देश में कोरोना के फैलने के कारण हम जानते हैं। लेकिन यह कुछ विशेष लोगों की गलती थी। इसके आधार पर पूरे समाज को उस पर आरोपित नहीं करना है। अपने स्वार्थ के लिए भारत तेरे टुकड़े होंगे, यह कहने वाले भी हमारे बीच बहुत हैं। बहुत से लोग अवसर की ताक में हैं। ऐसे में हमें अपने मन में क्रोध और अविवेक के कारण इसका लाभ लेने वाली अतिवादी ताकतों से सावधान रहना हैं। इस प्रकार मोहन भागवत ने सेवा समरसता का सन्देश दिया है। आज इस पर अमल की आवश्यकता है।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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