लखनऊ। पता नहीं हमारे नेताओं के पास कौन सा तंत्र (मैकनिजम) है जो उन्हें किसी घटना या घोटाले की तह तक पहुंचने में जरा भी देर नहीं लगती है। इधर खबर छपी और उधर नेता निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं। पूरे घटनाक्रम का तानाबाना तैयार हो जाता है कि कैसे विरोधियों पर हमलावर होकर उनकी सियासत को दागदार करना है। ऐसा करते समय हमारे सियासी महारथी रस्सी को भी सांप बना देते हैं। अगर खबर विरोधी खेमे से आई हो तो फिर नेताओं के चेहरों की चमक और भी बढ़ जाती है। हां, किसी खबर से अपना अहित हो तो ऐसी खबर कोे राजनैतिक साजिश या झूठ बता कर पल्ला झाड़ लेना ही बेहतर रहता है। सबसे खास बात यह है कि आपके दामन पर चाहें जितने दाग लगें,लेकिन इसका जबाव देने की बजाए सामने वाले की ‘टोपी उछालना’ ही आज की सियासत का मूलमंत्र बन गया है। नेतागण यह मानकर चलते हैं कि जनता गूंगी-बहरी ही नहीं अंधी भी होती है। न वह कुछ देख, न कुछ समझ पाती है। उसे जितना। दिखाया जाता है,वह उतना ही देखती है। भले ही ऐसी सोच रखने वाले नेताओं का मकसद किसी से छिपा नहीं हो, लेकिन इनको यही लगता है कि उनकी सियासत की हांडी में सही खिचड़ी पक रही है। अपनी सियासी खिचड़ी अलग पकाने वाले नेताओं को जनता भले ही बार-बार चुनाव में ठुकराती रहती हो,लेकिन यह न अपना चाल-चरित्र-चेहरा बदलने को तैयार ही नहीं होते हैं। जहां चुनाव करीब होते हैं वहां की सियासत में तो और भी अधिक ‘बर्तन-भांडा’ फूटता है। ऐसा ही उत्तर प्रदेश में हो रहा है,जहां विधान सभा चुनाव होने में अब दो साल से भी कम समय बचा है। इसी लिए विपक्ष योगी सरकार को घेरने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहता है। बसपा सुप्रीमों मायावती, सपा प्रमुख अखिलेश यादव हों या फिर कांगे्रस की उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका वाड्रा सब के सब योगी के पीछे पड़े हैं। पहले सीएए के बहाने, फिर कोरोना और जमातियों पर कथित अत्याचार की आड़ में, उसके बाद श्रम कानून में बदलाव, प्रवासी मजदूरों एवं उनके नाम पर बस की सियासत के बाद अब यूपी सरकार में अनामिका शुक्ला नाम की टीचर को जो घोटाला सामने आया उसके बहाने विपक्ष योगी सरकार पर हमलावर है।
हालांकि अभी यह मामला शुरूआती दौर में हैं। मामले की जांच शुरु हो गई है। जांच के बाद ही पूरे घटनाक्रम से पर्दा हटेगा लेकिन विपक्ष ने योगी को कसूरवार घोषित करके ‘सजा’ सुनाना शुरू कर दिया है। जबकि इस पूरे फर्जीवाडे का मास्टमाईंड कौन है ये सवाल अभी भी बरकरार है। सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की बात कह रही है, लेकिन विपक्ष इस मुद्दे पर हमलावर है। अनामिका शुक्ला चाहे अमेठी की हो या अंबेडकरनगर की या फिर कासगंज से गिरफ्तार यह सभी गोंडा की असली अनामिका के दस्तावेजो के सहारे नौकरी कर रही थी, लेकिन हैरानी इस बात की है कि असली अनामिका शुक्ला आज भी बेरोजगार है। यानि तस्वीर बिल्कुल साफ है कि शिक्षा विभाग मे भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी जम चुकी है कि इन्हें उखाड़ फेंकना सरकार के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है। इसी का फायदा उठाकर विपक्ष योगी सरकार पर लगातार हमलावर है और उक्त घोटाले की तुलना मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से की जा रही है। व्यापम घोटाला, मध्य प्रदेश में हुआ था जो मेडिकल की भर्ती से ही जुड़ा था। इसमें कई लोगों की मौत भी हो चुकी है और शिवराज सिंह चैहान सरकार पर कई तरह के आरोप लगे हुए हैं।
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव तथा उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका वाड्रा जो योगी सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती हैं, बेसिक शिक्षा विभाग में भर्ती घोटाले की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गई हैं। प्रियंका ने यूपी के शिक्षक घोटाले की तुलना मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाला से की है। प्रियंका को इस मुददे पर राजनीति चमकाने का तब और भी बड़ा मौका मिल गया जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 69000 शिक्षकों की भर्ती पर तत्काल प्रभाव से कुछ समय के लिए रोक लगा दी। अधिकांश जिलों में काउंसिलिंग शुरू होने के बाद भर्ती पर रोक लगी तो भला प्रियंका ही क्या बाकी विपक्ष भी कैसे चुप बैठ सकता था। प्रियंका वाड्रा ने सरकार को चेतावनी देते हुये कहा कि अगर इस मामले में न्याय नहीं हुआ तो कांग्रेस आंदोलन करेगी। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी भर्ती पर लगातार कोर्ट संज्ञान ले रहा है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा हमलावर हुईं तो मायावती-अखिलेश को भी अहसास होने में देर नहीं लगी कि टीचर भर्ती घोटाले को उठाने के मामले में वह कांगे्रस से पिछड़ गए हैं। इसके बाद आनन-फानन में यह दोनों नेता भी मैदान में कूद पड़े। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने शिक्षक भर्तियों में बड़े पैमाने पर घोटाला किया है। नौजवानों के साथ धोखा हुआ है। बीटीसी शिक्षकों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। भाजपा सरकार में नौकरियों को लेकर छल-कपट किया जा रहा है। अखिलेश ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में धांधली हुई है। लोकसभा चुनाव तक पेपर आउट कराना, भर्तियों को रद्द करना ही भाजपा की रणनीति है। भाजपा का यह कार्य छात्र-नौजवान विरोधी है। वह छात्रों, नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। इससे पहले बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट कर शिक्षक भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की। मायावती ने लिखा कि उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में धांधली व भ्रष्टाचार आदि की सीबीआइ जांच होनी चाहिए।
बहरहाल, विपक्ष चाहें योगी पर जितने आरोप लगाए,लेकिन उनके लिए जनता को इस बात का विश्वास दिलाना आसान नहीं है कि योगी भ्रष्टचारी नेता हैं। ऐसा नहीं है कि टीचर भर्ती घोटाले में गड़बड़ी नहीं हुई है,लेकिन इसके लिए योगी से अधिक वह सिस्टम जिम्मेदार है जिसमें पारदर्शिता का पूरी तरह से अभाव दिखाई पड़ता है। और यह सिस्टम आज का नहीं है। एसटीएफ मामले के जांच कर रहा है। शिक्षकों की भर्ती में अनियमिता के मामले में अधिक नंबर पाने वाले अभ्यर्थी एसटीएफ के राडर पर हैं। एसटीएफ उन अभ्यार्थियों की जानकारी जुटा रही है, जिनके नंबर अधिक थे। बताते चलें एक युवक की शिकायत पर पुलिस ने मामले की जांच शुरू की थी। इसके बाद परत-दर-परत घोटाला सामने आने लगा। शुरूआती जांच के बाद डाॅ. केएल पटेल समेत 11 आरोपितों को गिरफ्तार किया था। भर्ती की लिखित परीक्षा छह जनवरी 2019 को हुई थी। सबसे चैकाने वाली बात यह है कि डाॅ0 पटेल का नाम बहुचर्चित व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाले के समय भी सामने आया था। मुख्य आरोपित डाॅ. केएल पटेल के बारे में और भी जानकारी जुटाई जा रही है। एसटीएफ इस गिरोह के सदस्यों को पहले भी दो बार पकड़ चुकी है। शिक्षक भर्ती परीक्षा के दौरान एसटीएफ ने साॅल्वर गिरोह के करीब 27 सदस्यों को पकड़ा था। तब एक सिपाही व स्कूल प्रबंधक भी पकड़े गए थे। आशंका है कि लखनऊ मंे पकड़े गए आरोपित के तार भी डाॅ. केएल पटेल से जुड़े थे।