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उज्जैन की आध्यात्मिक ऊर्जा

     डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। इसको शास्वत माना गया। अनेक सभ्यताओं का प्रादुर्भाव हुआ। समय के साथ वह तिरोहित होती गई। जबकि आक्रांताओ के बेहिसाब हमलों के बाबजूद यह शास्वत संस्कृति गरिमा के साथ कायम है। मध्यकाल में अस्था के स्थलों सुनियोजित हमले हुए। किन्तु अस्था का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण हुआ था। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया गया।

प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। साँस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के विश्व स्तरीय विकास का संकल्प लिया गया। कार्य योजना बना कर इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित हुआ। विश्व के अन्य हिस्सों में जब मानव सभ्यता का विकास भी नहीं हुआ था, हमारे यहां राष्ट्र प्रादुर्भाव हो चुका था। ऋग्वेद में राष्ट्र का सुंदर उल्लेख है। राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के साथ ही सांस्कृतिक व्यापकता को दर्शाने वाले वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में है। भारत का भौगोलिक व सांस्कृतिक क्षेत्र पहले बहुत विस्तृत था। देश के मठ व मन्दिर हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक है। भारत ने जब तक अपनी इस महान विरासत पर गर्व किया, जब तक यहां के लोग राष्ट्रीय स्वाभिमान से प्रेरित रहे, तब तक भारत समर्थ रहा। वह विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठत रहा। आज फिर उसी राष्ट्रीय स्वाभिमान को जागृत करने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दिशा में कारगर प्रयास कर रहे है। उनके नेतृत्व व नीतियों से विश्व मे भारत की प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने संकल्प से सिद्धि के अनेक ऐतिहासिक कार्य किए हैं। अयोध्या में जन्मभूमि पर भव्य श्री राम मन्दिर निर्माण का संकल्प पांच शताब्दी पुराना था। इस संवेदनशील विषय का दूर दूर तक समाधान दिखाई नहीं दे रहा था. क्योंकि देश के सेक्युलर राजनीति के दावेदार मन्दिर निर्माण रोकने के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार थे। नरेन्द्र मोदी के संकल्प से यह कार्य सिद्ध हो रहा है। श्री काशी विश्वनाथ धाम संकरी गलियों में सिमट गया था। इसको भव्य बनाने की पहले कभी चर्चा नहीं होती थी। नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से यह कार्य भी सिद्ध हुआ। इसी प्रकार श्री विन्ध्यवासिनी धाम का भव्य निर्माण हो रहा है। साँस्कृतिक राष्ट्रवाद की यह यात्रा जारी है। उज्जैन में विश्व प्रसिद्ध श्री महाकाल लोक का लोकार्पण नरेन्द्र मोदी ने किया।

नरेन्द्र मोदी के संकल्पों में योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान सहायक बनें.यदि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अपने को सेक्यूलर कहने वाली सरकारें होती तो यह कार्य सहज नहीं होता। नरेन्द्र मोदी महाकाल लोक के पहले चरण का लोकार्पण किया। महाकाल लोक के लोकार्पण के दौरान अलग अलग प्रदेशों की सांस्कृतिक झलक दिखाई दे रही थी। भारत का साँस्कृतिक राष्ट्रवाद प्रतिध्वनित हो रहा था। नरेन्द्र मोदी ने कहा आस्था-अध्यात्म की पावन नगरी उज्जैन एक ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनी। भव्य और दिव्य श्री महाकाल लोक को राष्ट्र को समर्पित करने का सौभाग्य मिला। हर-हर महादेव, बारह ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर की अपनी महिमा है। दक्षिणमुखी शिवलिंग का यह एक मात्र धाम है। यह जागृत और स्वयंभू शिवलिंग है। बाबा महाकाल की उत्पति अनादि काल में मानी गई है।

आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते॥

महाकाल मंदिर में सामन्यतः चार आरती होती हैं,भस्म आरती केवल पुरुष ही देखते हैं। आरती के समय बिना सिला हुआ वस्त्र धारण किया जाता है। यहां सभी हिन्दू त्योहार सबसे पहले बनाने की परम्परा है। महा शिवरात्रि नौ दिन पहले ही शुरू हो जाता है। जिसको शिव नवरात्रि भी कहा जाता है। बाबा महाकाल का नौ दिन तक अलग अलग श्रृंगार से सजाया जाता है। आखिर में महा शिवरात्रि के दिन बाबा महाकाल को दूल्हे की तरह सजाया जाता है। वर्ष भर में एक बार दिन में होने वाली भस्म आरती भी महा शिवरात्रि के दूसरे दिन होती है, धाम का निर्माण राणोजी शिन्दे शासन काल में हुआ था। प्रथम खंड में महाकालेश्वर मध्य खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग विराजमान हैं।

शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर-पार्वती नाग के आसन और उनके फनों की छाया में बैठी हुई है. इसके दर्शन वर्ष में एक बार श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी के दिन होते हैं. नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत के सांस्कृतिक वैभव की पुनर्स्थापना का लाभ न केवल भारत. अपितु पूरे विश्व एवं समूची मानवता को मिलेगा। उज्जैन में श्री महाकाल लोक की स्थापना इसी की कड़ी है। यह काल के कपाल पर कालातीत अस्तित्व का शिलालेख है। उज्जैन आज भारत की सांस्कृतिक अमरता की घोषणा और नये कालखण्ड का उद्घोष कर रहा है। हमारे लिये धर्म का अर्थ कर्त्तव्यों का सामूहिक संकल्प,विश्व का कल्याण एवं मानव मात्र की सेवा है। आजादी के पहले जो खोया था,उसकी आज पुनर्स्थापना हो रही है।

भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है। “प्रलयो न बाध्यते, तत् महाकाल पूज्यते”। उज्जैन काल गणना एवं ज्योतिषिय गणना का केन्द्र है.यह भारत की आत्मा का केन्द्र भी है। यह पवित्र सात पुरियों में एक है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की। विक्रमादित्य के प्रताप से भारत के स्वर्णकाल की शुरूआत हुई। विक्रम संवत महाकाल की भूमि से ही शुरू हुआ. यहाँ कालचक्र के चौरासी कल्पों के प्रतीक चौरासी महादेव, चार महावीर, छह विनायक, आठ भैरव, अष्टमातृका, नौ ग्रह, दस विष्णु, ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य, चौबीस देवियाँ एवं अट्ठासी तीर्थ हैं। इन सबके केन्द्र में कालाधिराज महाराज विराजमान हैं। पूरे ब्रह्माण्ड की ऊर्जा को ऋषियों ने प्रतीक रूप में समाहित किया।

कालिदास एवं बाणभट्ट की रचनाओं में यहाँ की सभ्यता, संस्कृति, शिल्प और वैभव का वर्णन मिलता है। किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव, उसकी पहचान उसकी सफलता की सबसे बड़ी निशानी है। भारत में हमारे धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र का निरन्तर विकास किया जा रहा है। उज्जैन सहित सोमनाथ, केदारनाथ,बद्रीनाथ आदि केन्द्रों का समुचित विकास किया जा रहा है। चारधाम प्रोजेक्ट में ऑल वेदर रोड बनाये जा रहे हैं। स्वदेश दर्शन एवं प्रसाद योजनाएँ चलाई गई है. धार्मिक एवं आध्यात्मिक केन्द्रों का गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है।

महाकाल लोक आज अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिये तैयार हो चुका है। प्राचीन मन्दिरों की दिव्यता,भव्यता, वास्तु और कला आश्चर्यचकित करती है। कोणार्क का सूर्य मन्दिर, एलोरा का कैलाश मन्दिर,मोढेरा का सूर्य मन्दिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मन्दिर, कांचीपुरम का तिरूमल मन्दिर, रामेश्वरम मन्दिर, मीनाक्षी मन्दिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मन्दिर बेजोड़ है। हमारे मन्दिरों का आध्यात्मिक सन्देश आज भी स्पष्ट रूप से सुनाई देता है। ये सभी निरन्तरता और परम्परा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिये फिर तैयार है। काशी कॉरिडोर की तर्ज पर श्री महाकाल लोक बनाया गया है।

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